जब भी अपने साथियों को नजदीक से देखता हूँ तो उनकी विराट विरासत ,साधनों तथा सहारा देते अपनों को देख कर लघुता से भर जाता हूँ -
पर जब अपना ही किया -जिया -चला -छोड़ा -बोला -लड़ा -अड़ा ,दीखता है तो एक नया जोश आता है की मै आखिर अपने इन सरे साथियों के सामानांतर तो हूँ ही ,-उन सब को खुद से खौफ जदा देखता हूँ तो आश्चर्य होता है - उनकी आँखों में इर्ष्या देखता हूँ तो आश्चर्य होता है ,और उनके पसीने छूटते देखता हूँ तो आश्चर्य होता है ,उनकी मेरे खिलाफ गुटबंदी देखता हूँ ,पीठ पीछे मेरी चर्चा करते देखता हूँ ,और मेरी सशक्त उपस्थिति से विचलित होते देखता हूँ तो बस परमात्मा को प्रणाम करता रहता हूँ .
पर जब अपना ही किया -जिया -चला -छोड़ा -बोला -लड़ा -अड़ा ,दीखता है तो एक नया जोश आता है की मै आखिर अपने इन सरे साथियों के सामानांतर तो हूँ ही ,-उन सब को खुद से खौफ जदा देखता हूँ तो आश्चर्य होता है - उनकी आँखों में इर्ष्या देखता हूँ तो आश्चर्य होता है ,और उनके पसीने छूटते देखता हूँ तो आश्चर्य होता है ,उनकी मेरे खिलाफ गुटबंदी देखता हूँ ,पीठ पीछे मेरी चर्चा करते देखता हूँ ,और मेरी सशक्त उपस्थिति से विचलित होते देखता हूँ तो बस परमात्मा को प्रणाम करता रहता हूँ .
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