मय्यतों का इतना जिक्र
जो जिंदा हैं ,क्या है फ़िक्र !
बुतों को ले इतना बवाल
उसूलों का रहा कितना फ़िक्र
काफिरों से निपटने चले थे
नमाज तक की न रही फ़िक्र
गुनाहों का सीर कलम करो
तब करना इन्सान का जिक्र
लिबास कोई सा भी है तुम्हारा
न हमें कोई फ़िक्र ,न है जिक्र
जो जिंदा हैं ,क्या है फ़िक्र !
बुतों को ले इतना बवाल
उसूलों का रहा कितना फ़िक्र
काफिरों से निपटने चले थे
नमाज तक की न रही फ़िक्र
गुनाहों का सीर कलम करो
तब करना इन्सान का जिक्र
लिबास कोई सा भी है तुम्हारा
न हमें कोई फ़िक्र ,न है जिक्र
No comments:
Post a Comment