Saturday, 22 November 2014

जिस रथ से विजय होती है वह रथ दूसरा ही है –
शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिये है, सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका है|
बल, विवेक, दम (इन्द्रियों का संयम) और परोपकार ये उसके चार घोड़े है, जो छमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए है|
इश्वर का भजन ही चतुर सारथि है, बैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है|
दान फरसा है, बुद्धि प्रचंड शक्ति है, श्रेष्ठ विग्यान कठिन धनुष है|
निर्मल और अचल मन तरकस के सामान है, शम, यम और नियम ये बहुत से बाण है|
ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है, इसके सामान विजय का दूसरा उपाय नहीं है|
ऐसा धर्ममय रथ जिसके हो उसके लिए जीतने के लिए शत्रु ही नहीं है |
जिसके पास ऐसा दृढ रथ हो, वह बीर संसार (जन्म-म्रत्यु) रूपी महान दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है |

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