कबूलनामा
मैं कवित्त एटीकेट ,मैनर्स, तहजीब,एकलाख एहतराम -कर्टसी में रियली कच्चा हूँ , गच्चा खा जाता हूँ।
मैं , काब्य सौष्ठव , काव्य शास्त्र , काव्य -बन्ध , काब्य अनुशासन , मर्यादा - इन सारे पैरामीटर पर अप्रशिक्षित , अनपढ़ , गँवार तथा महान पिंगल-शास्त्रियों का अपराधी हूँ।
इस अशोभनीय लेखन की हिम्मत करने का अपराधी हूँ , मैं पिंगल-शास्त्रियों की जमात के द्वारा दिये गये दण्ड का ही अधिकारी हूँ। पाठकों की निंदा-बहिष्कार -आलोचना के ही लायक हूँ। इस कारण सभी की उपेक्षा का भी पात्र ही होने लायक हूँ। विचार एवं विषय विविधता के कारण नीरस हूँ ही। अपनी बात कह कर भी स्पष्टता से नहीं कहता हूँ - रहसयवादी टोन में अथवा प्रयोगवादी तरीके से पहेली नुमा लिखने का भी अपराधी हूँ।
धर्म , भक्ति , श्रृंगार मने मुझसे मैं उनसे घृणा करता हूँ। कभी देव पूजन नहीं करता। चरण वंदना नहीं करता। मंगलाचरण - मंगलपाठ नहीं करता। प्रसाद नहीं चढ़ाता। न देवों के पास जाता हूँ , न भक्तों को आने ही देता हूँ।
सचमुच मैंने कठोर दंड को स्वयं आमंत्रित किया है। प्रचलित महाजनों के प्रचलित विरुद-गायन , त्वमेव-माता-पिता मार्ग से हट कर मैनें अक्षम्य अपराध किया है। सुद्ध होने तथा रहने प्रयास कर मैंने महान अपराध किया है।
आप के द्वारा मैनुपुलेटनीय नहीं हो कर मैं महान पातकी हो चूका हूँ। आपकी द्वारा उलटनीय नहीं बना , पलटनीय नहीं बना , भोगनीय नहीं बना , धिक्कार है इस प्रकार के मेरे साफ स्वतंत्र जीवन को - जीवन यात्रा को।
मुझे शर्म आनी ही चाहिये - मैं सरेंडर नहीं किया , मैं हार्मफुल नहीं बना , भेड़िया-सियार -लोमड़ी नहीं बना , ब्रोकर या पिम्प , मिडिलमेंन नहीं बना। मैं अव्वल दर्जे का मूर्ख हूँ।
मैं कवित्त एटीकेट ,मैनर्स, तहजीब,एकलाख एहतराम -कर्टसी में रियली कच्चा हूँ , गच्चा खा जाता हूँ।
मैं , काब्य सौष्ठव , काव्य शास्त्र , काव्य -बन्ध , काब्य अनुशासन , मर्यादा - इन सारे पैरामीटर पर अप्रशिक्षित , अनपढ़ , गँवार तथा महान पिंगल-शास्त्रियों का अपराधी हूँ।
इस अशोभनीय लेखन की हिम्मत करने का अपराधी हूँ , मैं पिंगल-शास्त्रियों की जमात के द्वारा दिये गये दण्ड का ही अधिकारी हूँ। पाठकों की निंदा-बहिष्कार -आलोचना के ही लायक हूँ। इस कारण सभी की उपेक्षा का भी पात्र ही होने लायक हूँ। विचार एवं विषय विविधता के कारण नीरस हूँ ही। अपनी बात कह कर भी स्पष्टता से नहीं कहता हूँ - रहसयवादी टोन में अथवा प्रयोगवादी तरीके से पहेली नुमा लिखने का भी अपराधी हूँ।
धर्म , भक्ति , श्रृंगार मने मुझसे मैं उनसे घृणा करता हूँ। कभी देव पूजन नहीं करता। चरण वंदना नहीं करता। मंगलाचरण - मंगलपाठ नहीं करता। प्रसाद नहीं चढ़ाता। न देवों के पास जाता हूँ , न भक्तों को आने ही देता हूँ।
सचमुच मैंने कठोर दंड को स्वयं आमंत्रित किया है। प्रचलित महाजनों के प्रचलित विरुद-गायन , त्वमेव-माता-पिता मार्ग से हट कर मैनें अक्षम्य अपराध किया है। सुद्ध होने तथा रहने प्रयास कर मैंने महान अपराध किया है।
आप के द्वारा मैनुपुलेटनीय नहीं हो कर मैं महान पातकी हो चूका हूँ। आपकी द्वारा उलटनीय नहीं बना , पलटनीय नहीं बना , भोगनीय नहीं बना , धिक्कार है इस प्रकार के मेरे साफ स्वतंत्र जीवन को - जीवन यात्रा को।
मुझे शर्म आनी ही चाहिये - मैं सरेंडर नहीं किया , मैं हार्मफुल नहीं बना , भेड़िया-सियार -लोमड़ी नहीं बना , ब्रोकर या पिम्प , मिडिलमेंन नहीं बना। मैं अव्वल दर्जे का मूर्ख हूँ।
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