Sunday, 5 April 2015

यह सही है की मेरी बुनियाद नहीं है पक्की , पर मेरे हौसले है इतने पक्के की कोई हिला तो सकता ही नहीं ,
जिऊंगा हर क्षण ताकत भर ,बढ़ता रहूँगा  हर वक्त केवल जमीन के अन्दर जिन्दगी तलाशती जड़ों के बल
रोज  निकलेगी नई कोपलें , नई फुनगिया , रोज  नये फाखते अपना अपना एक नया घोसला बनायेंगे
नई उम्मीदों का ये सिलसिला बस चलता ही रहेगा ,मेरे साये में हर पल नई हंसी बस  नया घर बसाएगी


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