न्यूनतम शब्दों में यही कहा जा सकता है - जो मूल्य समाज को आगे बढ़ाते बढ़ाते है वह न्याय है।
जिसे समाज स्वीकार करे वह न्याय है। सामान्यतः ऐसा कोई मूल्य नहीं होता जिसे सारा समाज सामान रूप से , हर वर्ग समान भाव से स्वीकार करे , पर शायद आदि काल से विधि के अनुसार न्याय को न्याय मान लिया गया।
किन्तु कई बार यह देखा गया है कि विधि किसी शक्तिशाली श्रोत से उत्पन्न हैं और समाज का उद्देश्य उस शक्ति के श्रोत को बनाये रखना है।
जिसे समाज स्वीकार करे वह न्याय है। सामान्यतः ऐसा कोई मूल्य नहीं होता जिसे सारा समाज सामान रूप से , हर वर्ग समान भाव से स्वीकार करे , पर शायद आदि काल से विधि के अनुसार न्याय को न्याय मान लिया गया।
किन्तु कई बार यह देखा गया है कि विधि किसी शक्तिशाली श्रोत से उत्पन्न हैं और समाज का उद्देश्य उस शक्ति के श्रोत को बनाये रखना है।
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