प्रत्येक चिंतन एक मोती है। प्रत्येक विचार एक नग है। प्रत्येक मूल्य एक रत्न है। इन्हें रचनात्मकता के बहुमूल्य धातु के पटल पर करीने से सजना पड़ता है। गढ़ना पड़ता है। बुनना होता है ,बनाना होता है ,जोड़ना होता है ,पिरोना होता है ,टांकना होता है दाग़ना होता है। तब जाकर बनता है कोई बहुमूल्य राजमुकुट। अकेले अकेले रत्न उतनी उपयोगिता नहीं रखते। अनेक रत्नों को जोड़ ,पीरों ,गढ़ कर ही एक उपयोगी आभूषण तैयार किया ,करवाया जा सकता है।
मनन क्कर लिए गये ,सुचिंतित विचारों ,साक्ष्यों ,कल्पित धारणाओ को परिश्रम की मंजूषा में सुरक्षित रखने से ही श्रेय ,यश ,वैभव ,प्रेरणा एवं शांति मिलती है। परिश्रम की मंजूषा में चिंतित विचारों को यदि यत्न पूर्वक सुरक्षित नहीं रखा गया तो वे कितने ही अनमोल क्यों न हो , कितने ही सुंदर क्यों न रहे,लुप्त हो जाते हैं.सुचिंतित,सुविचारित परिश्रम ही साधन है ,साध्य है।
वतमान परिस्थितियों में इसके प्रति सचेतन मन का नितांत अभाव है। असल में परिश्रम के प्रति आदर ही नहीं रह गया।
सुविचारित चिन्तन भी तो परिश्रम से ही पैदा होता है।
जिससमाज ने परिश्रम और चिंतन-मनन छोड़ दिया उधर के चिंतन से काम चलाने की प्रवृत्ति पाल ली ,वः अधोगामी हो जाता है।
मनन क्कर लिए गये ,सुचिंतित विचारों ,साक्ष्यों ,कल्पित धारणाओ को परिश्रम की मंजूषा में सुरक्षित रखने से ही श्रेय ,यश ,वैभव ,प्रेरणा एवं शांति मिलती है। परिश्रम की मंजूषा में चिंतित विचारों को यदि यत्न पूर्वक सुरक्षित नहीं रखा गया तो वे कितने ही अनमोल क्यों न हो , कितने ही सुंदर क्यों न रहे,लुप्त हो जाते हैं.सुचिंतित,सुविचारित परिश्रम ही साधन है ,साध्य है।
वतमान परिस्थितियों में इसके प्रति सचेतन मन का नितांत अभाव है। असल में परिश्रम के प्रति आदर ही नहीं रह गया।
सुविचारित चिन्तन भी तो परिश्रम से ही पैदा होता है।
जिससमाज ने परिश्रम और चिंतन-मनन छोड़ दिया उधर के चिंतन से काम चलाने की प्रवृत्ति पाल ली ,वः अधोगामी हो जाता है।
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