पाप करने -करवाने की कला को ही उन्होंने पुरुषार्थ अपने लिये तथा अपनों के लिये बना रखा है - बाकी सब के लियेतो उनके पास अनोखे तर्कों से सजे उपदेश हैं ही , क्या सफाई से उपदेश दे डालते है , हमारे लिये उन सबों ने भयानक भ्रम जाल फैला रखा है .हमारे लिये तो उन्होंने सत्य के चारों और ऐसा आवरण डाल रखा है की हम उनके द्वारा दिखाये जा रहे आभासी सत्य को ही सब कुछ समझ ले रहे हैं .हम तो यहाँ सत्य की अन्य कोई कल्पना है भी यह तक नहीं समझ सकते ,ऐसा कठिन सामूहिक तांडव फैला रखा है .
ये लोग अपनों से संकेत में बोलते रहते हैं .यह गुप्त सम्वाद इनका टॉप सिकर्ट है
इनकी हाँ और ना के अलग अलग समय में अलग अलग अर्थ होता है .इनके निर्णय दूरस्थ इनके अपने स्वार्थ के अधीन ही होते है ,रहते हैं और केवल इनके स्वार्थ की पूर्ति करते रहते हैं .इनकी भाव भंगिमा के इनके अपने लोगो के लिये गुप्त अर्थ होते हैं .उसे आम आदमी-आम जन जानना तो कठिन सोच तक नहीं सकते .अवसरवादिता इनके स्वाभाविक अंग-वस्त्र-आभूषण होते हैं .
उन्होंने सदियों से सत्य के उपर अनेकानेक भेद पैदा कर रखें हैं और हमें मिथ्या नैतिकता के नाम पर पंगु बना रखा है - हमें मिथ्या भय दिखा भयभीत कर रखते हैं .भारी घाल मेल है भाई . भारी घालमेल .बचना बहुत मुश्किल .
पर असंभव नहीं .
कोशिश की ही जा सकती है .
बस कोशिश की शुरुआत भर करनी है .
यह तो अभी तुरंत की जा सकती सकती है .
अब देर कैसी
सफलता भी देर सबेर मिलेगी ही .
ये लोग अपनों से संकेत में बोलते रहते हैं .यह गुप्त सम्वाद इनका टॉप सिकर्ट है
इनकी हाँ और ना के अलग अलग समय में अलग अलग अर्थ होता है .इनके निर्णय दूरस्थ इनके अपने स्वार्थ के अधीन ही होते है ,रहते हैं और केवल इनके स्वार्थ की पूर्ति करते रहते हैं .इनकी भाव भंगिमा के इनके अपने लोगो के लिये गुप्त अर्थ होते हैं .उसे आम आदमी-आम जन जानना तो कठिन सोच तक नहीं सकते .अवसरवादिता इनके स्वाभाविक अंग-वस्त्र-आभूषण होते हैं .
उन्होंने सदियों से सत्य के उपर अनेकानेक भेद पैदा कर रखें हैं और हमें मिथ्या नैतिकता के नाम पर पंगु बना रखा है - हमें मिथ्या भय दिखा भयभीत कर रखते हैं .भारी घाल मेल है भाई . भारी घालमेल .बचना बहुत मुश्किल .
पर असंभव नहीं .
कोशिश की ही जा सकती है .
बस कोशिश की शुरुआत भर करनी है .
यह तो अभी तुरंत की जा सकती सकती है .
अब देर कैसी
सफलता भी देर सबेर मिलेगी ही .
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