Sunday, 9 November 2014

कर्ण ने कृष्ण और अर्जुन के साथ स्थान तो बना ही लिया , यह क्या कम है।
 इस स्थिति में उसे सूत -पुत्र की जगह सूर्य पुत्र स्थापित करने का प्रयास तुम्हारी मजबूरी है।
 सच यह है कि कर्ण के पराक्रम से वे सब भयभीत थे - उसे पराजित करना उनका लक्ष्य बना , क्या यह उनकी पराजय नहीं।
  कर्ण को पराजित करने की मंत्रणा ही उनकी पराजय थी।
 बारबार कर्ण  के पराक्रम को स्वीकार करना ही   पर्याप्त था - कर्ण की इतिहास -जयी विजय के लिये। 

No comments:

Post a Comment