इतिहास बनते समय का साक्षी स्वयं नहीं जनता की वह इतिहास का गवाह बनने जा रहा है। इतिहास के न तो खेत दिखा करते हैं , न बीज। इतिहास बनाने वाले कुम्भकार का भी पता बाद में चलता है। इतिहास के खेतिहर ,या मजदूर का भी पता बाद में ही चलता है। इतिहास में क्या दर्ज होगा क्या छाँट दिया जायेगा कोई नहीं कह सकता। इतिहास तो बस बनता चला जाता है,इसे कंट्रोल करना किसी के बस की बात नहीं है।
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