Friday, 28 November 2014

बाल-पन और बाल मन की इतनी उपेक्षा क्यूँ ? .
क्या आपको नहीं लगता की एक समाज के रूप में हमने केवल बचपन  को केंद्र में रख कर बहुत कम बनाया ,सजाया ,लिखा , पढ़ा ?
 क्या हमने बचपन को पढने में , उसे गढ़ने में पर्याप्त समय दिया  ?
 क्या आपको नहीं लगता की केवल बचपन के लिए हमने बहुत कम सोचा ,उससेभी कम संसाधन लगाये ?
 क्या हम सभी बचपन से अत्यधिक अपेक्षा के दोषी नहीं है  ? क्या हमने अपना और अन्य बच्चों का बचपना बहुत जल्दी विदा नहीं कर दिया ? हम बचपन को रुकने क्यों नहीं देते ?
.इतनी जल्दी क्या है बच्चों को बड़ा बनाने की ?
बचपन को थोडा सुस्ताने दो भाई !!!!!!

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