Friday, 17 April 2015

एक साथ चार पीढ़ियों का इतिहास देखना -सुनना अच्छा लगता है
कुछ लोग इस तरह व्यवहार करते हैं की उनके यहाँ लक्ष्मी पीढ़ियों तक इत्मिनान से साक्षात् विराजमान रहती है ./
उसी प्रकार कुछ लोग इस प्रकार आचरण करते हैं की यश दायक शक्तियां अपने समस्त वैभव के साथ पीढ़ियों तक उनके अखंड यश की रक्षा करती रहती है .
एकऔए  प्रकार के लोग होते  हैं जो इस प्रकार आचरण करते हैं की वेअपने बाहुबल से शक्तियों को अर्जित करते है और अपनी  अगली पीढ़ी के लिये छोड़ तो जाते है पर इस क्षेत्रमें अगली पीधियों की कोई निश्चित गति के बारे में कुछ नहीं काना जा सकता .
कुछ लोग किन्हीं कारणों से न लक्ष्मी कोप्रशान्न कर पाते हैं ,न श्री विष्णु को , न शक्ति को और व इन तीनों कि सेवा -सुश्रुषा  करते भोग माय जीवन जेते रहते है और पीढ़ी दर पीढ़ी सेवक बने रहते है .
शनैः शनैः यही उनके संस्कार बन जाते है
यश के मार्ग पर चलना संयम के मार्ग पर विवेक तथा संतोष के साथ आनुपातिक जीवन ब्यतीत करना और करवाना  ही है ,यही सीखना चाहिये ., यही सीखना चाहिये . यश के बिना लक्ष्मी का त्याग ही भला. यश न हो हो समस्त बहुबल निरर्थक .सेवा ही करनी हो तो यशस्वी की करें , कम से कम श्रेष्ठ संस्कार बन्ध  तो होंगे ही .
संस्कार आत्मा तक जाते हैं .सूक्ष्म शरीर इसे धारण करता है .श्रेष्ठ संस्कारों तक की जीवन यात्रा श्रेष्ठ यात्रा है ..



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