Tuesday, 28 April 2015

संभाल के रख अपनी बेदाग चादर, ये कभी नुमायश के काम आएगी
गंदी होने के डर से न तुमने ओढ़ी . न तो अपनों के कभी आंसू पोंछे
जतन से ओढ़ने में जतन लगता है , आंसू पोंछने में मन लगता है
जतन नहीं था, सो ओढ़ी नहीं गई , मन नहीं था सो आंसू नहीं पोंछे 
अच्छा भला आदमी डर गया और मर गया
बीमार था जो वह डरा और दौड़ा ,चल गया
खौफ ने एक की जान इस तरह ले ही ली थी
दुसरे को खौफ ने जिन्दगी यूँ बख्श दी थी
हादसे न जाने कब जिन्दगी ही मांग लेते हैं
ये ही हादसे कितनो को बहार बख्सते चलते 
बोझ बन जाने के पहले चल दूंगा -यह वादा रहा .  और हाँ बहुत कुछ कर कर , छोड़ कर ही जाऊंगा . न असहाय होऊंगा ,न असहाय  रहूँगा ,न असहाय बनाऊंगा ,न असहाय छोडूंगा .

समर्पण कर देना ,समर्पण करा लेना ,समर्पण कर लेना ,विश्वास जीत लेना ,विश्वास करा देना , विश्वास कर लेना - बड़ी बात है -
बड़ी इच्छा शक्ति लगती है वास्तविक हिम्मत चाहिये ,साहस चाहिये . आत्म समर्पण करना,करा लेना ,कर देना और उसके बाद भी आत्म सम्मान बचा रखना एक कला है .ऐंठना ,अकड़ना ,अटक जाना ,नाक की सीध में ही चलूँगा ,अनमनीय होना ,पूर्ण शुद्ध होने या रहनेका आग्रह लगता तो है अव्यवहारिक है और दायें -बांये करते सुरक्षित आगे बढ़ चलने की हिम्मत पुरुषार्थ.
हाँ अनुपात का उचित ज्ञान होना ही चाहिये .
पर हाँ अपने लिये दूसरों को अनावश्यक स्थायी हानि पहुँचाना उचित तो नहीं ही है .अपने आप कोअप्मनित होते देना या लोभवश अपमान का पान करते रहना मेरी तो समझ में नहीं आता .
समर्पण कर देना ,समर्पण करा लेना ,समर्पण कर लेना ,विश्वास जीत लेना ,विश्वास करा देना , विश्वास कर लेना - बड़ी बात है -
बड़ी इच्छा शक्ति लगती है वास्तविक हिम्मत चाहिये ,साहस चाहिये . आत्म समर्पण करना,करा लेना ,कर देना और उसके बाद भी आत्म सम्मान बचा रखना एक कला है .ऐंठना ,अकड़ना ,अटक जाना ,नाक की सीध में ही चलूँगा ,अनमनीय होना ,पूर्ण शुद्ध होने या रहनेका आग्रह लगता तो है अव्यवहारिक है और दायें -बांये करते सुरक्षित आगे बढ़ चलने की हिम्मत पुरुषार्थ.
हाँ अनुपात का उचित ज्ञान होना ही चाहिये .
पर हाँ अपने लिये दूसरों को अनावश्यक स्थायी हानि पहुँचाना उचित तो नहीं ही है .अपने आप कोअप्मनित होते देना या लोभवश अपमान का पान करते रहना मेरी तो समझ में नहीं आता .

Monday, 27 April 2015

इधर दो चार बार दैत्य राज को बहुत निकट से देखा .

Friday, 24 April 2015

वे कुछ पीछे रह गये , वे कुछ आगे बढ़ गये
वे कैसे तो फिसल गये ,वे कैसे उपर चढ़ गये 
जो सब कुर्बान हुए थे. क्या वे सब मिट ही गये
जिन्हें उन्होंने वैसे मारा , क्या वे सब मर गये

जो कुर्बान नहीं हुए, या जो वैसे नही मारे गये
क्या वे सब अब भी हैं ,क्या वे सब अमर हुये  
लगातार एक और कदम बढ़ाऊंगा ,
कुछ और आगे ,कुछ और ऊपर
चलता ही जाऊंगा,उठता ही जाऊंगा,
रुकुंगा नहीं ,रोकने पर भी नहीं ,
नित उगूंगा नये रूप में
नई उमंग और नया  रंग लिये,
शेष नही यह यात्रा अभी ,
शुरू होगी फिर नई तरंग लिये ,
सजा रहा हूँ तरकस फिर से
,आँखों में नई जंग लिये ,
संभाल  रहा नई चतुरंग सेना ,
 में उतरूंगा नया ढंग लिये
युद्ध बहुत से अभी हैं  बाकी पड़े
युद्धभूमि बहुत सी अभी प्यासी है
लहू अभी तो नया बन ही रहा
आप्लावित करने को काफी है
इतिहास का बनना  बंद कहाँ
इतिहास की रचना बाकी है
हर नख मेरा हथियार बनेगा
हर दांत बनेगा तीक्ष्ण कटार
आँखों में ही समुद्र आ बसेगा
साँसों से ही आंधी अब आएगी
हाथ जुड़ेंगे , नई श्रृष्टि बसेगी
पावों से हर कण  कोना जुटेगा

लगातार एक और कदम बढ़ाऊंगा ,
कुछ और आगे ,कुछ और ऊपर
चलता ही जाऊंगा,उठता ही जाऊंगा,
रुकुंगा नहीं ,रोकने पर भी नहीं ,
नित उगूंगा नये रूप में
नई उमंग और नया  रंग लिये,
शेष नही यह यात्रा अभी ,
शुरू होगी फिर नई तरंग लिये ,
सजा रहा हूँ तरकस फिर से
,आँखों में नई जंग लिये ,
संभाल  रहा नई चतुरंग सेना ,
 में उतरूंगा नया ढंग लिये
युद्ध बहुत से अभी हैं  बाकी पड़े
युद्धभूमि बहुत सी अभी प्यासी है
लहू अभी तो नया बन ही रहा
आप्लावित करने को काफी है
इतिहास का बनना  बंद कहाँ
इतिहास की रचना बाकी है
हर नख मेरा हथियार बनेगा
हर दांत बनेगा तीक्ष्ण कटार
आँखों में ही समुद्र आ बसेगा
साँसों से ही आंधी अब आएगी
हाथ जुड़ेंगे , नई श्रृष्टि बसेगी
पावों से हर कण  कोना जुटेगा

बहुत हुआ ,कुछ बच गया ,फिर भी बहुत होना बाकी है 
तबियत से सपने देखो ,सारे सपने अपने होना बाकी है 

सपने भी होते बैचैन , अपनाने वाले को ढूंढते  फिरते हैं
दुनिया भी होती बैचैन,सपनाने वाले को ढूंढती फिरती है   

Thursday, 23 April 2015

आज और अभी विचार करो और करो नई शुरुआत 

Wednesday, 22 April 2015

Tue, 21 Apr 2015 07:28 PM (IST)
संवाद सहयोगी, किशनगंज : भारतीय संविधान में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकार के लिए कई कानून हैं। जिसमें महिलाएं सामाजिक रीति रिवाज के साथ कैरियर के सभी क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किया गया है । यह जानकारी मंगलवार को जिला एवं सत्र न्यायाधीश रमेश कुमार रतेरिया ने दी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री रतेरिया डुमरिया स्थित बालिका उच्च विद्यालय में विधिक जागरुकता शिविर में बालिकाओं को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर श्री रेतरिया ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ग्रहण करने वाली बालिकाएं ही कानून का ज्ञान अर्जन कर सकेगी। इस ज्ञान को प्राप्त करने वाली बालिकाएं स्वयं के साथ अन्य बालिकाओं और महिलाओं के अधिकार की रक्षा के लिए भी अपनी आवाज बुलंद कर सकती है। श्री रतेरिया ने कहा कि वर्तमान समय में बालिकाएं डॉक्टर, इंजीनियर और आर्किटेक्ट तो बनना चाहती हैं लेकिन न्यायिक विभाग में अपना कैरियर बनाने की दिशा में विशेष ध्यान नहीं देती। जबकि बालिकाओं के लिए जरुरी है कि वे कानून का ज्ञान अवश्य अर्जित करें। साथ ही न्यायिक विभाग में भी अधिवक्ता, पीपी, सीजेएम और डीजे बन महिला सशक्तिकरण की दिशा में अपना योगदान अवश्य दें सकती है। कारण यह कि जिस समाज की बालिकाएं व महिलाएं कानून की जानकार होंगी। वह समाज निश्चित ही विकास के पथ पर अग्रसर रहेगा। कानून सभी को सेल्फ डिफेंस राइट प्रदान करता है। इसलिए जरुरी है कि प्रत्येक बालिका कानून का ज्ञान अर्जन करें। वहीं श्री रतेरिया ने बालिकाओं द्वारा कानून से संबंधित पूछे गए प्रश्नों के जवाब भी दिए। इस दौरान मुख्य रुप से सीजेएम बीएन मिश्रा, प्रधानाध्यापिका इंदिरा भौमिक, डा. रियाजुय्दीन, अब्दुल कादिर, मो. रफीक, बिन्दु शर्मा, आलोक कुमार, फरहान नाज और राकेश कुमार सहित बड़ी संख्या में स्कूली छात्राएं मौजूद थी
 तो क्या कोई नया आदमी किसी नये तराजू से, नये बटखरों से मुझे तौल रहा है .
 न मुझे अपना वजन ,कद ,आकार या गहराई का कोई आभास आज तक हो सका है , न ही मुझे उनके तराजू , बटखरे ,उनके माप-तौल के तौर तरीके की कोई जानकारी है ,उनकी नीयत और अपनी नियति की भी तो कोई पूरी पूरी जानकारी नहीं है .-देखूं तो सही,  अंततः मैं कहाँ ठहरता हूँ .
मैं तो बस निरपेक्ष चल भर रहा हूँ - लगातार चलता रहूँगा - देखूं कहाँ ,कब ,कैसे पहुँचता हूँ , कितना ,कैसे ,कब तक ठहरता हूँ
साठ साल की यात्रा है . हिसाब किताब करने में कुछ समय तो लगेगा ही .आप सब को इतना कुछ बताते जाना है,बताने में तो समय लगेगा ही .कैसे ,कब कितना ,किसको और क्यों बताऊँ .
क्या उचित है ?
क्या न्यायपूर्ण है ?
क्या और कितना ,कब और कब तक नैतिक है , सामाजिक है ?
अनंत प्रश्न है .निरंतर प्रश्न आते ही जा रहे हैं ,मैं प्रश्नों को न तो आने से रोक पा रहा हूँ ,न रोकना चाहता हूँ और प्रश्नों को रोकना मुझे उचित नहीं लगता . प्रश्न है तो प्रवाह है .प्रश्न है तो प्रेरणा है ,प्रश्न ही तो स्पंदन है .
यदि मैं हूँ तो शान से ,रहूँगा भी तो शान से ,आज तक रहा हूँ शान से -कभी भी अपने लिये नहीं रहा हूँ - बस तुम्हारे लिये रहा हूँ ,रहता हूँ , रहूँगा ..
तुम मुझे दागदार  नहीं बना सकते . मैनपुरी ताकत से दूषित होने से अपने को बचाता ही रहूँगा .
मैं संस्कारों का परिमार्जन करता ही रहूँगा ,शुभंकर संस्कार का अनुगमन करता ही रहूँगा ,मैं आदर्शों को अंगीकार- स्वीकार - अनुपालन करता ही रहूँगा - शेष प्रेक्टिकल  बनावटी समकालीन समाज को अटपटा लगे तो भी ,वे मुझे अप्रासंगिक मान  बैठेंगे तो भी ,आखिर आदर्श को अगली पीढ़ी तक ले तो जाना है ही न ,आदर्शों कोम्रने नहीं दिया जा सकता ,आदर्श ही समाज का जीवन रस है ,जीवन आधार है ,जीवन स्वरूप है , जीवन लक्ष्य है ,आदर्श विचार ही समाज की प्राण  वायु  है - आदर्श धारण करना ही परम कर्तब्य ,परम गंतब्य है .पदार्थ से  उपर और  अलग विचार क्षेत्र में भी विचरण ही सदाचरण है - पदार्थ को भी शुद्ध संस्कारों से परिमार्जित करना ही परम धर्म है - मैं इन सारे रे धर्मों की समस्त  आवृतियों का सम्पूर्ण पालन करूँगा .कठिन तो है ,पर किया जा सकेगा .

