Friday, 3 April 2015

कितना कुछ कह गया वह एक आँख का एक पनियाया कोना और दूसरी आँख के कोने से बरसती आग
पनीयाई आँख में उतर आया था पानी और खून ,दूसरी आँख के कोने में चढ़ा जा रहा वही पानी और खून
एक की तासीरसे  सपने, हौसले ठन्डे हुए जा रहे थे  ,दुसरे से वही सब उफनते ,उबलते गुबरते जा रहे थे
कहना था सो तो यह कह ही गया ,अनकही ,अनसुनी भी बहुत कुछ यह सुन-सुना ,देख दिखा  ही गया 

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