Wednesday, 22 January 2014

मालिक तो बस  मौला  ही होता है
सिराजुदौला की मर्जी से क्या होता है
बुलंद रहें हम अपनी निगाहों में
तुम्हारी आतिशी निगाहों से क्या होता है।

दामन हमारा , नियत हमारी
ये रहे पाक ,यही दुआ हमारी
न झुका हूँ न झुका सकेगी
तुम्हारे पास रहे बददुआ तुम्हारी।

फांकाकशी से चला था रोजे  के लिये
आज तो उसने इफ्तार भेजा है
क़ाफ़िर भी एहतराम के काबिल है
मुनादी कर दो मैंने दावत ए  इफ्तार भेजा है।

नमाज  आज और अभी पढूंगा
कि मैंने उसे दुआ का यकीन दिलाया है
मेरी फकीरी कुछ कम कर दे, मैं फिक्रमंद सही
उसके सितम तू कम कर दे ,यही मेरी दुआ रही।






  

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