क्या मैं आपकी समझ में आता हूँ , आ जाता हूँ , समझ में आने लायक हूँ भी की नहीं .
जब जब मैं डराया गया ,मैं तो अड़ गया ,
जब मुझे हडकाया गया ,मैं अकड़ गया .

Tuesday, 21 April 2015

उन्होंने पूछा गरीबों का क्या  होगा ,मैनें उत्तर दिया यदि मैं यहाँ तक पहुँच सकता हूँ तो आप सभी भी आगे बढ़ सकते हो .
उन्होंने पूछा आगे बढ़ने के लिये क्या करना होगा .मैनें कहा कुछ नहीं कुछ बड़े बड़े सपने और इच्छा ,बस इतना ही 
जिला जज रमेश कुमार रतेरिया ने दुष्कर्मी को दोषी पाकर सात साल की सश्रम कारावास व पांच हजार रुपये की जुर्माने की सजा मंगलवार को सुनाई। साथ ही अभियुक्त को पीड़िता को अलग से 50 हजार रुपये बतौर हर्जाना देने का भी आदेश दिया। दुष्कर्म की घटना 2006 में दर्ज कराई गई थी। जानकारी के मुताबिक कोचाधामन निवासी अभियुक्त मो. अखलाक ने दुष्कर्म करने की प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। न्यायालय के निर्देश पर पुलिस ने कोचाधामन थाना काड संख्या 60/06 दर्ज कर अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पत्र न्यायालय में समर्पित किया था। इसके बाद सत्रवाद में लोक अभियोजक के द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को सही पाकर जिला जज श्री रतेरिया ने अभियुक्त को भादवि की धारा 376 के तहत दोषी पाकर उक्त सजा दी। वहीं अभियुक्त के अधिवक्ता चौधरी खलिकुजमा ने बताया कि दोषी करार देने के बाद उन्होंने अभियुक्त की उम्र 70 साल बताते हुए सहानुभूति पूर्वक विचार करने - See more at: http://www.jagran.com/bihar/kishanganj-12288124.html#sthash.YaBy9R1M.dpuf
भारतीय संविधान में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकार के लिए कई कानून हैं। जिसमें महिलाएं सामाजिक रीति रिवाज के साथ कैरियर के सभी क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किया गया है । यह जानकारी मंगलवार को जिला एवं सत्र न्यायाधीश रमेश कुमार रतेरिया ने दी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री रतेरिया डुमरिया स्थित बालिका उच्च विद्यालय में विधिक जागरुकता शिविर में बालिकाओं को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर श्री रेतरिया ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ग्रहण करने वाली बालिकाएं ही कानून का ज्ञान अर्जन कर सकेगी। इस ज्ञान को प्राप्त करने वाली बालिकाएं स्वयं के साथ अन्य बालिकाओं और महिलाओं के अधिकार की रक्षा के लिए भी अपनी आवाज बुलंद कर सकती है। श्री रतेरिया ने कहा कि वर्तमान समय में बालिकाएं डॉक्टर, इंजीनियर और आर्किटेक्ट तो बनना चाहती हैं लेकिन न्यायिक विभाग में अपना कैरियर बनाने की दिशा में विशेष ध्यान नहीं देती। जबकि बालिकाओं के लिए जरुरी है कि वे कानून का ज्ञान अवश्य अर्जित करें। साथ ही न्यायिक विभाग में भी अधिवक्ता, पीपी, सीजेएम और डीजे बन महिला सशक्तिकरण की दिशा में अपना योगदान अवश्य दें सकती है। कारण यह कि जिस समाज की बालिकाएं व महिलाएं कानून की जानकार होंगी। वह समाज निश्चित ही विकास के पथ पर अग्रसर रहेगा। कानून सभी को सेल्फ डिफेंस राइट प्रदान करता है। इसलिए जरुरी है कि प्रत्येक बालिका कानून का ज्ञान अर्जन करें। वहीं श्री रतेरिया ने बालिकाओं द्वारा कानून से संबंधित पूछे गए प्रश्नों के जवाब भी दिए। इस दौरान मुख्य रुप से सीजेएम बीएन मिश्रा, प्रधानाध्यापिका इंदिरा भौमिक, डा. रियाजुय्दीन, अब्दुल कादिर, मो. रफीक, बिन्दु शर्मा, आलोक कुमार, फरहान नाज और राकेश कुमार सहित बड़ी संख्या में स्कूली छात्राएं मौजूद थी - See more at: http://www.jagran.com/bihar/kishanganj-12288149.html#sthash.sxSklAWz.dpuf

Monday, 20 April 2015

भूलूंगा कैसे और किसको किसको, कब
याद भी रखूंगा तो क्या क्या और क्यों
वादें यादें ,चाहना ,भूलना ,बस इतना ही
क्या शिकवे शिकायत में ही कट जाएगी

मैं आया ,रुका ,किया , कुछ मिला या न मिला बस चल दिया -अभी पड़ाव और भी हैं, चलने का दौर और भी है ,नये  दौर और भी है .

Saturday, 18 April 2015


सोच रहा हूँ मैं आज विद्यालय क्यों आया हूँ - क्या लेने आया हूँ - क्या देने आया हूँ  - क्या  ले के जाऊँगा , क्या दे के जाऊँगा .
हम पढ़ते हैं - न्याय पाने के लिये ,न्याय करने के  लिये , न्यायपूर्ण रहने के लिये अन्याय को पहचानने के लिये , अन्याय से लड़ने के लिये ,अन्याय से बचने के लिये , अन्याय से बचाने के लिये .शिक्षा का अर्थ होता है -न्याय अथवा अन्याय ,उचित अथवा अनुचित को फर्क जानना ,

विद्यालय को बच्चों के प्रश्नों के उत्तर देने लायक शिक्षक चाहिये . बच्चों को प्रश्न पूछने लायक बनाईये . शिक्षकों को बच्चों की शंका समाधान करनी चाहिये ,बच्चे -बच्चे की जिज्ञासा का सम्मान होना चाहिये .. किसी भी  कीमत पर प्रश्नं दबाये नहीं जाने चाहिये , न उन्हें खो जाने देना चाहिये .वही समाज उन्नति करता है जो अपने बच्चों की जिज्ञासा  का सम्मान करता है   , उन्हें  सुरक्षा देता है ,उन्हें सुरक्षित रखता है ,ससमय उत्तर देता -खोजता है- हर बच्चे की हर जिज्ञासा ही समाज की नई प्रेरणा - सम्पत्ति है 
हमारा दायित्व  यही है की हम बच्चों के लिये जीयें - बच्चों पर हम बोझ नहीं बने . बच्चों को अपने इतिहास से बांधें  नहीं .रोटी ,कपड़ा , मकान  विद्यालयों का लक्ष्य नहीं हो सकता - इन सब की योग्यता तो मात्र प्रकृति से स्वयं आ जाती है , शिक्षा से तो उचित और अनुचित का ज्ञान आता   है ,न्याय तक पहुँच बनाती  है , सम्मान की भूख जगती है , उन्नति की भूख जगाती है .मान--मान्यता ,सम्मान , समानता ,सम्मान्यता से परिचय कराता है .                                                                                                                                    अभिवावकों को माता-पिताहोने का मूल्य वसूलने की प्रवृत्ति से बचना चाहिये                                          
 फिर दोबारा  सोचता हूँ
 आज के विद्यालय और मेरे समय के विद्यालय में क्या और कितना अंतर आया है .
हमारे समय में कंपूटर नहीं था , पोस्टकार्ड था ,टेलीग्राम था ,एस एम् एस  नहीं था ,इ मेल नहीं था , समाचार आने जाने में सप्ताह - महीने लग जाते थे ,परिवार का कोई आदमी आँख  से ओझल हुआ नहीं की उसके बारे में कोई खोज खबर का कोई साधन था ही नहीं -हम अधिक से अधिक औद्योगिक क्रांति के बारे में सोचते थे , विज्ञ का युग आ गया है कहते थे - एक बड़ी अजीब चीज थी हमारे समय में - हम प्रकृति पर विजय का सपना देखा करते थे.
आज आप सब सूचना क्रांति युग में हैं ,कहीं भी कुछ भी, सब को ,सब समय सभी तरह से मालूम है और खबर है 
कोई भी किसी भी ज्ञान के किसी भी पक्ष से अनजान नहीं रह गया है .
आज विज्ञान  के बहुत आगे हम नैनो तकनीक या उससे भी आगे हैं .
हमारे समय में स्वतंत्रता नई उम्र का बच्चा थी ,हमारे सीनियर डरते थे की ये स्वतंत्रता को,स्वतंत्र भारत को,सम्विधान को सम्भाल भी सकेंगे की नहीं .
आप आज उस युग में हो जब हमारा स्वतंत्र भारत उग कर ,बढ़ कर आत्म निर्भर हो रहा है , जवान हो गया है , सम्विधान कई बार तरह तरह से जांचा परखा जा चूका है .
आज के विद्यालय का विद्यार्थी मेरे समय के विद्यार्थी से अधिक प्रखर है , जिज्ञासु है , आश्वस्त है ,क्षमतावान है, दूर दृष्टि रखता है - शायद अधिक धारदार तथा तीक्ष्ण है ,अधिक तेज तथा विश्लेषक है ,निडर है - शायद अपने शिक्षकों से भी अधिक जिज्ञासु-तेज -उत्साही .
   मैं भी आज के पन्द्रह-सोलह वर्ष के बालकों के सामने अपने को असहाय 
पाता हूँ .                                           

roti


रोटी  ,कपड़ा  और मकान ही नहीं , न्याय पूर्ण साभिमान सबके लिये .
सानी , पानी -ओढनी और गौशाल ही नही अधिकार और सम्मान भी चाहिये .कृपा वश नहीं स्वभाव-वश 

