Sunday, 26 January 2014

इतिहास बनते समय का साक्षी स्वयं नहीं जनता की वह इतिहास का गवाह बनने जा रहा है। इतिहास के न तो खेत दिखा करते हैं , न बीज। इतिहास बनाने वाले कुम्भकार का भी पता बाद में चलता है। इतिहास के खेतिहर ,या मजदूर  का भी पता बाद में ही चलता है। इतिहास में क्या दर्ज होगा क्या छाँट दिया जायेगा कोई नहीं कह सकता। इतिहास तो बस बनता चला जाता है,इसे कंट्रोल करना किसी के बस की बात नहीं है। 

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