Saturday, 11 April 2015

पाप करना एक कला है .पाप को पचाना भी एक कला है .इस कला को आम नहीं होने दिया जाता . आम लोग इस कला के भेद जान तक नहीं पाते . पाप करना सहज भाव से कोई सिखाता नहीं . राजा के घर के पाप व् उसकी कला केवल राज पुत्रों को ही बताई जाती है वह भी इस चेतावनी के साथ कि इस रहस्यमयी विद्या का सार बाहर आम नहीं होना चाहिये .इसी प्रकार प्रत्ये वृत्ति के अपने पाप-रहस्य होते हैं .सुग्रीव से मित्रता करने के लिये बलि का बध  और अनंत उदाहरण हैं .
पाप करने का साहस भी सभी
को नहीं होता .
पापी समझ का एक अपना शास्त्र है .पापियों का एक परिवर , समूह गोत्र होता है .ये सभी परस्पर अलग अलग दिखने के बाद भी एक ही होते हैं .परस्पर एक दुसरे को सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं .इन्हें लड़ना भिड़ना भी होता है तो आपस में ही लड़-भीड़ जाते है .क्या मजाल की बहरी कोए शख्स इनके अभेद्य  किले में झांकें भी .
निर्ल्ल्जता इनके घर की शोभा .निर्दयता इनके बाल बच्चे . स्वार्थ तो इनके परिवार का करता धर्ता . मूल्यों के साथ खेलना  -उन्हें उलट -पुलट करना इनका मुख्य शगल , पाखण्ड इनके घर की कुल देवी ,ब्यसन और ब्याभिचार ही इनके घर का स्वाभाविक आथित्य सत्कार , पर सम्पत्ति-सुख-स्त्री  सभी कोअपना समझना ही इनका चरित्र, मिथ्या भाषण ही इनका धर्म .
बड़े प्रतापी हैं येन . अपने में ही कटते मरते भी रहते है - शेष दुनिया को दिखने के लिये ...

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