Friday, 17 April 2015

एक साथ चार पीढ़ियों का इतिहास देखना -सुनना अच्छा लगता है
कुछ लोग इस तरह व्यवहार करते हैं की उनके यहाँ लक्ष्मी पीढ़ियों तक इत्मिनान से साक्षात् विराजमान रहती है ./
उसी प्रकार कुछ लोग इस प्रकार आचरण करते हैं की यश दायक शक्तियां अपने समस्त वैभव के साथ पीढ़ियों तक उनके अखंड यश की रक्षा करती रहती है .
एकऔए  प्रकार के लोग होते  हैं जो इस प्रकार आचरण करते हैं की वेअपने बाहुबल से शक्तियों को अर्जित करते है और अपनी  अगली पीढ़ी के लिये छोड़ तो जाते है पर इस क्षेत्रमें अगली पीधियों की कोई निश्चित गति के बारे में कुछ नहीं काना जा सकता .
कुछ लोग किन्हीं कारणों से न लक्ष्मी कोप्रशान्न कर पाते हैं ,न श्री विष्णु को , न शक्ति को और व इन तीनों कि सेवा -सुश्रुषा  करते भोग माय जीवन जेते रहते है और पीढ़ी दर पीढ़ी सेवक बने रहते है .
शनैः शनैः यही उनके संस्कार बन जाते है
यश के मार्ग पर चलना संयम के मार्ग पर विवेक तथा संतोष के साथ आनुपातिक जीवन ब्यतीत करना और करवाना  ही है ,यही सीखना चाहिये ., यही सीखना चाहिये . यश के बिना लक्ष्मी का त्याग ही भला. यश न हो हो समस्त बहुबल निरर्थक .सेवा ही करनी हो तो यशस्वी की करें , कम से कम श्रेष्ठ संस्कार बन्ध  तो होंगे ही .
संस्कार आत्मा तक जाते हैं .सूक्ष्म शरीर इसे धारण करता है .श्रेष्ठ संस्कारों तक की जीवन यात्रा श्रेष्ठ यात्रा है ..



सपनों  का भूखा हूँ मैं , मुझे बड़े बड़े सपने परोसो
जानता हूँ किइन्हें पचा पाना मुश्किल तो होगा ही
फिर भी आपसे बस मैं इन्हीं सपनों को मांगता हूँ 
All my writings are extompore and not edited - even spelling mistakes,punctuation , grammer, sentence framing may not be perfect .
I would like to rearrange them in some reasonable sequenc at proper time , perhaps with the aid of some professional and publisher.
I have only jotted some of  my inflow as and when it came to me .There are repeatitions. Some are quoted. I have acknowledged to the best possible extent  I could have . Ido not claim perfection .
I have missed and could not collect most of my inflow but have tried to pick up a part somehow available only .
But I will continiue .I am not ashamed of any thing . I have given the best of mine to the loosing sides.
I stand against wrong doer. I will never bow myself out .
I will never let you down .I did not compromise and will never compromise .
If I have my head it will be sky high , if you do not relish it , either of us will hve to pay but If I have my head it is only sky high.
तुम सब कुछ कह भी गये ,सुना भी गये - मैं वहीँ रहा . कह नहीं सकता मैनें सुना या नहीं ,समझा या नहीं 
अभी अभी मैनें देखा तुम्हारा बीस बीघा का ये दरवाजा और चारों और फैला ये मॉल-जाल,काम करते ये बनिहार

मुझे मेरी फूस की झोपड़ी बिना पर्दे दरवाजे वाली याद रही,  जिसके सामने की गज भर जमीन पर मैं नाचता था  
काश ! मेरे पास भी होता कुछ मेरे बचपन में से आपक देखने लायक ,मेरे  इतिहास का कोई एक कोना आपसे बाँटने लायक या कुछ दिखने दिखाने  लायक 
प्रश्न सुविधा या स्वाद का नहीं , न ही केवल प्रतिष्ठा , उन्माद ,उत्तेजना या केवल उत्साह का है - प्रश्न औचित्य का  भी तो है ही .यक्ष प्रश्न तो यही है .
यह सब मेरे ही साथ होना  था ? आखिर क्यों ? क्या था ? कैसे हुआ ? कौन थे वे सब ? क्या किया था मैनें ? क्या किया  उन्होंने ? कैसे किया उन लोगों ने ?वे थे कौन, कहाँ से थे आये  ? उन्होंने ऐसा किया ही क्यों था ? क्या मिला उन्हें ?
पर अब ये सरे प्रश्न बेमानी हैं .
स्वीकृति ही उपचार है .

Thursday, 16 April 2015

मुझे ख़ुशी है कि तुम मुझे बताने ,समझाने की कोशिश करते हो क्यों कि तुम समझते हो कि तुम इस लायक हो चुके हो , अपना दायित्व समझने की कोशिश कर रहे हो , अपने अन्दर अतिरिक्त आत्मविश्वास उत्पन्न करने की कोशिश कर रहे हो , जिम्मेवारी लेने को तैयार हो रहे हो ,जिम्मेवार बन रहे हो ,
मुझे पढ़ा-लिखा-समझा बुझा तुम आने आप को  इतना तो आश्वस्त कर ही सकते हो कि अब मैं अपने से बड़ी और समझदार पीढ़ियों के साथ उठने बैठने लायक हो चूका हूँ -इन सबके आगे पीछे के खतरे तुम बर्दास्त करने के लिये तैयार हो ,
पुरानी बड़ी अनुभवों के बोझ से लदी पीढ़ी के आतंक  से मुक्त होने का तुम्हारा यह प्रयास मुझे सुख देता है और आश्वस्त भी करता है कि तुम सजग हो आगे बढ़ रहे  हो ,उग रहे हो ,अपनी जड़ें खुद निकाल रहे हो,अप्निज्मीन खुद तलाश रहे हो
. विश्वास है कि तुम समवेत नई सही दिशाओं की और ही बढ़ोगे , उपर ही  चढ़ोगे - मेरी इन सब के बाद भी जरुरत होतो याद कर लेना , शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ .
मेरी कोई सी बात तो पसंद आती होगी ?
मैं और आप हैं तो एक ही , मूल रूप से एकदम एक -बस कुछ  आड़ी - तिरछी रेखाएं खींच दी  गई है ,कुछ अपने आप उभर  सी आई हैं ,कुछ दूसरों ने, कुछ हमने आपने खुद से ही खींच डाली है , कुछ तो है ही नहीं पर हमने आपने  अपने भ्रम से कल्पना भर कर डाली है .
हमने कुछ काल्पनिक डब्बे जैसे  बना रखें है . अपने आप को बाँट रखा है . यह अधिकांश भ्रम भर ही है .
थोडा सा प्रिश्र्मौर यह आभासी दीवार हट ही जाएगी - हम और आप एक  हैं ही - आर पार देख-सुन-समझ सकेंगें-सारे भ्रम टूट चुकें होंगे . .
अच्छा ,तो मुझे छांट -छांट कर ,चुन चुन कर पढ़ते हो - पर आखिर क्यों 
जंगल कंक्रीट का जहाँ ,हर खिड़की उगती बाद में हैं उसकी कद-काठी और जगह पहले तय कर दिये जाते है
हर सीढी  बनने के पहले उसे नाप कर इजाजत दी जाती है , और नींव के साथ हद पहले तय कर दी जाती है .
सूरज साँझ ढले ही आता है ,सुबह होते होते साँझ हो जाती है दिन रात ,सुबह शाम कितनों के लिये बेमानी है
बरसात में भी मन मयूर नाचता नही ,हवा नहीं बस धुआँ रहता है जिसे आने जाने की इजाजत लेनी पड़ती है  
फूल,फल , सुगंध ,सब्जी भाजी ,अनाज ,पानी ,,सब बंद कर दिये गये है बोतलों में ,ट्रकों  पर घुमते फिरते  है
रास्ते ,सपने.पांव , हाथ रह ही नहीं गये ,चलते देखते , खेलते , सुनते,बोलते,रमण भी करते बस अँगुलियों से 
मैं सत्य के प्रति अतिरिक्त आग्रह के लिये उत्साहित रहता हूँ .
औचित्य मेरी अतिरिक्त मनोयोग से पहली प्राथमिकता है .
अत्याचार और अन्याय मुझे आर अधिक दृढ़ तथा कठोर बना देते हैं ,मैं अतिरिक्त उसाह से दम भर उनका प्रतिकार करता रहूँगा .
लोभ से मुझे घृणा है , थी ,रहेगी .
क्रोध आता है - है
काम - कभी  कभी कमजोर होता हूँ - पर शर्मिंदा नहीं - प्रतिकार करने में उर्जा नहीं लगाता - यह मेरे चिंतन या मनन का विषय नहीं, न ही उस परिधि में है .
आता है तो लड़ता नहीं ,बुलाने मैं जाता नही , ठहरने देता नही, कोई आग्रह नहीं -कोई पहल नहीं , कोई आक्रामकता नहीं , कोईअनुरोध नहीं ,कोई निमंत्र्ण नहीं - केवल समर्पण भर और फिर कोई स्मृति  ही नहीं . समय-साधन-उर्जा  का कोई विनियोग नहीं . सीमा के आगे -ना भाई ना - प्रश्न ही नहीं , स्वाभाविक रूप से ही .और बस उसे विदा कर देना भर ही उद्देश्य है ताकि वह और कुछ करने में ,और संघर्ष में ब्यवधान  न बने .
मैं तुम्हें देख कर निराश नहीं हूँ ,प्रेरित हूँ ,उन्मत्त हूँ ,प्राप्त -प्रसन्नता हूँ .
तुम्हारी नींव की ब्यापकता चमत्कृत  कर देने वाली है .मैं उसे सादर प्रणाम करता हूँ .इतना शानदार सब कुछ .. मैं तो इस सारे  के बीच कहीं नहीं हूँ .फिर भी मैं तुम्हारे बीच हूँ , दृढ़ता से हूँ .मानता हूँ मेरे पास साधन ,जीवन ,संचित उर्जा का अभाव है , यश और सम्मान की किसी बड़ी धारा से मैं अपने आप को मैं नहीं जोड़ पाता हूँ .मैं किसी भी बाहरी साधन से  जीवन की उर्जा न तो प्राप्त रह रहा हूँ न ही चाहुँ तो भी नहीं कर सकता हूँ .
पर यही क्या कम है की आज मैं तुम्हारे बीच हूँ और तुम भी मेरे लिये न चाहते हुए भी रुकने कोविव्श हो .मेरी और देखते तो हो .मेरे बारे में चर्चा तो करते तो हो .
बस इतने से के लिय सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन तो बनता ही न है .
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जब भी अपने साथियों को नजदीक से देखता हूँ तो उनकी विराट  विरासत  ,साधनों तथा सहारा देते अपनों को देख कर लघुता से भर जाता हूँ -
पर जब अपना ही किया -जिया -चला -छोड़ा -बोला -लड़ा -अड़ा ,दीखता है तो एक नया जोश आता है की मै आखिर अपने इन सरे साथियों के सामानांतर तो हूँ ही ,-उन सब को खुद से खौफ जदा देखता हूँ तो आश्चर्य होता है - उनकी आँखों  में इर्ष्या देखता हूँ तो आश्चर्य होता है ,और उनके पसीने  छूटते देखता हूँ तो आश्चर्य होता है ,उनकी मेरे खिलाफ गुटबंदी देखता हूँ ,पीठ पीछे मेरी चर्चा करते देखता हूँ ,और मेरी सशक्त उपस्थिति से विचलित होते देखता हूँ तो बस परमात्मा को प्रणाम करता रहता हूँ .

