अभिमन्यु का स्वार्थ हित में उपयोग कर लेने वाले क्या कभी अपने किये पर लज्जित हुए हैं .
कर्ण का अपमान करने वालों ने क्या आज तक फिर से सोचा है .
मेघनाद ने अपने पिता की आज्ञा का पालन ही किया था ,कोई पाप नहीं .
अपने स्वार्थ में दुसरे के अस्तित्व -मान -भावना -अधिकार को हानि पहुँचाना अथवा उसका उपयोग या उपभोग, वह भी छद्म तरीके से; कर लेना क्या उचित है -- वैसे अर्थनीति -राजनीति ,चिकित्सनीति ,युद्धनीति ,व्यवहार और व्यवसाय तो इसे मान्यता देता ही है
कर्ण का अपमान करने वालों ने क्या आज तक फिर से सोचा है .
मेघनाद ने अपने पिता की आज्ञा का पालन ही किया था ,कोई पाप नहीं .
अपने स्वार्थ में दुसरे के अस्तित्व -मान -भावना -अधिकार को हानि पहुँचाना अथवा उसका उपयोग या उपभोग, वह भी छद्म तरीके से; कर लेना क्या उचित है -- वैसे अर्थनीति -राजनीति ,चिकित्सनीति ,युद्धनीति ,व्यवहार और व्यवसाय तो इसे मान्यता देता ही है
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