Tuesday, 11 November 2014

आओ , मेरे कंधे पर सर रखो , मैं थपथपा देता हूँ , नींद आ ही जाएगी।
मेरी हथेलियों पर अपनी हथेली हल्के से रखो , और मैं कहता हूँ तुम केवल सुनो - " सॉरी ! अब तो हंसो ";
 देखो तो इत्मीनान आ चला।
रुकी हुई बात आगे बढ़ चली।
यही तो बोलने का साहस जुटाना है।
हिसाब किताब नहीं !
 मुझे तुम्हारी जरूरत है -तुम मेरे हो , रहोगे।
अरे तुम   कहाँ खो गये , तुम्हें किस बात का सोचना - मैं हूँ न !

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