सचमुच बड़ों केसाथ उठना बैठना एक कठिन काम है। बच्चे का स्कूल जाना कठिन काम है। मैं शुरू से ही अपने से बड़े ,बहुत बड़े के व्यक्तित्व से अनायस आकर्षित हो जाया करता था। मैं महान लोगों की कल्पना कर कर सोचा करता था कि ये लोग भीतो अपने माता पिता की संतान ही न थे। इनका जन्म,लालन पालन लगभग वैसे ही हुआ होगा जैसे मेरा। गांधी,मंडेला,लिंकन विवेलानन्द ,न्यूटन ,गैलीलियो ,कोलंबस चैतन्य,तुलसी ,भाभा ,टाटा ,शेक्सपिअर ,दिनकर,महास्वेता ,कलाम ,गावस्कर --आदि आदि का जन्म भी तो मेरी ही तरह्हुआ होगा ,वे भी तो मेरी ही तरह अपनी माँ कि गाड़ में खेले होंगे। मैसोचकर्ता था ,क्या इन लोगो का बचपन मेरे बचपन से अलग रहा होगा क्या। क्या ये कभिनंगे नहीं रहे होंगे। क्या ये कभी तुतलाते नहीं होंगे। क्या इनका पालन भी वैसे ही नहीं हुआ होगा जैसे मेरा या अन्य अनंत बालकों का होते आया है या होते रहेगा।
१९७० से मेरे दिमाग में एक प्रश्न सदा बना रहता है।उसी समयसे सदैव सोचता रहता हुँ कि क्या मनुष्य का पूरा जीवन सम्पूर्ण निष्कलंक रह सकता है क्या।
इस दिशा में जीवन के किसी चरण में भी सार्थक प्रयास किया जा सकता है।
मैं सोचता हूँ और अपने आपसे पूछता हूँ कि क्या मेरे पुरखों ने,मेरे पूर्वजों ने या मेरि आनेवाली पीढ़ी ने कभी कोई गलत कम किया ही नहीं या कोई कभी कोई गलत काम करेगा ही नहीं।
मुझे गांधी,विवेकानंद, शेक्सपियर शिवानंद,कृष्णमूर्ति,अरुंडले ,टेरेसा ,प्रेमचंद,तुकाराम ,हजारिका,रमन साराभाई,हनुमान प्रसाद पोद्दार,लोहिया - आदि नहीं मिले।
इनमे सेक्सिसे मिलूंगा तो जरुर पूछूंगा कि क्या आपने अपने जीवन में जाने अनजाने कभी कोई गलत कम किया ही नहीं क्या।
मैं पुछुंगा कि क्या आपको कभी आपके अपने ही जेन अनजाने किये किसी आचरण के कारण खुद अपने ही सामने छोटा होना पड़ा है।
वैसे मैंने यह प्रश्न बिना किसी लाग लपेट के ,बिना झिझके हुए जो भी मेरे से मिला और जिससे मैंने इस प्रश्न के उत्तर की सम्भावना देखी,पूछा। रिश्तेदार हो या मित्र ,सहयोगी हो या वरिष्ठ अधिकारी , परिवार से होया आध्यात्मिक क्षेत्र से,राजनीति से हो या विधि के क्षेत्र से ,विद्यालय से हो या साहित्य के क्षेत्र से ,विज्ञानं से हो या कला से , मंदी से हो या मजार से,चर्च से हो या समशान से - मैंने यह प्रश्न सहस्त्रों बार किया।
लगभग सभी ने स्वीकार किया कि किया ही होगा,करना ही पड़ता है। अभी भी कर ही रहें है। दुनियादारी है ,हो ही जाता है। अधिकांश ने स्वीकार किया कि उन्होंने गलतियाँ कि है ,हो ही जाती है, अभी भी हो ही रही है ,कर ही रहे हैं। अधिकांश अपनी गलती के एहसास के बाद भी लज्जित तो नहीं ही थे। लगभग सभी ने अपना आत्म विश्वास गल्तियो के बाद भी बना कर,बचा कर रखा था।
बताया गया की धीरे धीरे अभ्यास करनेसे पुरानी गलतियों से बचा जा सकता है ,बस इतना ही।
१९७० से मेरे दिमाग में एक प्रश्न सदा बना रहता है।उसी समयसे सदैव सोचता रहता हुँ कि क्या मनुष्य का पूरा जीवन सम्पूर्ण निष्कलंक रह सकता है क्या।
इस दिशा में जीवन के किसी चरण में भी सार्थक प्रयास किया जा सकता है।
मैं सोचता हूँ और अपने आपसे पूछता हूँ कि क्या मेरे पुरखों ने,मेरे पूर्वजों ने या मेरि आनेवाली पीढ़ी ने कभी कोई गलत कम किया ही नहीं या कोई कभी कोई गलत काम करेगा ही नहीं।
मुझे गांधी,विवेकानंद, शेक्सपियर शिवानंद,कृष्णमूर्ति,अरुंडले ,टेरेसा ,प्रेमचंद,तुकाराम ,हजारिका,रमन साराभाई,हनुमान प्रसाद पोद्दार,लोहिया - आदि नहीं मिले।
इनमे सेक्सिसे मिलूंगा तो जरुर पूछूंगा कि क्या आपने अपने जीवन में जाने अनजाने कभी कोई गलत कम किया ही नहीं क्या।
मैं पुछुंगा कि क्या आपको कभी आपके अपने ही जेन अनजाने किये किसी आचरण के कारण खुद अपने ही सामने छोटा होना पड़ा है।
वैसे मैंने यह प्रश्न बिना किसी लाग लपेट के ,बिना झिझके हुए जो भी मेरे से मिला और जिससे मैंने इस प्रश्न के उत्तर की सम्भावना देखी,पूछा। रिश्तेदार हो या मित्र ,सहयोगी हो या वरिष्ठ अधिकारी , परिवार से होया आध्यात्मिक क्षेत्र से,राजनीति से हो या विधि के क्षेत्र से ,विद्यालय से हो या साहित्य के क्षेत्र से ,विज्ञानं से हो या कला से , मंदी से हो या मजार से,चर्च से हो या समशान से - मैंने यह प्रश्न सहस्त्रों बार किया।
लगभग सभी ने स्वीकार किया कि किया ही होगा,करना ही पड़ता है। अभी भी कर ही रहें है। दुनियादारी है ,हो ही जाता है। अधिकांश ने स्वीकार किया कि उन्होंने गलतियाँ कि है ,हो ही जाती है, अभी भी हो ही रही है ,कर ही रहे हैं। अधिकांश अपनी गलती के एहसास के बाद भी लज्जित तो नहीं ही थे। लगभग सभी ने अपना आत्म विश्वास गल्तियो के बाद भी बना कर,बचा कर रखा था।
बताया गया की धीरे धीरे अभ्यास करनेसे पुरानी गलतियों से बचा जा सकता है ,बस इतना ही।
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