प्रत्येक जीवन एक यात्रा ही तो है। यात्रा का एक वृतांत होता है।
मेरिजीवन यात्रा भी कुछ खोने कुछ पाने का कथा -प्रकरण ही तो है। मान -अपमान,आराम -मस्ती -मिहनत -मौज , पीड़ा -परिश्रम ,झगड़ा झंझट , दोस्ती वोस्ती , दुर्घटना - आश्चर्य , षड्यंत्र -इनाम ,शोहरत -ताकत ,शान मान प्रतिष्ठा , पद ,यश ,वैभव ,श्रेय ,शांति ,बैचनी ,सुख ,स्वप्न आदि सब कुछ का सम्यक मिश्रण ही तो यह जीवन है।
हे प्रभु जिस प्रकार मेरी रक्षा आपने की है उसी प्रकार सभी की करना , यही प्रार्थना है।
कभी कभी अकेले में बैठे बैठे सोचता हूँ - अपने आपसे खता हूँ - जिन राहों पर मैं चला उन पर न चलना, या फिर जिन राहों पर मैं चलता रहा उनसे न भटकना।
राहें कठिन हो सकती है ,पर कठिन राहों को यों ही छोड़ देना कभी उचित तो नहीं ही कहा जा सकता। जीवन के मीठे फल तो कठिन रास्तों पर , धक्के खाते ,गिरते पड़ते सावधनी से चलने और आगे बढ़ने पर ही प्राप्त होते हैं।
बिना डरे चलें। , दशा और दिशा ,चाल और चलन , चरित्र और व्यव्हार , उत्साह और अतिरेक ,निर्णय और अनिश्चिय , दुःसाहस तथा नियंत्रण , संयम और निग्रह , लोभ और क्रोध ,,इन सभी का समुचित परिपाक ही एक आदर्श जीवन यात्रा का संकल्प पूरा करता है।
टूटने या उजड़ने का कितना भी भय क्यों न हो ,उखाड़ने ,उखड़ने ,तोड़ लिए जाने का कितना भी डॉ क्यों न हो ,एक बार फिर सेजीवन के लिए शक्ति संचय कर आगे बढ़ा तो जा ही सकता है।
नये गले बीज से निकल रहा नया अंकुर रेशम के तंतु से भी कोमल अपनी जड़ो से जब धरती के अंदर प्रवेश करने की कोशिश क्र रहा होता हैऔर ठीक उसी समय प्रकाश की खोज में नन्हा पौधा न्य जीवन तलाशता जब धरती के कठोर आवरण को वेध रहा होता है ,दारुण वेदना के साथ ,उस पर भी जीवन का अगला पल अनिश्चित - पर क्या आज तक किसी पौधे ने उगने से इंकार किया है क्या , हर पल जीने से इंकार किया है क्या। फिर मनुष्य ही क्यों किसी अनहोनी के आतंक से अशांत होता रहता है।
जिस धूप से पौधे के डर है क्या वही धूप उसी पौधे को जीवन भी नहीं दे रही। जिस वर्षा -पानी से पौधे के गलने का या बह जाने का डर है क्या वाही जल जीवन का श्रोत नहीं है क्या। क्या यही धूप ,हवा ,बरसात इन बीजों का धरती के साथ मिलकर स्वागत नहीं करती।
चारों और देखो तो सही,निराशाका कोई कारण है ही कहाँ। संघर्ष तो जीवन है। संघर्ष निराशा को नहीं ,निश्चय को जन्म देता है। यही तो जीवन की पाठशाला है। जीवन ही जीवन का प्रयोग है , प्रयोगशाला है ,उत्तर है, लक्ष्य है ,साधन है , साध्य है। जीवन ही सर्वोत्तम शिक्षक है। जीवन ही स्वयंभू है। जीवन स्वयं को रेग्युलेट भी करता है ,एक्सिलरेट करता है ,डीएक्सिलरेट कर लीया करता है।फिसलन पर भी जिंदगी साध लेना, यही पुरुषार्थ है। फिसलने न दें ,यही पर्शुरथ है ,जीवन यात्रा का मर्म है ,जीवन प्रयत्न का धर्म है। जीवन पलायन नहीं है ,श्राप या त्राश्दी नहीं है , दायित्व नहीं , सम्पत्ति है ,संयोग है ,अवसर है,वरदान है।
जीवन अपनी केमिस्ट्री स्वयं बना लेता है। बस आपको सावधान रहना हे। संवर जाये जिंदगी ,यही साधना है।
