Friday, 10 January 2014

जीवन ओरिजिनल कोस्ट  पर ही  चलता है ,कोई सब्सिडी ,ग्रांट नहीं हुआ करता। जीवन के हर पल का मूल्य निर्धारित है ,वह मूल्य  होता है   त्याग ,परिश्रम , श्रद्धा  का। कृपा में शायद कुछ नहीं मिलता ,इसके लिए पात्रता चाहिए। पात्रता प्राप्त करनी होती है। पात्रता प्राप्ति का अभ्यास आवश्यक है। प्रयास में निरन्तरता  आवश्यक है। निरंतरता में उचित ,आवश्यक आवेग  चाहिए। आवश्यक तीब्रता आवश्यक समय तक बनी रहे ,इसका अभ्यास जरूरी है। अत्यंत तीक्ष्ण तीब्र आवेग दुर्लभ होते हैं। होतेभी हैं ,तो इनमे स्थायित्व नहीं होता। इस तीक्ष्णता कॉम्पोनेन्ट में कोई बहरी सब्सिडी या रॉकेट फोर्स नहीं मिला करता ,उपलब्ध ही नहीं है ,उपलब्ध भी हो तो ग्राह्य नहीं हैं ,स्वीकार्य नहीं हैं। तिबर्टा भी दान में नहीं मिलती।  समय या स्थायित्व दान में नहीं मिला करता है। एक सॉस भी अनाधिकार  नहीं मिलती।
 अनुभव बताता है कि प्रत्येक सॉस का  एक हिसाब होता है ,समाज पूछता है , हिसाब लेता है , खुद आप अपने आप से हिसाब लेते है।
 हिसाब गड़बड़ होने पर आप अपने ही  आप को दोषी  मानने लगते हैं। जीवन का मूल्य समय सापेक्ष होता है।
 जा  रही पीढ़ी को अपने मूल्य निर्धारित करने की स्वंत्रता है और उसी आधार पर मेरे जीवन का मूल्य उन्हें निर्धारित करने का अधिकार है। उनके द्वारा तय मूल्य सही है या नही ,मुझे पसंद  नहीं यह सब एकदम अलग बात है।
इसी प्रकार मेरे बाद अंकुर रही नयी पीढ़ी को अपनी आशा, इक्षा , आकाँक्षा के अनुरूप मेरा मूल्याङ्कन करने का  है।
मेरा अपने आप का मेरे मापदंडों पर मूल्यांकन  का मेरा विशेषाधिकार है।
सही मूल्य तो इन तीन पीढ़ियों के मूल्यांकन की मैट्रिक्स या इंटरग्रेसन से ही प्राप्त हो सकता है।

No comments:

Post a Comment