सहज प्रवाह के साथ गमन करोगे ,अनुसन्धान करोगे ,मंथन- विचरण करोगे ,विस्तार -विकाश करोगे तो लक्ष्य सहज भाव से स्वयं प्रत्यक्ष होते चलेंगे . सहज गति असंभव संयोजन तथा दृश्य से सक्षत्कार करा डालती है वह भी नितांत सहज भाव से .
बस सहज जितना ही सहज हो भर जाना है . बाकी सब कुछ केवल इच्छा भर से ही हो जायेगा .
असहज होने रहने या करने के सोच,संकेत प्रशिक्षण ,आदेश ,उफान,उत्थान ,विचार ,दृश्य ,दर्शन ,कृत्य,कर्म से बचना ही उचित है -हर कीमत पर .
असहज भाव के प्रभाव में सहजता के सहज प्रवाह में बाधा तो पहुँचती ही है . हमारी उर्जा बढ़ने -बढ़ाने की जगह लड़ने -लड़ने में लग जाती है.हम सहज की जगह असहज होने की चेष्टा करते हैं . आवरण का सहारा लेते है . जो है उसे छिपाते हैं ,जो है ही नहीं उसके होने का मिथ्या अस्तित्व -भाव सिद्ध करने का प्रयास करते हैं .
बस सहज जितना ही सहज हो भर जाना है . बाकी सब कुछ केवल इच्छा भर से ही हो जायेगा .
असहज होने रहने या करने के सोच,संकेत प्रशिक्षण ,आदेश ,उफान,उत्थान ,विचार ,दृश्य ,दर्शन ,कृत्य,कर्म से बचना ही उचित है -हर कीमत पर .
असहज भाव के प्रभाव में सहजता के सहज प्रवाह में बाधा तो पहुँचती ही है . हमारी उर्जा बढ़ने -बढ़ाने की जगह लड़ने -लड़ने में लग जाती है.हम सहज की जगह असहज होने की चेष्टा करते हैं . आवरण का सहारा लेते है . जो है उसे छिपाते हैं ,जो है ही नहीं उसके होने का मिथ्या अस्तित्व -भाव सिद्ध करने का प्रयास करते हैं .
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