Wednesday, 15 April 2015

मुझे उम्मीद छोड़ने को मजबूर नहीं कर सकते . मैं उम्मीद तब भी रखूँगा जब कोई दूसरा उम्मीद की उम्मीद भी छोड़ रहा होगा और मैं जानता हूँ मेरी उम्मीद कामयाब होगी - बस फासला वक्त  का है 
कौन कौन कहाँ कहाँ गिरता है , कोई नहीं जानता .जो छिपते हुए गिर कर कुछ हासिल कर लिया करते हैं वे अजीब भाव-भंगिमा ,रंग ढंग दिखाते हैं , वे अज्ज्ब से दीखते है औए सदैव अपने बारे में सच को छिपाने की कोशिश करते हैं .

कौन कौन कहाँ कहाँ गिरता है , कोई नहीं जानता .जो छिपते हुए गिर कर कुछ हासिल कर लिया करते हैं वे अजीब भाव-भंगिमा ,रंग ढंग दिखाते हैं , वे अज्ज्ब से दीखते है औए सदैव अपने बारे में सच को छिपाने की कोशिश करते हैं .

अखर गये तुम्हारे ये दो बूँद आंसू .
आखों से इन्हें न ही निकलने देते
अखर जाती है तुम्हारी ये उदासी
क्या होता यदि ये आस बांधे रहते


बस सब कुछ दिन रात आता जाता रहता है , कुछ भी ,कभी भी, कहीं भी थमता रुकता नहीं - बस हर वक्त पीछेसे आता हुआ आगे बढ़ जाता है  
To earn appreciation in a circular establishment and in a pyramidal shaped institution,both are two different things,
क्या तुम्हें मालूम है कि मुझे तुम्हारी कितनी चिंता रहती है ,मैं तुम्हारे लिये रामदेव बाबा तथा समस्त पितरो से लगातार प्रार्थना कर रहा हूँ .

Tuesday, 14 April 2015

सवाल मेरी बदहवाशी का नहीं , सवाल तुम्हारे इत्मिनान काही है
तुम्हे जो थोडा सा सकून मिले , मैं ज्यादा परेशान भी रहूँ ,तब भी 
तुमने जो कुछ आत्म संतुष्टि भर के लिये किया ,या कर भर दिया या करते हो ,या करते रहते हो या कर रहे हो ,दुसरे उसी को साधन बना ले रहें हैं तुमने जो किया उसे छोड़ दिया ,दुसरे उसे ही संग्रहकर सम्पति बनाले रहे हैं..  

Monday, 13 April 2015

तुम्हारे साथ हुआ अन्याय मेरे साथ हुए अन्याय के दर्द को कम तो नहीं ही कर देगा . तुम्हारे  साथ हुआ अन्याय मेरे अन्याय का प्रतिकार या निवारण तो नहीं ही है ,न ही मैं इसका कार्य या कारण हूँ . तुम तुम्हारी जानो , एक वक्त था जब शायद मेरे साथ हो रहे अन्याय  के तुम साक्षी तो थे  ही ,हो सकता है तुमने अपनी और से कुछ योगदान भी किया हो .
अन्त अन्त तक भी अन्तिम  नहीं होता , बस संभाले ही रहना है,संभले ही रहना है ,सँभालते ही रहना है .कहीं कुछ हल्का नहीं हो जाये , ढीला नहीं रह जाये . 
जिस जिस  ने जब जब  जैसे जैसे  बुलाया वैसे वैसे आना पड़ा ,भेजा तो जाना पड़ा ,कराया तो करना पड़ा , नचाया तो नाचना पड़ा ,लिखाया तो लिखना पड़ा ,पूछा तो बताना पड़ा ,ओढाया तो ओढना पड़ा ,बैठाया तो बैठना पड़ा ,उठाया तो उठना पड़ा , गवाया तो गाना पड़ा , सुलाया तो सोना पड़ा ,छुड़ाया तो छोड़ना पड़ा ,भगाया तो भागना पड़ा ,छिपाया तो छिपना पड़ा .----अपना तो कुछ न था , न है , न होगा .,न कुछ अपना रखा ,न रखना है, न रखूँगा . - इसलिए कभी हिल-हुज्जत भी न की थी  , न करनी आती है ,न करता हूँ ,न करूँगा 
दूर से देखोगे ,अलग से देखोगे तो यह सब अजीब सा दिखेगा , कुछ समझ में भी नहीं आयेगा  या जो समझ में आयेगा वह न तो पूर्ण होगा न ही सही - उचित भी होगा कि नहीं ,कुछ कहा नहीं जा सकता .

तुम्हारे साथ बिताया बचपन ,मेरा अपना ,तुम्हारा ,और तूम  सब का. क्यों अभी और अब याद आ रहा है जब की मुझे पता है वह सब इतिहास बन चूका है 

Sunday, 12 April 2015

किसने लौटा दिया मेरा वह बचपन .
पचपन में भी आयेगा ऐसा बचपन
सोचा नहीं था,अब आयेगा बचपन
कच्चा बचपन , पक गया  बचपन
बच्चा बचपन पर  सच्चा बचपन
कचकच बचपन ,चकचक बचपन
कुदकता बचपन ,फुदकता बचपन
पूरा नही जो जी पाया था बचपन

  • उसी बचे को जीने आया बचपन 
मैं बिका नहीं , झुका नहीं , गन्दा नहीं हो सका , गंदगी में साथ नहीं दे सका , साफ रहने के प्रति मेरा अतिरिक्त आग्रह आपको पसंद नहीं , मुझे आपके द्विअर्थी मूल्य पद्धति का समुचित ज्ञान नहीं है , मैं भेद भरे आपके आचरण में आपका साथ  नहीं दे सकता ,बस इतना ही न .
मैने सम्पूर्ण सत्य का आग्रह स्वीकार किया बस इतना ही न.
मैं संतुष्ट हूँ .
मैंने उकसावे के बाद भी पाप का साथ नहींदिया . मैनें डराने-धमकाने ,भय दिखने आदि आदि के बाद भी अनुचित  अनैतिक स्वीकार न तो किया , न उसका भागीदार बना . .,सिर न झुकाया ,आत्मा नहीं बेचीं - न मरने दी .

Saturday, 11 April 2015

कितना डरूंगा और क्यों , कब तक .
क्यों डराना चाहते हो ,किसके बहकावे में हो .
We learn and yearn.
वाह रे वे , और वाह रे हम .
पाप करने -करवाने की कला को ही उन्होंने पुरुषार्थ अपने लिये तथा अपनों के लिये बना रखा है - बाकी सब के लियेतो उनके पास अनोखे तर्कों से सजे उपदेश हैं ही , क्या सफाई से उपदेश दे डालते है , हमारे लिये उन सबों  ने भयानक भ्रम जाल फैला रखा है .हमारे लिये तो उन्होंने सत्य के चारों और ऐसा आवरण डाल रखा है की हम उनके द्वारा दिखाये जा रहे आभासी सत्य को  ही सब कुछ समझ ले रहे हैं .हम तो यहाँ सत्य की अन्य कोई कल्पना है भी यह तक नहीं समझ सकते ,ऐसा कठिन सामूहिक तांडव फैला  रखा है .
ये लोग अपनों से संकेत में बोलते रहते हैं .यह गुप्त सम्वाद इनका टॉप सिकर्ट है
इनकी हाँ  और ना के अलग अलग समय में अलग अलग अर्थ होता है .इनके निर्णय दूरस्थ इनके अपने स्वार्थ के अधीन ही होते है ,रहते हैं और केवल इनके स्वार्थ की  पूर्ति  करते रहते हैं .इनकी भाव भंगिमा के इनके अपने लोगो के लिये गुप्त अर्थ  होते हैं .उसे आम आदमी-आम जन जानना तो कठिन सोच तक नहीं सकते .अवसरवादिता इनके स्वाभाविक अंग-वस्त्र-आभूषण होते हैं .
उन्होंने सदियों से सत्य के उपर अनेकानेक भेद पैदा कर रखें हैं और हमें मिथ्या नैतिकता के नाम पर पंगु बना रखा है - हमें मिथ्या भय दिखा भयभीत कर रखते हैं .भारी घाल मेल है भाई . भारी घालमेल .बचना बहुत मुश्किल .
पर असंभव नहीं .
कोशिश की ही जा सकती है .
बस कोशिश की शुरुआत भर करनी है .
यह तो अभी तुरंत की जा सकती सकती है .
अब देर कैसी
सफलता भी देर सबेर मिलेगी ही .
पाप करना एक कला है .पाप को पचाना भी एक कला है .इस कला को आम नहीं होने दिया जाता . आम लोग इस कला के भेद जान तक नहीं पाते . पाप करना सहज भाव से कोई सिखाता नहीं . राजा के घर के पाप व् उसकी कला केवल राज पुत्रों को ही बताई जाती है वह भी इस चेतावनी के साथ कि इस रहस्यमयी विद्या का सार बाहर आम नहीं होना चाहिये .इसी प्रकार प्रत्ये वृत्ति के अपने पाप-रहस्य होते हैं .सुग्रीव से मित्रता करने के लिये बलि का बध  और अनंत उदाहरण हैं .
पाप करने का साहस भी सभी
को नहीं होता .
पापी समझ का एक अपना शास्त्र है .पापियों का एक परिवर , समूह गोत्र होता है .ये सभी परस्पर अलग अलग दिखने के बाद भी एक ही होते हैं .परस्पर एक दुसरे को सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं .इन्हें लड़ना भिड़ना भी होता है तो आपस में ही लड़-भीड़ जाते है .क्या मजाल की बहरी कोए शख्स इनके अभेद्य  किले में झांकें भी .
निर्ल्ल्जता इनके घर की शोभा .निर्दयता इनके बाल बच्चे . स्वार्थ तो इनके परिवार का करता धर्ता . मूल्यों के साथ खेलना  -उन्हें उलट -पुलट करना इनका मुख्य शगल , पाखण्ड इनके घर की कुल देवी ,ब्यसन और ब्याभिचार ही इनके घर का स्वाभाविक आथित्य सत्कार , पर सम्पत्ति-सुख-स्त्री  सभी कोअपना समझना ही इनका चरित्र, मिथ्या भाषण ही इनका धर्म .
बड़े प्रतापी हैं येन . अपने में ही कटते मरते भी रहते है - शेष दुनिया को दिखने के लिये ...
उन्हें महारत हासिल है चेहरे को पत्थर दिखाने में
रंगो को वे ओठों तक भी कभी नहीं आने दे सकते .

