Friday, 10 April 2015

बड़े जतन से हम अपरिवर्तनवादी बने हुए है और निरन्तर प्रकृति के सहज शांत परिवर्तन के साथ लगातार अशांत संघर्ष  कर रहे हैं. हमारे  विजयी होनेका कोई प्रश्न ही नहीं है  

1 comment:

  1. जय पराजय मनुष्य के हाथ में नहीं। केवल और केवल सतत कर्म ........... हमारे लिए ईश्वर ने हमसे कहीं ज्यादा अच्छा सोच के रखा है। मन का हो तो अच्छा ....... न हो तो और भी अच्छा ..... आखिर हम हैं ही कौन अपना मंजिल का ज्ञान रखने वाले.... हाँ, सिर्फ एक ही कर्म करना है कि प्रयास में कोई कमी अपने जानते ना रह जाए.....

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