व्यक्ति विस्तार के लिये ही जीवन धारण करता है ,दैहिक विस्तार ,मानसिक विस्तार ,संस्कारिक विस्तार ,आध्यात्मिक विस्तार ,वैचारिक विस्तार ,भौतिक विस्तार ,अधिभौतिक विस्तार .
इसी विस्तार के समानांतर परिष्कार की भी भावना रहती है . परिष्कार के लिये ही ब्यक्ति समूह -साधन करता है .
समागम -सहजीवन यही सोद्देश्य विस्तार -प्रयोजन परिष्कार करते हैं .
इसी विस्तार के समानांतर परिष्कार की भी भावना रहती है . परिष्कार के लिये ही ब्यक्ति समूह -साधन करता है .
समागम -सहजीवन यही सोद्देश्य विस्तार -प्रयोजन परिष्कार करते हैं .
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