कुछ तो लिख डालूँ, मुझे जान भी पाओगे, और कुछ पढ़ भी सकोगे। मेरा लिखा कम से कम एक काम तो आयेगा, किसी का मुल्यांकन करना कैसे सिखा जाये, गलतियाँ कब हो जाती है- उतना तो समझ पाओगे।
वैसे पद-लोभ में समर्पण कर डालना, केवल स्वार्थ की पूर्ति तो कर सकता हे पर संस्था या समाज का हित नहीं कर सकता ओर इस प्रकार के समर्पण से प्राप्त पद, यश न तो स्थाई होते है न ही समज को वास्तव मै स्वीकार्य।जस्टीस खन्ना नें क्या तो खो दिया और डी के बरूआ ने क्या ही पा लिया ।
वैसे पद-लोभ में समर्पण कर डालना, केवल स्वार्थ की पूर्ति तो कर सकता हे पर संस्था या समाज का हित नहीं कर सकता ओर इस प्रकार के समर्पण से प्राप्त पद, यश न तो स्थाई होते है न ही समज को वास्तव मै स्वीकार्य।जस्टीस खन्ना नें क्या तो खो दिया और डी के बरूआ ने क्या ही पा लिया ।
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