Saturday, 29 November 2014

इंसुलेटेड रहना ,अपने आपको इन्सुलेसन में सुरक्षित रखना , अपने कथित बड़प्पन को बचा कर रखना तथा उसका प्रदर्शन कर लोगों को अपनी और आकर्षित करना  - यह सब सहज प्रिय है .पर इन्सुलेसन आपकी conductivity क्न्दक्तिविटी ,सम्प्रेषण-क्षमता  या रिसेप्तिबिलिटी  receptivity ग्रहण करने की शक्ति तो प्रभावित करता ही है . इसे दूर करने के लिये आप किसी जगह अपनर इन्सुलेसन को यत्नपूर्वक छील -काट कर हटाते है ,कंटेक्ट पॉइंट बनाते है , फिर कंटेक्ट भी बनाते है , उस कंटेक्ट को फिक्स भी करते हैं ताकि आप भलीभांति रिसीव कर सके बिना रेसिस्टेंस के ,या डेलिवर कर सके बिना रेसिस्टेंस के.
अपने इन्सुलेसन में सुरक्षित रहने के साथ ही आप जब जहाँ आदान-प्रदान ,ग्रहण करने  कराने की हिम्मत करते या जरूरत समझते हैं या जब मजबूर हो ही जाते हैं तो उसी इन्सुलेसन ,आवरण को खुद ही हटाते हैं -या हट जाने देते हैं ,या हटवाते हैं -या जब अन्य कोई हटा रहा होता है तो जानते हुए भी हटाने देते है -अनजान बनने का नाटक करते है  क्यों की आपको कुछ ट्रांसफर करना करवाना है .
मैं भी यही करता हूँ .
आप गाहे-बगाहे ,कभी कभार करते है - मैं सजग हो निरंतर  स्वभाव से करता रहता हूँ .
मैं जानता हूँ -मैं और आप अलग अलग वृत्त हैं -हमारे अलग अलग केंद्र है .पर मै टेंजेंट  बनाते रहता हूँ - स्पर्श रेखाएं खींचते रहता हूँ - आप तक पहुँचने का प्रयास करते रहता हूँ --- मनोरंजन के लिये नहीं वरन लिया हुआ देने के लिये - यदि आप लेना चाहे ; और आपसे कुछ लेने के लिये ; यदि आप कुछ देना चाहे .
मैं देने -लेने का पात्र हूँ या नहीं यह तो आप ही निश्चय करेंगें - बस आपके निरिक्षण के लिये मैं भांति भांति से आपके पास -आपके समक्ष उपस्थित होता रहता हूँ .
  

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