Friday, 3 January 2014

अपनों के शील की रक्षा करना ही  परम धर्म हे। नई पीढ़ी को समुचित शिक्षा देना ,उसकी  मर्यादा  की रक्षा ,उसे गलत - सही , उचित -अनुचित ,का  सम्यक परिचय  करवाना ही  शिक्षण ,प्रशिक्षण  है। पर नये को गांगुलियों से बचाना ,उनसे बचा ले जाना ,नये के शील ,निज्त्व  की रक्षा करना  अत्यंत कठिन है ,खास कर जब गांगुली आशाराम चारो औऱ सफेद या काली वर्दियों ,अधिकार तथा शान औ  शौकत से सजे आदेश  देते घूम रहे  हो।
शीलहरण का प्रयास ,सुझाव ,विचार तक निंदनीय  है। ऐसे विचारों तक का विरोध किया ही जाना चाहिए , विरोध का सामर्थ्य नहीं भी हो तो भी।  शीलहरण के माध्यम, साक्षी, दर्शक  बनने  से तो  मौत  भली।
तुम्हारी सम्पूर्ण सुरक्षा ,तुम्हारी एकल निजता ,मेरी जिम्मेवारी है। पर गंगूलियो का मैं क्या कर सकता हुँ ,विरोध के सिवा। मेरी स्थिति  मेरी व्यक्तिगत इक्षाशक्ति  का  फल  है ,आप निश्चिंत रहे। 

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