Friday, 10 April 2015

विद्यालयों को प्रयोगशाला मत बनने दीजिये .न हीं विद्यालयों में चंद सांचों में विद्यार्थियों को ढालने की कारखाना बनने दीजिये .पुस्तकें खुद में ज्ञान नहीं हो सकती ,वे तो पूर्व की पीढ़ियों के द्वारा आगे वाली पीढ़ियों को यह सूचना मात्र है की पूर्व की पीढियों ने यहाँ तक सोच-समझ -देख -भाल लिया  है और पूर्व की पीढ़ियों का यह निष्कर्ष है .इसे जांचने से पूर्व की पीढियों ने न तो रोका है , न नई पीढ़ियों को रूकना चाहिये . बस चलते ही रहना है . अहर्निश .विद्यालयों का विद्यार्थियों कि ध्यानशाला ,विचारशाला ,कल्पनाशाला ,स्वतंत्रता-गृह आदि ,उतुंग-वितान बनाईये .नये जीवन को नया सोचने दीजिये , पुराने को ज्न्जीर से मत जकड़ीये  . ऐसा नहीं  है  की जो कुछ पूर्वजों ने सोच-समझ लिया वह अंतिम सत्य है , उसके आगे कुछ नहीं .नई पीढ़ी कों नई  दिशा में आगे बढ़ने दीजिये .उसे बांधीये  नहीं . आगे बढ़ने दीजिये . सब कुछ पुराने अनुभव की कसौटी पर ,पुराने किताबी ज्ञान के सन्दर्भ  में नही सोचिये .न जान्चीये .

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