Wednesday, 8 January 2014

कलकत्ते में  मट्टी का आभाव ही रहेगा। मट्टी का रंग ,स्पृश ,उसकी सुगंध का आभाव कलकतिया जिंदगी में एक रिक्तता पैदा  कर ही जाती है।
आर्द्र नक्षत्र की पहली फुहार में  जेठ -बैशाख की तप्त  मट्टी ,पानी के  पहले  संर्पक के बाद किस प्रकार सिहर उठती है। रोम रोम से कैसी सोंधी महक उठने लगती है ,यह्महक वातावरण  से एक   में चारो और फ़ैल रही होती है ,कहीँ खपड़े पर पानी कि बूंद से चटक आवाज के साथ एक अलग गंध बनती सी जा रही है। इस गंध के अनेकार्थ,आयाम  मैनेपिछले बयालीस साल में सीखे।
सचमुच उस महक की यादें  

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