आँखे उनकी पथरा जायेगी ,मजाल है आप पढ़ लें
इतनी तेजी से रंग बदलती चमड़ी, छु नहीं सकते

शारीर की खुसबू हो या और कोई गंध , जज्ब है
पसीना हो या बुखार ,कोई पहचान  नहीं सकते  
छोटे छोटे कदमों से ही मनुष्य ने अभी तक की यह महती यात्रा की है ,आगे भी इन्हीं छोटी छोटी हथेलियों से छोटी छोटी इंट एक के बाद एक हम रखते जायेंगे और आगे का जमाना गढ़ते जायेंगें ,हर कदम नई दुनिया बसाते जायेंगे .
सहस्त्राब्दियाँ नन्हें पलों से ही बनती रही है , समुद्र बूंदों का ही संमुच्चय है , वास्प-कण ही शक्तिशाली बादल बन घनघोर चमक गर्जन और बिजली पैदा करते हैं .

बढ़ो भाई ,अच्छी बात है ,आप बढ़ोगे तो अच्छा लगेगा
पर औरों को भी बढ़ने दो ,उपर चढ़ लेने दो ,शिखर तक
शिखर पर किसी  का अधिकार कभी नहीं हुआ करता
शिखर पर कितने भी कितनी भी बार पहुँचते रहते हैं
शिखर हरदम बाट  ही जोहता है एक नये विजयी का
शिखर तक  प्रस्थान करने वाले हर हौसले को नमन
बस आप अपने इर्ष्या बाण को तरकस में ही सम्भालें
बढ़ने ,उगने, चढ़ने पर आपका एकाधिकार तो नहीं है .
मैं और मेरी यादें आज भारी होती जा रही हैं
कुछ भूले जा रहा हूँ ,उम्मीदें सामने आ रही है
तुम्हारी ही याद ,वही चेहरा ,भूले जा रहा हूँ
याद और उम्मीद दोनों भारी होती जा रही है .
जाने कहाँ गये मेरे अपने ,
जाने कहाँ गये मेरे सपने ,
अपनों के साथ जो देखा 
वो सपना औ वो अपना 
इस तरह तो कसे कटेगी
यह रात औ यह जिन्दगी
कोई भी क्या साथ न देगा 
कौन आखिर माफ़ करेगा 
कदम किस ओर बढ़ाऊँ 
कहाँ कोई अपना मिलेगा   
 

Friday, 10 April 2015

मूल्यों का यह कैसा संघर्ष ,कैसी अदला बदली .
कब बंद होगी यह अपने मन के मूल्यों की खेती .
अन्याय वह भीं न्याय के वेश में ,वह भी अकारण !
 बंद होगी यह दोहरी तिहरी विक्षिप्त मानसिकता ?
जो जितना निर्दोष ,उसको उतनी प्रताड़ना ,आखिर क्यों ? जो जितना कोमल उसकी उतनी कठोर परीक्षा .
जो जितना पवित्र उससे उतनी अधिक विनाशकारी  अपमानजनक जिरह .आखिर क्यों ?कब थमेगा इस अन्याय का यह भोंडा आग्रह .
निर्दोष चिड़िया ,आदि आदि का शिकार करना  ?
क्या खूब पढ़ते हो ,कैसे पढ़ते हो ?
चलो जो भी हो तुम ,अच्छे लगते हो !!

मैं तो लिखता हूँ ,खुद से बातें करता हूँ
तुम क्या,क्यों पढ़ते हो ,मैं तो बहता हूँ

शब्दों के घर , इन्हें कलम से बनाता हूँ
सकूँ देते मुझे , हल्का होके मैं रहता हूँ .

अकेलेपन के साथी, मेरा मन लगाते है
भार मेरा ये वहन कर, हल्का बनाते हैं  
कितने ऐसे हैं जो निर्दोष हैं पर अपमानजनक दुःखदायी उबाऊ प्रक्रिया भोगने को विवश होंगे . पर वे जानते हैं और समाज भी जानता है की उनके साथ न्याय नहीं हो रहा . समाज की  सहानुभुति  उनके साथ होती है .
दूसरी और कुछ ऐसे हैं जिनका हर कुछ किया समाज के सामने है ,समाज उससे छुब्ध है , पीड़ित है ,शर्मिंदा है ,संस्थाएं जड़ तक से हिल चुकी है  ,समाज का विश्वास उनके कामों -करतूतों से डगमगा रहा है .पर किन्हीं कारणों से उनका सब कुछ सामने आने के बाद भी बचे-खुचे समाज और सामाजिक विश्वास को बचाए रखने
रखने के लिये उनके विरुद्ध कोई प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की  गयी. पर समाज तो उनके किये से लज्जित तो  है ही न ,समाज के सामने तो उनका किया सब कुछ सामने आ ही गया . उनका विशेष कुनबा,उनकी विशेष धरती पीड़ा -अपमान से कराह रही होगी और उनके पास बस बेशर्म की तरह खीस निपोरते अपने स्खलित सम्मान की छिन्न -भिन्न दागदार काली धूमिल हो रही चद्दर को यह वहाँ पसरते , छिपाते ,सकुचाते या निर्लज्जता से नुमाईस करते रह जायेंगें .

बड़े जतन से हम अपरिवर्तनवादी बने हुए है और निरन्तर प्रकृति के सहज शांत परिवर्तन के साथ लगातार अशांत संघर्ष  कर रहे हैं. हमारे  विजयी होनेका कोई प्रश्न ही नहीं है  
Let us share a smile a day as many times as possible and the world will be happier with every share.
बच्चो को कुछ करने का लक्ष्य सुझाईये ,निर्णय बच्चों को हि करने दीजिये .बच्चों पर  भरोसा कीजिये तो सही .केव्ल्बच्चो पर लदिए मत .अपने वर्तमान के लिये बच्चों के भविष्य को बलिदान मत करिये .आप बच्चों के माता पिता हैं ,मलिक -मोख्तार नहीं-बच्चे आपकी जायदाद नहीं . बच्चे मानव है ,वे इस धरती पर आप्जैसे जन्म ग्रहण किये थे वैसे ही वे भी किये ही . आपका भी जन्म एक्प्रकृतिक घटना है , बच्चों का भी .बच्चों से उनके माता पिता  होने की कीमत मत वसूलिये .यह सर्वथा अनुचित है . बच्चे अपनी प्राकृतिक चर्या से इस धरती पर आये है . यदि आप उनके बायोलोजिकल पेरेंट्स के आलावा प्रोपर सोसल पेरेंटिंग भी दे सकते है तो वेळ एंड गुड .
विद्यालयों को प्रयोगशाला मत बनने दीजिये .न हीं विद्यालयों में चंद सांचों में विद्यार्थियों को ढालने की कारखाना बनने दीजिये .पुस्तकें खुद में ज्ञान नहीं हो सकती ,वे तो पूर्व की पीढ़ियों के द्वारा आगे वाली पीढ़ियों को यह सूचना मात्र है की पूर्व की पीढियों ने यहाँ तक सोच-समझ -देख -भाल लिया  है और पूर्व की पीढ़ियों का यह निष्कर्ष है .इसे जांचने से पूर्व की पीढियों ने न तो रोका है , न नई पीढ़ियों को रूकना चाहिये . बस चलते ही रहना है . अहर्निश .विद्यालयों का विद्यार्थियों कि ध्यानशाला ,विचारशाला ,कल्पनाशाला ,स्वतंत्रता-गृह आदि ,उतुंग-वितान बनाईये .नये जीवन को नया सोचने दीजिये , पुराने को ज्न्जीर से मत जकड़ीये  . ऐसा नहीं  है  की जो कुछ पूर्वजों ने सोच-समझ लिया वह अंतिम सत्य है , उसके आगे कुछ नहीं .नई पीढ़ी कों नई  दिशा में आगे बढ़ने दीजिये .उसे बांधीये  नहीं . आगे बढ़ने दीजिये . सब कुछ पुराने अनुभव की कसौटी पर ,पुराने किताबी ज्ञान के सन्दर्भ  में नही सोचिये .न जान्चीये .
क्या तो हो  ही गया , क्या तो खो ही गया,क्या तो रह ही जायेगा ,कब कहाँ कौन कैसे चला जायेगा ,आने वाला बिना पहचान बताये कैसे आयेगा ,कैसे जायेगा ,क्यों तो वह आयेगा , क्यों तो  वह चला जायेगा - रूकने का तो सवाल ही नहीं ,कौन रोकेगा ,और रोकने से क्या रूकेगा - कहाँ तो रुकेगा ,रूकने की कोई जगह भी तो नहीं , किसी के रोकने से कौन आज तक रूका है , और जब चलना ही है वह भी बिना मर्जी के तो यही सब चलने के लिये तैयार रहना ही मुनासिब है .
आना , बुलाना ,रोकना ,रूकना ,चलना ,चलाना ,उठाना ,बैठना , बोलना -चलना ,आ कर बैठना,उठ कर चलना  बस इतना ही तो जीवन है .


