Thursday, 9 January 2014

आज जब में अपनी बात लिखने बैठ रहा हू ,तो मैं ५६-५७ का हो चला हू। अपने जीवन को कई खंड में बाँट पता हुँ। ५६-६४ ,६४-६५ ,६५ से सम्भवतः ६७ टक्का,६७से ६९,६९ से ७२,७२ से ७४ ,७४ से ७६ ,७७, ७७ से ८०/८१,८० से ८४ ,८४ से ८९,८९ से ९१ ,९१ से ९४,९४ से ९७ ,९७ से २००५ ,२००५ से २००८, २००९ का ९ अप्रेल , कटिहार खंड ,दरभंगा खंड --आदि आदि। १२ नवंबर से २५-२६ का कालखंड। कुछ सपनों के कल खंड। कुछ अपनों के खाल खंड। सपनों कि बुनाई रंगाई कसीदागिरी  आदिके भी अपने कालखंड होते है। आशा या निराशा के भी कालखंड होते है।
इस प्रकार मै अपने जीवन को अनेक कालखण्ड  में बंटा पता हु।
पहले भी यह बात थी  और आज भी है -यही पता हु कि मनुष्य का जीवन एक अनुभव भर है,यात्रा भर है ,कोई नहीं जनता अगला अनुभव क्या होगा यात्रा  का पड़ाव कहा होगा।  कोई नहीं जनता यात्रा कहाँ से सुरु होती है और कब कहा खतम हो जायेगी।
चाँद साल की यात्रा में यह समझ में आ गया -धीरे धीरे ही सही ,कि समय ही अनुभव देता है। यही समय बाद में अनुभवों की ब्याख्या करता है। समय के सथसाथक ही अनुभव ,घटना आदि का अर्थ,ब्याख्या बदलजाती है 

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