Sunday, 12 January 2014

मनुष्य ने समाज की रचना, समाज का निर्माण ही अपनी स्वतंत्रता के नियमन के लिए किया था। परमशुद्ध स्वतंत्रता एक संगठित समाज में तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। समाज में एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के लिए अपनी स्वतंत्रता का एक अंश त्याग करना ही पड़ता है। जो व्यक्ति दूसरे के लिए अपनी स्वतंत्रता का त्याग नहीं कर सकता वह अपनी स्वतंत्रता का भी उपभोग नहीं क्र सकता।
भारतीय गाँवों में जो सरलता दिखती है वह अज्ञान है ,निरक्षरता के कारण है ,भय की परछाई है , विवशता है , यह सहजता नहीं , विकल्पहीनता है , निराशा है। सरलता,सहजता  अथवा स्वच्छता के आडंबर युक्त शब्दों से इन्हें ढ़कने का प्रयाश कुटिलता है। 

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