मिल बैठ कर बताने -बतियाने  से बहुत कुछ संभल जाता है ,समझ में आ जाता है .
मन की मिठास तुम्हे दिखाना चाहता  हूँ ,कह कर बताने से क्या होगा , चख कर तो सभी जानते पहचानते है ,
मैं तुम्हे मीठास  अपने मन की सरे आम असल शकल में रु बरु दिखाना चाहता हूँ .
एक बार मेरे अन्दर की बात जब मैं असालतन  दिखा सकूंगा और तुम देख सकोगे तब मेरे अन्दर की मिठास  के अलावा और भी बहुत कुछ है , वह सब देखा और दिखाया जा सकेगा .
यह काम बड़ा कठिन सा है ,देखूं कितना कर सकूँगा .
मीठा -खट्टा , तीता -नमकीन ,कसैला -खारा ,पनियाया -सूखा - कैसा कैसा ,ऐसा -वैसा -सभी कुछ तो होता है - सभी कुछ मेरे पास भी है ही बस मैं उसे चखने-चखने की सीमा से आगे साक्षात् देखने-दिखाने  तक ले जाना चाहता हूँ ,सबके साथ बाँट लेना चाहता हूँ .
Ye ,the old ,please lend me your ears,
Your rigidity hurts the new ones
माँ , बस रक्षा करो ,रक्षा करना माँ . मैंने अपना सबसे बड़ा फूल-सम्पत्ति मूल आपको भेजा है , स्वीकार करो माँ .
_{}_
बस प्रार्थना दम भर , काम दम भर , लड़ना दम भर , करना दम भर - रुकना नहीं हैं .
I'll resort to my manliness and try not to be emotional.
जिसे देखो गरीब का खून चूसने में लगा है।गरीब का खून किसे पसंद नही आता।जी भरकर हँस लो  गरीब पर.
 ये भी जानते हैं मैं गरीब हूँ।
 संघर्ष करो और गरीबी को उतार फेंको।
मैं और मेरा जीवन पारे के समान हैं .
आज और अभी वह मेरी अन्यतम एकमेव शुभचिंतक मेरे लिये प्रार्थना करते हुए एक मंजिल की और जा रही है .प्रभु सब कुछ भली -भली करना .
परम पिता  आपको _{}_

और अपनी चाची -माँ के हाथों माला पहन कर धन्य हो गया .अपने माता पिता से मिले प्रेम तो मेरा ज्न्म से अधिकार है - उनके हाथों सम्मान का मतलब है उन्होंने मेरी जीवन यात्रा के फलाफल पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी .मेरे लिये ये अन्यतम पुरुस्कार तथा उपलब्धि है . प्रणाम !!!
पितृ-देवों को  प्रणाम .
गृह देवों को प्रणाम .
गृह देवियों को प्रणाम .
वंश के समस्त पूर्वजों को प्रणाम .
समस्त गुरु जनों को प्रणाम .
मनोकामना सिद्धिदात्रि  समस्त  भगवातियो को प्रणाम .
विघ्न -बाधा हरन कारिणी समस्त शक्तियों को प्रणाम .
समस्त संताप कारी  शक्तियों के विनाशक विष ब्याधि हर्ता  शिव के समस्त रूपकों को प्रणाम .
समस्त सफलता एवं सिद्धियों के दाता  समस्त गणेश रूपी  देवों एवं  शाक्तियों को अनंत प्रणाम 
हे अपमान की घुंटी देने वाले वीर ,तुम्हारा लाख लाख शुक्रिया  कि तुमने सम्मान की भूख जगाई ,अपमान की असह्य पीड़ा और कडुआहट -कसैले पन से परिचय करवाया - बहुत बहुत धन्यवाद .

Thursday, 9 April 2015

सच तो यह है कि तू मेरे हो -मैं तुम्हाराहूँ ,रहूँगा .
अनुनय विनय के आलावा क्या और कुछ भी रास्ता नहीं है , केवल दास बनना और बन जाना या बना  देना या बना लेना या बना देना  ही जीवन है .
एक बार स्वतंत्रता  का उपभोग करके तो देखो ,उन्हें स्वतन्त्र कर के तो देखो , उन्हें स्वतंत्रता का वरदान दो ,अपने शिष्य होने के दास्य भाव से मुक्त हो जाने दो अपनी कृपा के बहार -भाव से मुक्त हो जाने दो , माना की तुम्हारा उन पर उपकार है , पर जो तुमने उनके लिये किया वह तुम्हारा कर्तब्य भी नहीं था क्या , तुम्हरे अपने कर्तब्य  पालन से यदि किसी का लाभ हो ही गया तो इसके कारण एहसान का दावा कर किसी को अपना दास बना ही लेना , जन्म -जन्मान्तर के लिये शिष्य-प्रचारक बना दलन कितना उचित है . तुमने तो अपना कर्तब्य पालन भर किया था पर उसके बदले उसे दास बना लिया -अनुचर बना डाला -उसकी स्वतंत्रता का अपहरण कर डाला .उसे मुक्त कर दो . प्लीज .


टैक्ट के नाम पर यह क्या सीखने सिखाने की बात करते हो ,मेरी तो समझ के परे की बात है .

Wednesday, 8 April 2015

आसमान गिर तो नहीं ही जायेगा
जो तुम मेरे पास आ ही जाओगे 
अपने ही हाथों अपना परदा उठाने का जी चाहता है 
अपने आप को बस आम कर  डालने का जी चाहता है .
डरता हूँ , अपने ख़ास मुकाम से नीचे , कैसा लगेगा
बेपर्द होने पर या आम भर रह जाने से कैसा लगेगा  
 
नाराज होने जैसी न तो कोई बात है,न हालात ,न ही औकात .

Tuesday, 7 April 2015


जमाना केवल उत्तर ही क्यों देता है ,यह प्रश्न पैदा क्यों नहीं करता
दूसरों के जन्माये प्रश्नों को गोद ले लेने भर से मेरा शहर नहीं बसता
प्रश्न पैदा करने के लिये गर्भ धारण करने की प्रक्रिया जो नहीं सहता
ऐसा जमाना हर वक्त दुसरे के आँगन के प्रश्नों को निहारता ही रहता 
क्या खूब खेलते हो ,खेल खेलते हो ,हमे खिलौना बना कर यह कैसा खेल किस लिये खेलते हो ,
क्या खूब खिलाते हो ,खेल खिलाते हो ,हमें खिलौना देकर हाथ में ,यह खेल किस लिये खिलाते हो
खेल को कभी खेल कहते हो ,इसी खेल में  कैसे कैसे खेल खेलते हो ,न जाने कब खेल समेट लेते हो
थका देते हो ,खेल खेल कर कैसे खिला देते हो ,खेल खेल में किससे किससे कैसे कैसे मिला देते हो
हमें ही खेल बना देते  हो, जब जी चाहा खेल लिया ,खिलौना बना कभी खेला, कभी बनाया खिलाड़ी है
हम भी खेल देते है ,जब कभी नादानी में खेल भी लेते हैं ,तोड़ देते बना बनाया खिलौना बन अनाडी हैं 
कृत्य है जो , उसके लिये सब कुछ किया ही भला .
 न पाप से बचो न पापी से बचो ,
बचना है तो बस पाप भावना से बचो ,पाप कामना से बचो ,पाप पालना से बचो ,पाप याचना से बचो ,पाप प्रताड़ना से बचो .पाप प्रसारना से बचो ,पाप वासना से बचो ,पाप विचारना से बचो,पाप प्रेरणा से बचो ,पाप उत्प्रेरणा से बचो ,पाप उत्तेजना से बचो ,पाप उद्वेगना से बचो,पाप चेतना से बचो ,
 . पाप और पापी तो आने जाने की चीज है - स्वत नष्ट हो ही जायेंगें .

Monday, 6 April 2015

प्रेरक बनना ,प्रेरणा देना ,उत्तेजित करना , उन्हें बढ़ने को ,उगने को , कुछ करने को ,कर डालने को विवश करना सहज काम नहीं है .एक तो वे स्वयं संकोच में , दूसरा डरे हुए ,तीसरे पीढ़ियों के बीच की खाई , चौथे उनका आत्म विश्वास  एवं योग्यता शायद अभी प्रमाणित नहीं ,परखी नहीं गयी अभी  -शायद  वस्तुतः आवश्यक स्तर से कम -और अंत में पूर्व में उन्हें कभी किसी ने इस तरह खोदा नहीं गया है ,कोड़ा और उपजाया नहीं गया है इसके कारण संशय  -अविश्वास की स्थिति .- अनजाना भय ,नैतिकता के प्रश्न ,औचित्य का  प्रश्न .
इन सब के बीच एक नयी काम करने वाली ,नयी सोच वाली कलात्मक रचनाधर्मी पीढ़ी को जगाना ,बनाना,उसे आगे बढ़ाना ,उसे अपने आपको सौंप देना , उस पर भरोसा कर डालना ,उसके भरोसे नयी योजना बना कर पूरा करने का संकल्प ले  लेना - बड़े खतरे वाले निर्णय हैं .
कानून कम तो  कानून का उल्लंघन भी कम
कानून की धौंस दिखा कर भ्रष्टाचार भी कम  
हर बात पर लिखी लकीर का हवाला देना बंद
बात बात पर कचहरी,घूमना घुमाना भी बंद
कानून के साथ बंध जाने वाले खर्च होंगे बंद
कानून के नाम पर अनपढ़  का शोषण बंद
कानून गये  कितनी कानून  की दूकान बंद
कानून कम तो कानूनी हड़ताल , बंदी बंद
कानून बंद तो शराब को कानूनी मोहर बंद
अरबो खरबों का कानूनी खर्च का रास्ता बंद
कानून बंद तो भाईभतीजावाद का रास्ता बंद
भाई गिरी बंद ,दादागिरी बंद , बाबूगिरी बंद
कमाओगे तो खाओगे , भीख लेना -देना बंद
ब्लैक बंद ,इंस्पेक्टर बंद ,रिपोर्ट ये सब बन्द
नकली खातो को कानूनी बनाना -बताना बंद
नकली डिग्री ,नकली कालेजों का धंधा बंद
इनको कानूनी कपड़े  पहनाना -यह सब बंद .
वर्षों की उम्र पाए ये रक्तबीज मुकदमे बंद
इन मुकदमों से जी रहे सारे पराश्रयी बंद
कानून कम तो  हमारी परेशानियाँ कम

चलो ,अब तो शुक्रिया तुम्हारी अदा कर दे
की सलीके से गुनाह करने का इल्म दे गये
गुनाहों से फासला रखते थे हम जमाने से
तुम गुनाहों से दोस्ती की इजाजत दे गये
गुनाहों से क्या रिश्ता तुम्हारा ,तुम जानों
हम तो तुम्हारे एहतराम में इसे जान गये
जो रहा  अनजान  हमारे लिये  आज तक
तुम्हारे तुफैल में आज हम उसे मान गये  
मय्यतों का इतना जिक्र
जो जिंदा हैं ,क्या है फ़िक्र !
बुतों को ले इतना बवाल
उसूलों का रहा कितना फ़िक्र
काफिरों से निपटने चले थे
नमाज तक की न रही फ़िक्र
गुनाहों का सीर कलम करो
तब करना इन्सान  का जिक्र
लिबास कोई सा भी है तुम्हारा
न हमें कोई फ़िक्र ,न है जिक्र

रास्तों में दफन है कितनी मंजिलें
ये मंजिलों को आगे आने ही नहीं देते .
कितने कारवों को छिपा लिये फिरते
की दास्ताँ कहीं आम न हो जाये .
रेत गर्म हो ,कदमों को जलाती हो
गहरा समन्दर हो ,सपनें डूबाता हो
तूफान हो , अँधेरा हो ,कुछ नहीं हो
 फिर भी वक्त की छाती पर अब
एक निशान अपना मिटा नहीं सकोगे .
भले वक्त गुजर जाये कई बार ,
रास्ते पुकारते रह जायेंगें
मंजिले हर कदम मौजूद रहेगी
गर्म रेत नखलिस्तान बनायेगी
समन्दर कश्ती किनारे लगायेगा
तूफ़ान हिफाजत का वादा करेगा
अँधेरा रौशनी लिये आयेगा
पर वक्त की छाती का वह निशान
जमाने को हमारी याद दिलायेगा .

