Friday, 24 April 2015

लगातार एक और कदम बढ़ाऊंगा ,
कुछ और आगे ,कुछ और ऊपर
चलता ही जाऊंगा,उठता ही जाऊंगा,
रुकुंगा नहीं ,रोकने पर भी नहीं ,
नित उगूंगा नये रूप में
नई उमंग और नया  रंग लिये,
शेष नही यह यात्रा अभी ,
शुरू होगी फिर नई तरंग लिये ,
सजा रहा हूँ तरकस फिर से
,आँखों में नई जंग लिये ,
संभाल  रहा नई चतुरंग सेना ,
 में उतरूंगा नया ढंग लिये
युद्ध बहुत से अभी हैं  बाकी पड़े
युद्धभूमि बहुत सी अभी प्यासी है
लहू अभी तो नया बन ही रहा
आप्लावित करने को काफी है
इतिहास का बनना  बंद कहाँ
इतिहास की रचना बाकी है
हर नख मेरा हथियार बनेगा
हर दांत बनेगा तीक्ष्ण कटार
आँखों में ही समुद्र आ बसेगा
साँसों से ही आंधी अब आएगी
हाथ जुड़ेंगे , नई श्रृष्टि बसेगी
पावों से हर कण  कोना जुटेगा

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