Thursday, 27 November 2014

सवार लहराता रहा चाबुक अपने सर के चारो ओर हवा में
सरसराती चाबुकि हवा बार बार घोड़े के कान के पास आती थी
सनसनाता चाबुक एक सिहरन पैदा करता था ,अयाल खड़े थे
बिजली सा चमक दिखाता ही दीखता था चाबुक का जलवा ---

बस   इतने से ही लगातार घोडा सनसनाता रहा सरपट
चाल सारी चली , बड़की दोगामा , छोटकी  दोगामा
एक्की , दुककी , दुलत्ती , चाल झपट , सरगम
चाबुक  चला तो भी न चला पर घोडा तो उड़ता  चला


 सवारगिरी इसी का नाम है !!!!!!!  

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