Tuesday, 25 November 2014

मैं कोई कंक्रीट का जंगल तो हूँ नहीं
कि मेरे उग आने के पहले तुम मेरी हदें तय कर डालोगे
किसी की औकात नहीं, किसी की नहीं
जो मेरी खिड़कियों, रौशनदानों औ सीढ़ियों को तय करे
मैं कोई कंक्रीट का जंगल तो हूँ नहीं
कि मेरी दिवारों के रंग उनके बनाये जाने के भी पहले तय कर डालोगे।

मेरी कोमल पिघलती बर्फ सी जडें- किसी छैनि, हथौड़े की मोहताज नहीं
उनमें इतनी तो कूवत तो है ,मिट्टी हो या पत्थर, अपनी नींव तलाश ही लेगी
मेरी हर शाख, मेरा हर पत्ता, मैं जानता हूँ
मेरी असंख्य खिड़कियों, रौशनदान औ सीढ़ियाँ होंगी-रैन बसेरा भी
मै नित नवीन नव रंग भरा,नृत्य करा नव जीवन सिरजता, कलकल
बीज से बृक्ष की अनन्त यात्रा पर सदैव चलता ही रहूँगा-मैंने तय कर डाला

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