Wednesday, 22 April 2015

मैं संस्कारों का परिमार्जन करता ही रहूँगा ,शुभंकर संस्कार का अनुगमन करता ही रहूँगा ,मैं आदर्शों को अंगीकार- स्वीकार - अनुपालन करता ही रहूँगा - शेष प्रेक्टिकल  बनावटी समकालीन समाज को अटपटा लगे तो भी ,वे मुझे अप्रासंगिक मान  बैठेंगे तो भी ,आखिर आदर्श को अगली पीढ़ी तक ले तो जाना है ही न ,आदर्शों कोम्रने नहीं दिया जा सकता ,आदर्श ही समाज का जीवन रस है ,जीवन आधार है ,जीवन स्वरूप है , जीवन लक्ष्य है ,आदर्श विचार ही समाज की प्राण  वायु  है - आदर्श धारण करना ही परम कर्तब्य ,परम गंतब्य है .पदार्थ से  उपर और  अलग विचार क्षेत्र में भी विचरण ही सदाचरण है - पदार्थ को भी शुद्ध संस्कारों से परिमार्जित करना ही परम धर्म है - मैं इन सारे रे धर्मों की समस्त  आवृतियों का सम्पूर्ण पालन करूँगा .कठिन तो है ,पर किया जा सकेगा .

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