मेरिजीवन यात्रा भी कुछ खोने कुछ पाने का कथा -प्रकरण ही तो है। मान -अपमान,आराम -मस्ती -मिहनत -मौज , पीड़ा -परिश्रम ,झगड़ा झंझट , दोस्ती वोस्ती , दुर्घटना - आश्चर्य , षड्यंत्र -इनाम ,शोहरत -ताकत ,शान मान प्रतिष्ठा , पद ,यश ,वैभव ,श्रेय ,शांति ,बैचनी ,सुख ,स्वप्न आदि सब कुछ का सम्यक मिश्रण ही तो यह जीवन है।
हे प्रभु जिस प्रकार मेरी रक्षा आपने की है उसी प्रकार सभी की करना , यही प्रार्थना है।
कभी कभी अकेले में बैठे बैठे सोचता हूँ - अपने आपसे खता हूँ - जिन राहों पर मैं चला उन पर न चलना, या फिर जिन राहों पर मैं चलता रहा उनसे न भटकना।
राहें कठिन हो सकती है ,पर कठिन राहों को यों ही छोड़ देना कभी उचित तो नहीं ही कहा जा सकता। जीवन के मीठे फल तो कठिन रास्तों पर , धक्के खाते ,गिरते पड़ते सावधनी से चलने और आगे बढ़ने पर ही प्राप्त होते हैं।
बिना डरे चलें। , दशा और दिशा ,चाल और चलन , चरित्र और व्यव्हार , उत्साह और अतिरेक ,निर्णय और अनिश्चिय , दुःसाहस तथा नियंत्रण , संयम और निग्रह , लोभ और क्रोध ,,इन सभी का समुचित परिपाक ही एक आदर्श जीवन यात्रा का संकल्प पूरा करता है।
टूटने या उजड़ने का कितना भी भय क्यों न हो ,उखाड़ने ,उखड़ने ,तोड़ लिए जाने का कितना भी डॉ क्यों न हो ,एक बार फिर सेजीवन के लिए शक्ति संचय कर आगे बढ़ा तो जा ही सकता है।
नये गले बीज से निकल रहा नया अंकुर रेशम के तंतु से भी कोमल अपनी जड़ो से जब धरती के अंदर प्रवेश करने की कोशिश क्र रहा होता हैऔर ठीक उसी समय प्रकाश की खोज में नन्हा पौधा न्य जीवन तलाशता जब धरती के कठोर आवरण को वेध रहा होता है ,दारुण वेदना के साथ ,उस पर भी जीवन का अगला पल अनिश्चित - पर क्या आज तक किसी पौधे ने उगने से इंकार किया है क्या , हर पल जीने से इंकार किया है क्या। फिर मनुष्य ही क्यों किसी अनहोनी के आतंक से अशांत होता रहता है।
जिस धूप से पौधे के डर है क्या वही धूप उसी पौधे को जीवन भी नहीं दे रही। जिस वर्षा -पानी से पौधे के गलने का या बह जाने का डर है क्या वाही जल जीवन का श्रोत नहीं है क्या। क्या यही धूप ,हवा ,बरसात इन बीजों का धरती के साथ मिलकर स्वागत नहीं करती।
चारों और देखो तो सही,निराशाका कोई कारण है ही कहाँ। संघर्ष तो जीवन है। संघर्ष निराशा को नहीं ,निश्चय को जन्म देता है। यही तो जीवन की पाठशाला है। जीवन ही जीवन का प्रयोग है , प्रयोगशाला है ,उत्तर है, लक्ष्य है ,साधन है , साध्य है। जीवन ही सर्वोत्तम शिक्षक है। जीवन ही स्वयंभू है। जीवन स्वयं को रेग्युलेट भी करता है ,एक्सिलरेट करता है ,डीएक्सिलरेट कर लीया करता है।फिसलन पर भी जिंदगी साध लेना, यही पुरुषार्थ है। फिसलने न दें ,यही पर्शुरथ है ,जीवन यात्रा का मर्म है ,जीवन प्रयत्न का धर्म है। जीवन पलायन नहीं है ,श्राप या त्राश्दी नहीं है , दायित्व नहीं , सम्पत्ति है ,संयोग है ,अवसर है,वरदान है।
जीवन अपनी केमिस्ट्री स्वयं बना लेता है। बस आपको सावधान रहना हे। संवर जाये जिंदगी ,यही साधना है।
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