सम्पूर्ण विश्व जहाँ संचार क्रान्ति की और जा रहा है , जहाँ शिक्षा के नित नए प्रयोग ,नित नये तरीके इजाद किये किये जा रहे उस विश्व में यदि पुरे का पूरा गाँव ऐसा हो जो निरक्षर है ,जिसके लिये अख़बार का कोई मतलब ही नहीं हो ,किताबें जिसके लिये बेमानी हो ,तो वह सहजता और सरलता की बात करे ,समझ में नहीं आता।
क्या शिक्षा इतनी कुटिल है।
भारतीय गाँवो में न तो शिक्षा का इंफ्रास्टक्चर है ,अभी तक कोई खास उत्साह नहीं है ,कोई खास इस दिशा में इन्वेस्टमेंट भी नहीं हुआ है, कम से कम गावों में तो अभी तक नहीं है.
भारतीय गाँव को अभी तक शिक्षा की पूरी भूख नहीं जगी है ,पता नहीं गावों को अभी हाल तक शिक्षा से ऐसी चिढ क्यों थी।
क्या शिक्षा इतनी कुटिल है।
गाँव में अभी भी अच्छे भले किसान ,व्यापारी मिल जायेंगे पर क्या मजाल कोई पढ़ा लिखा इंसान गाँव में रह जाये।
किसी तरह कोई पढ़ा नहीं कि सबसे पहले वह गाँव छोड़ कर चला शहर की ओर.
भारत के गॉव में क्या ,शहरों में आज भी इक्कीसवीं सदी में मिल जायेंगे ऐसे लोग, ज़ो बिना भय कहते है , पढ़ने से क्या होगा।
आज भी लोग बड़े इतमिनान से पढ़ाते मिल जायेंगे ",पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय"।
लोग विधिवत पढ़ने पढ़ाने से भागते फिरते हैं।
न जाने क्यों ,गाँवो में पढ़ा हुआ आदमी रुकता ही नहीं ,क्यों ,समझ में नहींआता।
पढ़ने वाला बच्चा समूह से कट जाता है।
क्या शिक्षा इतनी कुटिल है।
भारतीय गाँवो में न तो शिक्षा का इंफ्रास्टक्चर है ,अभी तक कोई खास उत्साह नहीं है ,कोई खास इस दिशा में इन्वेस्टमेंट भी नहीं हुआ है, कम से कम गावों में तो अभी तक नहीं है.
भारतीय गाँव को अभी तक शिक्षा की पूरी भूख नहीं जगी है ,पता नहीं गावों को अभी हाल तक शिक्षा से ऐसी चिढ क्यों थी।
क्या शिक्षा इतनी कुटिल है।
गाँव में अभी भी अच्छे भले किसान ,व्यापारी मिल जायेंगे पर क्या मजाल कोई पढ़ा लिखा इंसान गाँव में रह जाये।
किसी तरह कोई पढ़ा नहीं कि सबसे पहले वह गाँव छोड़ कर चला शहर की ओर.
भारत के गॉव में क्या ,शहरों में आज भी इक्कीसवीं सदी में मिल जायेंगे ऐसे लोग, ज़ो बिना भय कहते है , पढ़ने से क्या होगा।
आज भी लोग बड़े इतमिनान से पढ़ाते मिल जायेंगे ",पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय"।
लोग विधिवत पढ़ने पढ़ाने से भागते फिरते हैं।
न जाने क्यों ,गाँवो में पढ़ा हुआ आदमी रुकता ही नहीं ,क्यों ,समझ में नहींआता।
पढ़ने वाला बच्चा समूह से कट जाता है।
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