ऐसा नहीं होता की एक कालक्रम की एक ब्याख्या दूसरी ब्याख्या के कारण अप्रासंगिक हो जाती है या गलत हो ही जाती है। एक समय प्रस्तुत की ब्याख्या एक परिस्थिति ,विशेष कालक्रम सापेक्ष होती है। प्रत्येक ब्याख्या अपने आप में सार्थक होती है। व्ही ब्याख्या देश ,काल ,परिस्थिति आदि बदलने पर स्वयं बदल जाती है। इस बदलाव से पहले वाली ब्याख्या निरर्थक नहीं हो जाती। कई बार ब्याख्या इस कारण भी बदली नजर आती है कि कुछ ब्याख्ये सतही होती है, कुछ सूक्ष्म , कुछ गहन -गम्भीर। एक ही अनुभव की ब्याख्या या एक ही अनुभव से प्राप्त निष्कर्ष , साधनो के या साध्यों के बदल जाने से या पात्र या क्षेत्र बदल जाने से बदल करती है।
एक ही प्रश्न रहता है ,कई बार कुछ समझ नहीं आता और निराशा ही निराशा। वही प्रश्न एक साथी के साथ घंटों बैठने के बाद भी कोई रास्ता नहीं दीखता। दूसरे के साथ बैठा तो वह प्रश्न स्पष्ट होने लगा ,किसी प्रकार समझ भी आने लगा। पर पूरी तरह समस्या सुलझी नहीं। वही प्रश्न एक तीसरे के पास रखा भर था ,सब कुछ स्वतः साफ होने लगा ,आगे तथा पीछे के सारे आयाम सामने आ गए, समस्या नाम की कुछ रही ही नहीं।
एक ही प्रश्न रहता है ,कई बार कुछ समझ नहीं आता और निराशा ही निराशा। वही प्रश्न एक साथी के साथ घंटों बैठने के बाद भी कोई रास्ता नहीं दीखता। दूसरे के साथ बैठा तो वह प्रश्न स्पष्ट होने लगा ,किसी प्रकार समझ भी आने लगा। पर पूरी तरह समस्या सुलझी नहीं। वही प्रश्न एक तीसरे के पास रखा भर था ,सब कुछ स्वतः साफ होने लगा ,आगे तथा पीछे के सारे आयाम सामने आ गए, समस्या नाम की कुछ रही ही नहीं।
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