उम्मीदें बढ़ी है , गुनाहगार मैं हूँ
आज तक मैंने इन्हे सींचा ही है।
सपने यूँ पगलाये ,मस्तियाये हैं
इन्हें यूँ उकसाया तो मैनें ही है।
तुम्हारी उम्मीदों का पैमाना क्या
मैंने तो बस उन्हें मरने नहीं दिया।
तुम्हारे सपने आसमानी है तो क्या
मैंने तो उन्हें जमीन पर पाला था।
आज तक मैंने इन्हे सींचा ही है।
सपने यूँ पगलाये ,मस्तियाये हैं
इन्हें यूँ उकसाया तो मैनें ही है।
तुम्हारी उम्मीदों का पैमाना क्या
मैंने तो बस उन्हें मरने नहीं दिया।
तुम्हारे सपने आसमानी है तो क्या
मैंने तो उन्हें जमीन पर पाला था।
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