Thursday, 16 April 2015

जंगल कंक्रीट का जहाँ ,हर खिड़की उगती बाद में हैं उसकी कद-काठी और जगह पहले तय कर दिये जाते है
हर सीढी  बनने के पहले उसे नाप कर इजाजत दी जाती है , और नींव के साथ हद पहले तय कर दी जाती है .
सूरज साँझ ढले ही आता है ,सुबह होते होते साँझ हो जाती है दिन रात ,सुबह शाम कितनों के लिये बेमानी है
बरसात में भी मन मयूर नाचता नही ,हवा नहीं बस धुआँ रहता है जिसे आने जाने की इजाजत लेनी पड़ती है  
फूल,फल , सुगंध ,सब्जी भाजी ,अनाज ,पानी ,,सब बंद कर दिये गये है बोतलों में ,ट्रकों  पर घुमते फिरते  है
रास्ते ,सपने.पांव , हाथ रह ही नहीं गये ,चलते देखते , खेलते , सुनते,बोलते,रमण भी करते बस अँगुलियों से 

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