स्पर्श और मौन ,बस यही तो सब कुछ है .स्पर्श हटा ,या मौन हुआ ,स्पर्श हुआ और मौन हटा ,इतने में ही तो सब कुछ है , हो जाता है , होते होते रह जाता है . स्पर्श हो या है या नहीं - , बस इतने से ही सब फर्क पड़ता रहता है . सम्पूर्ण जीवन इसी स्पर्श अथवा मौन के अलग अलग आयाम लिये है .
स्पर्श करना या न करना ही तो सीखना है,कितना ,कब कहाँ कैसे ,क्यों करना है या नहीं करना है -बस इसी में तो सारी .सफलता-असफलता बसी है -जीवन की सारी उर्जा के सारे आयाम -उनकी गति , मात्रा ,दिशा और त्वरिता बसी हुई है .
और यही हाल मौन होने या न होने से भी बस इसी प्रकार जुड़ा हुआ है
स्पर्श करना या न करना ही तो सीखना है,कितना ,कब कहाँ कैसे ,क्यों करना है या नहीं करना है -बस इसी में तो सारी .सफलता-असफलता बसी है -जीवन की सारी उर्जा के सारे आयाम -उनकी गति , मात्रा ,दिशा और त्वरिता बसी हुई है .
और यही हाल मौन होने या न होने से भी बस इसी प्रकार जुड़ा हुआ है
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