Friday, 14 November 2014

मेरा लक्ष्य केवल मैं स्वयं हूँ .
अपने अन्दर उबलने से अच्छा है , उबलता हुआ दिखूं .
 मैं चाहता हूँ - लिखता -बोलता, करता -कहता, चलता - फिरता रहूँ .अभ्यास भी बना रहेगा ,चेकिंग भी हो जाएगी ,कुछ रचा -बसा भी जायेगा ,कुछ लोग जाने अनजाने जुड़ भी जायेंगें , -- लिखा -बोला ,किया -कहा ,चला -फिरा तो रह ही जायेगा , वह फिर सिमटना भी चाहे तो सिमट नहीं सकता , समेटना भी चाहूँ तो मैं भी समेट नहीं सकता .
यह  लिखा -बोला ,किया -कहा ,चला -फिरा एक बार पब्लिक डोमेन में आ गया तो वापसी तो नहीं ,जियेगा या मरेगा यह उसकी अपनी क्षमता !
 लिखा -बोला ,किया -कहा ,चला -फिरा कितना सार्थक है ,सशक्त है , संगत है ,किस सन्दर्भ में कितना फिट और उपयोगी है ,कितना ग्राह्य है ,कितना समझमें आने योग्य है ,कितने लोगों तक और कब ,कैसे पहुंच सकता है - यही सब मिल कर इस लिखे -बोले ,किये -कहे ,चले -फिरे की उम्र , मर्यादा , महत्व , स्थान निर्धारित करते हैं .

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