कालेज प्रांगण में आने जाने के क्रम में यह बात पता चल ही गयी कि कालेज में नाम विद्यार्थियों में कुछ केवल इस लिए कालेज में दखिला लेते थे कि उससे उनकी शादी के वक्त दहेज कुछ अधिक मिलेगा। कालेज आने वाले अधिकांश युवक अपने को मिलने वाले दहेज के बारे में बड़े गर्व से अहवा उसके प्रस्ताव के बारे में चटकारे ले कर चर्चा करते थे।
कुछ एक विद्यार्थी कालेज में प्रवेश करने के बाद मिहनत करना शुरू कर देते थे। मैंने ऐसे कुछ एक विद्यार्थियों को बहुत करीब से देखा। इस वक्त इन विद्यर्थियों की वास्तविक उम्र २२-२३-२४ साल हो चुकी होती थी। मुझे आश्चर्य होता था कि मेरी उम्र १७ की। बाद में पता चला कि कागज और सर्टिफिकेट में तो उनकी भी उम्र १६-१७ ही है। असल में असली उम्र और कागजी उम्र का यह गोरख धंधा सारी हिंदी पटटी में प्रचलित है।
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