Saturday, 18 January 2014

समझ में नहीं आता.अपने बारे में ,सही सही ,सच सच आप सभी के सामने रख सकूंगा या नहीं।
सच मानिये मूर्धन्य सत्य,निपट सत्य,  कटा फटा सत्य ,जहाँ भी जब भी जैसा मुझे मिला , कई बार अपूर्ण मिला हो ,सड़ा गला मिला हो ,जैसा   कच्चा  पक्का मिला हो वैसा ही आप तक पहुचाने का प्रयास करता रहा हूँ, कर रहा हूँ। कुछ भी सोचा हुआ नहीं ,समझा हुआ नहीं ,जोड़ा या घटाया हुआ नहीं।
बेसक ताजमहल सत्य है। पर मेरी समझ में ताजमहल पूरा सत्य नहीं है।
जिस ताज को आप रोज देखते हैं ,उसी ताज का ही हिस्सा हैँ उस ताज  के निचे सदियों से दबी नींव ,उसकी एक एक ईंट।  आप बेशक नींव के निचे की उस ईंट को देख नहीं पाते  पर वह  है तो सत्य। 
आप एक सजा संवरा लक दक चक मक ताज ही देखने जाते हैं ,उसी की चर्चा करते हैं।आपकी तरह मैं भी उसी ताज को देखते आया हूँ। परं न  जाने क्यों मैं नींव के पत्थरों को देखता हूँ ,समझता हूँ ,प्रणाम करता हूँ। मेरे लिए तो ताज महल वह है जो  युगों से इस दिखने  वाले  भव्य  ताजमहल का बोझ अपने कंधों पर धोते आये हैं। इन नींव के पत्थरों को कभी ताजी हवा ,खरी खिली धूप,रौशनी  नहीं मिली।  नींव ने बच्चों के खिलखिलाते चेहरे नहीं देखे। निव के भाग्य में नव-दम्पत्ति का इतराता रोमांस कहाँ।
नींव के भाग्य मैं तो बस अँधेरा ,केंचुआ की लिजलिजी सीलन भरी बासी दीमक लगी नोनी  अन्य सूक्ष्म  जीव
 का साथ ही है। आपने हमने आज तक नींव का दुःख न तो पूछा न जानने की कोशिश कभी  की। मेरे लिए तो वही नींव ही असली ताजमहल है।
वह सड़ा गला पत्थर , वे गंदे भींगे हुए इंट ही असली ताजमहल है।
हो सकता है आपकी इसमें कोई रूचि न हो।
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता - आप भगवान लक्ष्मीनारायण की सुंदर सी मूर्ति की पूजा करें पर मैं जनता हूँ कि यह जिस मूर्ति की पूजा आप कर  रहे हैं वह किसी बड़े  पहाड़  या पत्थर  का ही हिस्सा थी। इस मूर्ति के अगल बगल के पत्थरों को छैनी से काट काट कर हटा दिया गया है ,पर वह सरेथे उसी बड़े पत्थर के हिस्से जिसमे से आपकी यह मूर्ति निकाली गयी है। अब यह इस मूर्ति रूप पत्थर का भाग्य कि आप उसे मंदिर में रख पूजा करते करते हैं और उसी के टुकड़े किसी सड़क बनाने या अन्य किसी उपयोग में लाये गये हैं। 





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