कल और आज
अब कैसे हो
बताओगे नहीं
कल कैसे थे
आज कैसे हो
क्या लग रहा है
कल कैसे होओगे
कल जैसे ही
या आज जैसे
या कुछ बदला सा
कितना बदलोगे
अपने आप को
अपनों को
और फिर अपना
या अपनों का
एक नया सपना
कब देखोगे
सपनों को जगाओ
अपना बना लो
सपने उगाओ
सपने जगाओ
आज का सपना
कल होगा अपना
आज से बेहतर
कल होगा ही
बस एक सपने
कुछ आँखें
कुछ हाथ
कुछ पांव
थोडा माथा
बस पसीना
थोड़ी हंसी
थोडा अपनापा
परहेज और
 कुछ दूरियाँ
छोटे नहीं
कुते नहीं
बस इतना ही
तब देखना
कल कितना
सुंदर होगा


Sunday, 5 April 2015

संविधान तो  है ही न, इत्ते सारे कानून गैरजरूरी .कहीं यह खतरे की घंटी कि आवाज तो नहीं है
. न्यायपालिका के लिये  खतरा ,नया बोझ ,जनता के लिये आगे एक अँधेरा  और ब्लैक होल  और अलीबाबा खुल जा सिम सिम की तरह मेरे जो मन में आया  किया ,करूँगा - जाओगे कहाँ - सारे कानून ही खत्म -न कोई स्टैण्डर्ड ,न रुल ,बस जो जब जैसे मन आया किया -करेंगे ,नहीं पसंद तो जाएये हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट -उसके आलावा कुछ नहीं-कहीं कुछ नहीं .नियम कानून बोझ .

क्या हम मुखे कानून की और बढ़ रहे है .
क्या हम सीधे दो अतिचारी स्वेच्छाचारी शक्तियों के बीच की रस्साकस्सी और अधिनायक प्रवृत्ति की और बढ़ रहें हैं .
हमारा अपना क्या होगा .क्या कोई भी हमारा अपना नहीं है .क्या ह्मारा अस्तित्व महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ जायेगा .
‘कानून और संविधान के आधार पर फैला देना आसान है। धारणा के आधार पर फैसले देने के प्रति सचेत रहने की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा कि धारणा अक्सर ‘फाइव स्टार कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित होती है।
स्वमूल्यांकन का आंतरिक तंत्र होना चाहिए जो एक कठिन कार्य है। 
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हम (राजनीतिक वर्ग) भाग्यशाली हैं कि लोग हमपर नजर रखते हैं, हमारा मूल्यांकन करते हैं। आप (न्यायपालिका) इतने भाग्यशाली नहीं हैं।’’ -
जहां आलोचना की काफी कम संभावना रहती है, वहां समय का तकाजा है कि स्व मूल्यांकन के लिए आंतरिक तंत्र बनाया जाए जहां सरकार और राजनीतिज्ञों की कोई भूमिका नहीं हो।’ -
‘‘अगर राजनीतिक नेता या सरकार कोई गलती करती है तो न्यायपालिका की ओर से नुकसान की भरपायी का अवसर होता है। लेकिन अगर न्यायपालिका  गलती करती  हैं, तब सब कुछ समाप्त हो जायेगा।’’ 
न्यायपालिका पर लेश मात्र भी भरोसा डगमगाता है, तो इससे राष्ट्र को नुकसान होगा। 
न्यायिक प्रणाली  में हम जितनी जल्दी प्रौद्योगिकी लाएंगे। उतनी ही सरलता से यहां गुणात्मक बदलाव देखने को मिलेगा।"
यदि हम न्यायिक प्रणाली में प्रौद्योगिकी का अधिक इस्तेमाल करेंगे तो यह उतने ही बेहतर तरीके से काम करेगी।"
"न्यायपालिका को शक्तिशाली और संपूर्ण दोनों होना चाहिए। यह एक ऐसा स्थान है,
हर चीज के लिए कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़े, संविधान हमारे लिए दिशा निर्देश देता है।
बात जहाँ पसंद और नापसन्द की हो जाये तो सामने वाले की पसन्द के पैमाने पर खरे उतरने कर लिये कब कितना और क्यों झुका ही जाये ,और यदि झुकने का सिलसिला शुरू हो ही गया तो वह कहाँ रुकेगा ,कोई नहीं जानता - किसी के सामने बेवजह आत्मसमर्पण कर देना मुझे तो पसन्द नहीं


यह सही है की मेरी बुनियाद नहीं है पक्की , पर मेरे हौसले है इतने पक्के की कोई हिला तो सकता ही नहीं ,
जिऊंगा हर क्षण ताकत भर ,बढ़ता रहूँगा  हर वक्त केवल जमीन के अन्दर जिन्दगी तलाशती जड़ों के बल
रोज  निकलेगी नई कोपलें , नई फुनगिया , रोज  नये फाखते अपना अपना एक नया घोसला बनायेंगे
नई उम्मीदों का ये सिलसिला बस चलता ही रहेगा ,मेरे साये में हर पल नई हंसी बस  नया घर बसाएगी




विवेक ,विचार विज्ञान , विनय ,विश्वास, विकास  के ग्राहक कम और विषय , विलास , विस्मय , विभ्रम, ,विश्राम , विरति ,विघटन , विच्छेद ,विप्लव ,विद्रोह , विष्फोट सब को लगभग सब समय आकर्षित करता है - कुछ  कौतुहल वश , कुछ क्षणिक आवेश के वशीभूत , कुछ सहज आकर्षण ,कुछ अहम् वश ,कुछ लोभ वश  ,कुछ क्रोध वश , कुछ काम-आवेग वश ..
शांत भाव के ग्राहक कम ही मिलते है .मिलते भी हैं तो बस मजबूरी में . मजबूरी हटी  और चल दिये नाचने , कूदने , गाने , टूटने , तोड़ने , फूटने- फोड़ने .

Saturday, 4 April 2015

सहज प्रवाह के साथ गमन करोगे ,अनुसन्धान करोगे ,मंथन- विचरण करोगे ,विस्तार -विकाश करोगे तो लक्ष्य सहज भाव से स्वयं प्रत्यक्ष होते चलेंगे . सहज गति असंभव संयोजन तथा दृश्य से सक्षत्कार करा  डालती है वह भी नितांत सहज भाव से .
बस सहज जितना ही सहज हो भर जाना है . बाकी सब कुछ केवल इच्छा भर से  ही हो जायेगा .
असहज होने रहने या करने के सोच,संकेत  प्रशिक्षण ,आदेश ,उफान,उत्थान ,विचार ,दृश्य ,दर्शन ,कृत्य,कर्म से बचना ही उचित है -हर कीमत पर .
असहज भाव के प्रभाव  में सहजता के सहज प्रवाह में बाधा तो  पहुँचती ही  है . हमारी उर्जा बढ़ने -बढ़ाने की जगह लड़ने -लड़ने में लग जाती है.हम सहज की जगह असहज होने की चेष्टा करते हैं . आवरण का सहारा लेते है . जो है उसे छिपाते हैं ,जो है  ही नहीं उसके होने का मिथ्या अस्तित्व -भाव सिद्ध करने का प्रयास करते हैं .
भाव सम्पत्ति का धारक केवल अपने  विवेक और इच्छा शक्ति का समुचित प्रयोग  कर अपनी भाव सम्पत्ति सत्पात्र को दे सकता है, भाव सम्पत्ति अर्जित भी अपने भावार्थ की तीब्रतम इच्छाशक्ति से ही  की जाती  रही है  - भाव सम्पत्ति का  धारक अपनी भाव सम्पदा का परम-स्वतन्त्र स्वामी ,उपभोक्ता,नियंता ,प्रयोक्ता तथा निष्पादक होता है .
भाव सम्पत्ति अपात्र को  हस्तान्तरित  हो ही नहीं सकती .इस हस्तांतरण के लिये केवल भाव योग्यता- भाव पात्रता की ही आवश्यकता है ,न स्थूल पात्रता देखी जाती है ,न रक्त पात्रता .यह सब परम स्वैच्छिक  हैं .देना और लेना दोनों ही अनन्तिम रूप  से किसी विधि विधान से नहीं बंधे हुए हैं .इनका उद्गम अथवा निष्पादन परम स्वतत्र रूप से होता है .
जिसने इन्हें धारण किया उन्होंने भी अपनी पात्रता स्वयं बनाई .वे इसका त्याग भी स्वयं स्वेच्छा से  ही करेंगे .   जिसके प्रति करेंगे , या किसके प्रति कब करेंगे ,कैसे करेंगे , क्यों करेंगें -यह सब वे ही जानते हैं -निर्धारण करते हैं .हाँ लेनेवाला कई बार संकोच में पड़ जाता है.लूँ यां न लूँ . मैं इसका पात्र भी हूँ या नहीं .मुझसे सम्भलेगा या नहीं . यह उचित होगा या नहीं . यह नैतिक होगा या नहीं . यह भ्रम बना  रहता है ,
सम्भवतः यह भ्रम दोनों और ही रहता है .पर एक बार हस्तांतरण का भाव परस्पर स्विकृत हुआ नहीं  की सारा संशय कहीं भी नहीं रह जाता .
वैसे देने वाले को बड़े  प्रश्नों का सामना करना पड़ता है .उसकी चिन्ता भी बड़ी रहती है .इतने बड़े भाव पुरुषार्थ से स्व-अर्जित भाव सम्पदा एवं पूर्व से प्राप्त भाव सम्पदा का त्याग किसी के पक्ष में कितना उचित ,नैतिक, सुरक्षित है .
पर भाव पुरुषार्थी अपने भाव पुरुषार्थ को ही प्रमाण मानता और भाव्  मार्ग  पर चला चलता है . 
भब्य्ता की होड़ में कथित धार्मिक पूजा पाठों  ,धर्मिक स्थलों  की विकृति छिपाने के प्रयास से ह्म क्या  हासिल करना कहते हैं , ये भब्य धार्मिक  आयोजन आखिर किस उपयोगिता का सृजन करते हैं .क्या ये वास्तव मे शुद्ध व्यावसायिक आयोजन  अथवा क्रियाएँ ही नहीं हैं .
ब्यक्ति पूजा करना सहज है .ब्यक्ति का अनुसरण करना भी सहज है . ब्यक्ति  के प्रति निष्ठां का पालन करना भी सहज है .
पर भाव -धर्म -विचार -समाज  -समूह संस्था -सर्वजन को ही मात्र पूज्य मानते हुए उसी का अनुसरण  करना ,निष्ठां पूर्वक पालन करना असहज ही नहीं -लगभग असंभव है - पर बिरले ही सही ,कोई कोई चमत्कारिक ढंग से कर ले जाते हैं .
घर तो था पर घर का सकूं न मिल सका
दीवारें थी कांच की  ,खिड़की -पर्दा न था 
कितने भी बढ़ जायेंगे बेअदब दुश्मन .दोस्तों की तादाद कई गुना ज्यादा ही रहेगी .
बदगुमानियां ,बदकारी कितनी भी हो , दुआ की तासीर कारगर ज्यादा ही रहेगी 
दीवारें हजार खड़ी करना फिर भी दरींचा एक खोल कर जरूर से  रखना
गर अपना ही गरूर सताये ,या अपनों की याद आये तो ये काम आयेगा 
काबिल तो आम बनने के नहीं, तूने मुझे खास ही बना डाला .
मेरा तो कोई काम ही नहीं ,तूने मुझे उनकी आस बना डाला .
सीमा तो कुछ की भी नहीं है  - करने की या न करने की ., अच्छे या अच्छाई की या बुरे और बुराई की .
प्रश्न केवल विषय विस्तार का ही है . विस्तार की सीमा नहीं होती .
संस्था के हित में काम करना कठिन है . इस उत्साह को लोगों को समझाना बड़ा मुश्किल है .


