Saturday, 18 April 2015


सोच रहा हूँ मैं आज विद्यालय क्यों आया हूँ - क्या लेने आया हूँ - क्या देने आया हूँ  - क्या  ले के जाऊँगा , क्या दे के जाऊँगा .
हम पढ़ते हैं - न्याय पाने के लिये ,न्याय करने के  लिये , न्यायपूर्ण रहने के लिये अन्याय को पहचानने के लिये , अन्याय से लड़ने के लिये ,अन्याय से बचने के लिये , अन्याय से बचाने के लिये .शिक्षा का अर्थ होता है -न्याय अथवा अन्याय ,उचित अथवा अनुचित को फर्क जानना ,

विद्यालय को बच्चों के प्रश्नों के उत्तर देने लायक शिक्षक चाहिये . बच्चों को प्रश्न पूछने लायक बनाईये . शिक्षकों को बच्चों की शंका समाधान करनी चाहिये ,बच्चे -बच्चे की जिज्ञासा का सम्मान होना चाहिये .. किसी भी  कीमत पर प्रश्नं दबाये नहीं जाने चाहिये , न उन्हें खो जाने देना चाहिये .वही समाज उन्नति करता है जो अपने बच्चों की जिज्ञासा  का सम्मान करता है   , उन्हें  सुरक्षा देता है ,उन्हें सुरक्षित रखता है ,ससमय उत्तर देता -खोजता है- हर बच्चे की हर जिज्ञासा ही समाज की नई प्रेरणा - सम्पत्ति है 
हमारा दायित्व  यही है की हम बच्चों के लिये जीयें - बच्चों पर हम बोझ नहीं बने . बच्चों को अपने इतिहास से बांधें  नहीं .रोटी ,कपड़ा , मकान  विद्यालयों का लक्ष्य नहीं हो सकता - इन सब की योग्यता तो मात्र प्रकृति से स्वयं आ जाती है , शिक्षा से तो उचित और अनुचित का ज्ञान आता   है ,न्याय तक पहुँच बनाती  है , सम्मान की भूख जगती है , उन्नति की भूख जगाती है .मान--मान्यता ,सम्मान , समानता ,सम्मान्यता से परिचय कराता है .                                                                                                                                    अभिवावकों को माता-पिताहोने का मूल्य वसूलने की प्रवृत्ति से बचना चाहिये                                          
 फिर दोबारा  सोचता हूँ
 आज के विद्यालय और मेरे समय के विद्यालय में क्या और कितना अंतर आया है .
हमारे समय में कंपूटर नहीं था , पोस्टकार्ड था ,टेलीग्राम था ,एस एम् एस  नहीं था ,इ मेल नहीं था , समाचार आने जाने में सप्ताह - महीने लग जाते थे ,परिवार का कोई आदमी आँख  से ओझल हुआ नहीं की उसके बारे में कोई खोज खबर का कोई साधन था ही नहीं -हम अधिक से अधिक औद्योगिक क्रांति के बारे में सोचते थे , विज्ञ का युग आ गया है कहते थे - एक बड़ी अजीब चीज थी हमारे समय में - हम प्रकृति पर विजय का सपना देखा करते थे.
आज आप सब सूचना क्रांति युग में हैं ,कहीं भी कुछ भी, सब को ,सब समय सभी तरह से मालूम है और खबर है 
कोई भी किसी भी ज्ञान के किसी भी पक्ष से अनजान नहीं रह गया है .
आज विज्ञान  के बहुत आगे हम नैनो तकनीक या उससे भी आगे हैं .
हमारे समय में स्वतंत्रता नई उम्र का बच्चा थी ,हमारे सीनियर डरते थे की ये स्वतंत्रता को,स्वतंत्र भारत को,सम्विधान को सम्भाल भी सकेंगे की नहीं .
आप आज उस युग में हो जब हमारा स्वतंत्र भारत उग कर ,बढ़ कर आत्म निर्भर हो रहा है , जवान हो गया है , सम्विधान कई बार तरह तरह से जांचा परखा जा चूका है .
आज के विद्यालय का विद्यार्थी मेरे समय के विद्यार्थी से अधिक प्रखर है , जिज्ञासु है , आश्वस्त है ,क्षमतावान है, दूर दृष्टि रखता है - शायद अधिक धारदार तथा तीक्ष्ण है ,अधिक तेज तथा विश्लेषक है ,निडर है - शायद अपने शिक्षकों से भी अधिक जिज्ञासु-तेज -उत्साही .
   मैं भी आज के पन्द्रह-सोलह वर्ष के बालकों के सामने अपने को असहाय 
पाता हूँ .                                           

roti


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