कभी सोचा है - हमारे विज्ञापनों की दुनिया ,इसके contradictory कंटेंट ,इनकी द्वीअर्थी भाषा , सम्वाद,अतिशयोक्ति पूर्ण वीभत्स चित्र,तथ्य हमारे बच्चों को किस तरह कन्फ्यूज कर रही है .आप तो बड़े हैं - सोच समझ लेंगें - पर बालपन - निर्मल मन तो उलझता जा रहा है -अंधाधुंध विज्ञापन बजी में -और खास बात यह है कि ये विज्ञापन पंडित बच्चों के कच्चे -सच्चे मन -बुद्धि याद-दाश्त को ही बेशर्मी से टारगेट कर रहें है - Can we act still now or we will allow more damage
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