Friday, 3 April 2015

मेरी कहानी खत्म नहीं होती -चलती रहती है ,चलती रहेगी , मैं या कि तुम या वे सब - कोई भी  कितना भी चाहेगा तब भी नहीं - कोशिश कर के थक भी जाओगे तब भी नहीं .
हाँ - कहानी में कुछ  तीता -कसैला -बेस्वाद हो सकता है - कुछ रंगों का बेमेल संयोजन भी हो तो आश्चर्य नहीं .मैनें अपने जीवन की कहानी के प्लाट की तरह पहले से निर्धारित न किया था न हो सका .
सुन्दर ही होंगे सारे रंग ,मैं दावे से नहीं कह सकता। रंगो का ,भावों का अनुपात भी सम्पूर्ण ही होगा मैं नहीं बता सकता। दावा भी नहीं कर सकता। सब कुछ , सभी जगह नैतिक ही होगा, यह भी मैं दावे से नहीं कह सकता। .
बहुत सी चीजें ऐसी होगी जो नहीं होनी चाहिये , पर हो गयी , जाने में हुई या अनजाने में - सही सही पता भी नहीं , पर कुछ थी , कुछ है , शायद आगे भी कुछ ऐसा रहे।
पर एक  बात स्पष्ट थी , है और रहेगी की दुष्ट या दूषित मानसिकता न तब थी , न अब है , न आगे कभी रहेगा . पापी जैसी किसी भावना से कभी ग्रसित रहा ही नहीं .
पाप हुआ होगा - नहीं हुआ होगा, इसका दावा मैं नहीं करता।  पाप आज भी हो ही जाता होगा - आगे भी होगा ही - पर पापकी विवेचना , प्लानिंग , विचार , उसी में डूबना-तैरना यह नहीं था , न है , न होगा।
एक उम्र थी गुणों को सीखने धारण करने की , दूसरी आई अवगुणों से बचने की ,फिर आई गुणों  को सीखाने की -अब आई अवगुणों से बचाने की .
इस अवस्था में यदि मैं संगोंपंग बिना किसी डर-भय के ,शर्म के सच-सच सब कुछ सभी को बता जाता हूँ या बताऊँ तो हो सकता है मेरे मूल्यांकन में आपको अतिरिक्त भ्र्म  हो जाए कि जिन्हें मैंने या हमने इस एवज में इतना ऊँचा मुकाम दे दिया था वे जब अपनी ही कहानी -जीवन यात्रा  के विवरण में इसे काट रहे हैं तो हमारा मुल्यांकन गलत हो रहा है - इस खतरे के बाद भी यदि  सच यदि एक ब्यक्ति कर साथ का भी हो तो उसे सामने आ जाने दीजिये .
यदि इसमें ऐसा कुछ आपको कभी मिल भी जाएकि आप मुझे कुछ और बेहतर मुल्यांकन या सहृदयता या प्रेम के लायक समझने लगे तो मेरी आप से प्रार्थना होगी की मेरा मुल्यांकन निष्ठुर -निर्दयी -निर्ल्लज्ज भाव से करे -बिना कोई दया -माया दिखाये .मुझे कोए फर्क नहीं पड़ेगा .मैं अभ्यस्त हूँ -उछ्त्मपेक्षा का और निम्नतम उपेक्षा का . मजाक आयर ब्यंग अब मुझे पीड़ा नहीं देते . अस्वीकृति मेरी नियति है - मैंने इसे बहुत पहले से -शायद बचपन से ही स्वीकार लिया है यद्यपि मैं रोज एक  कदम चलूँगा ,अपनी ताकत भर  सही चलूँगा ,मैं एक इंट रोज नई सजा कर ,सम्भाल कर सोच समझ कर आने वाले कल के लिये रखूँगा पर केवल अपने संतोष के लिये - आपको -आप सब कोआरम पहुँचाने के लिये. बस इतना ही कर चले जाने के लिये . यदि मैं चला ही जाऊं तो कम से कम एक बात के लिये इत्मिनान रहना - मैं जिया - करते हुए जिया, बनाते हुए जिया ,बचाते हुए जीया - बिगाड़ा नहीं -कभी भी किसी का नहीं .
हाँ लोभ से मेरी कभी पटरी नहीं बैठी . मैं उससे लड़ते ही रहा हूँ .
दो-चार इंट और रख ही दिया है मैनें- बस कोशिश यही रहती है -हर रोज एक नई इंट कहीं सिलसिले से , करीने से रखता रहूँ   .
आज फिर दो-चार कदम चलने का मन करता है .एक एक कदम चलते एक   रहने से ही तमाम दूरियाँ दूर होती जाती है .बस चलने का मन बने रहना चाहिये चलते रहना चाहिये .. रुकने के ठीक पहले  और बाद बस एक कदम और चल देना है - रुकना नहीं , थकना नहीं -बस चलते ही चले जाना है .
हाँ  ध्यान रहे -सिलसिले से जाना है , सम्भल कर ही जाना है ,निरंतर चलना है .




सचमुच लद जाना , लदे रहना , लदते रहना सहज सा तो है ही न .
लड़ना ,लड़े -भिड़े रहना ,लड़ते-भिड़ते  रहना थोड़ा कठिन तो है ही न .इसमें जुगत भिड़ानी पड़ती है -पराक्रम लगाना पड़ता है -जगना जगाना पड़ता है
दोनों ही विकल्प तुम्हारे पास है ,जो चाहो स्वीकार करो .
लदते तो रहे ही हो पीढ़ियों से ,आज और अब  तक,अब आगे कब तक ?
लड़ोगे कब ,लादोगे कब ,लदवाओगे  कब - या कभी नहीं ,बस लाश बने टंगे रहोगे -पड़े रहोगे . क्या यही शोभा देता है .
हार-जीत के डर से भागे फिर  रहे हो - भार का भय है ! .
तय यही तो करना है - बहार बनना या भार बनना - सुरक्षित होंना या  स्वरक्षित होना .
आपके जाने के बाद ही आपकी चर्चा हो  सकेगी ,पर यह चर्चा एवं इसका स्वरूप इस बात पर निर्भर होगा की आपके बाद की पीढी कितनी सक्षम है ..आपका अपना यश अथवा अपयश ही नहीं ,बाद वाली पीढ़ी के साधन ,मानसिकता आदि भी आपकी छवि बनने-बनाने  , बिगड़ने बिगाड़ने - में सहायक अथवा बाधक होंगे . दुसरे केवल इस  बात पर आपके बारे में कोई धारणा बनाते हैं या प्रकट करते हैं कि आपने अपने आप को उनके हवाले उनके लिये कितना किया ,अथवा नहीं किया .
आप खुद कैसे जीए या रहे , यह उनके लिये कोई खास महत्त्व की बात नहीं हैं .
वे आपको शहीद कहेंगे क्यों की आप उनकेलिए मरे .उन्हें अपना भविष्य चाहिये ,चाहे इसका मूल्य  वर्तमान का सम्पूर्ण अस्तित्व ही क्यों न हो .
हर वर्तमान भूत के अवदान पर ही खड़ा होता है


अर्जन क्यों ? मैं क्यों कमाऊं ?
यह प्रश्न एक २५ वर्षीय बाला ने इस प्रकार पूछा कि आप क्यों कमाते है ?
जीव अपनी तृष्णा के वशीभूत अर्जन करता  है.
व्यक्ति  विस्तार के लिये ही जीवन धारण करता है ,दैहिक विस्तार ,मानसिक विस्तार ,संस्कारिक विस्तार ,आध्यात्मिक विस्तार ,वैचारिक विस्तार ,भौतिक विस्तार ,अधिभौतिक विस्तार .
इसी विस्तार के समानांतर परिष्कार की भी भावना रहती  है . परिष्कार के लिये ही ब्यक्ति समूह -साधन करता है .
समागम -सहजीवन यही सोद्देश्य विस्तार -प्रयोजन परिष्कार करते हैं .
कितना कुछ कह गया वह एक आँख का एक पनियाया कोना और दूसरी आँख के कोने से बरसती आग
पनीयाई आँख में उतर आया था पानी और खून ,दूसरी आँख के कोने में चढ़ा जा रहा वही पानी और खून
एक की तासीरसे  सपने, हौसले ठन्डे हुए जा रहे थे  ,दुसरे से वही सब उफनते ,उबलते गुबरते जा रहे थे
कहना था सो तो यह कह ही गया ,अनकही ,अनसुनी भी बहुत कुछ यह सुन-सुना ,देख दिखा  ही गया 
स्पर्श और मौन ,बस यही तो सब कुछ है .स्पर्श हटा ,या मौन हुआ ,स्पर्श हुआ और मौन हटा ,इतने में ही तो सब कुछ है , हो जाता है , होते होते रह जाता है . स्पर्श हो  या है या  नहीं - , बस इतने से ही सब फर्क पड़ता रहता है . सम्पूर्ण जीवन इसी स्पर्श अथवा मौन के अलग अलग आयाम लिये है .
स्पर्श करना या न करना ही तो सीखना है,कितना ,कब कहाँ कैसे ,क्यों करना है  या नहीं करना है -बस इसी में तो सारी  .सफलता-असफलता बसी है -जीवन की सारी उर्जा के सारे आयाम -उनकी गति , मात्रा ,दिशा और त्वरिता बसी हुई है .
और यही हाल मौन होने या न होने से भी बस इसी प्रकार जुड़ा हुआ है 

Thursday, 2 April 2015

Yes, I am there
टूटने का या जुटने का एहसास ,कंपकंपी ला ही देता है 
बहुत कुछ था जो पीछे छूटता जाता है
बहुत कुछ है  जो आगे जूटता जाता है
बहुत कुछ था ढका जो ,फूटता जाता है
कमाया ,जुटाया बचाया ,लूटता जाता है।