Thursday, 21 December 2017

काला काले को नहीं छोड़ेगा चाहे इशरतप्रिय ही बनना पड़े या मिटींग करना पड़े या ऊँच -नीच करना कहना पड़े ।
सच पर शक, सच की परीक्षा, सच पर प्रश्न, सच की ही जाँच। असत्य को कोई जाँच फेस नहीं  करनी पड़ती। असत्य पैकिंग में महिमामंडित होता है।
सच पर शक, सच की परीक्षा, सच पर प्रश्न, सच की ही जाँच। असत्य को कोई जाँच फेस नहीं  करनी पड़ती। असत्य पैकिंग में महिमामंडित होता है।
I did not announce what I wear. It was not necessary. It is basically personal. But if I announce, I must face questions.
किसी एक को उगा दो, जगा दो, पनपा दो, देखने लायक बना-बनवा दो, आत्मविश्वास का अलख जग जाये,
लहराने की ललक जग जाये, बस !
मंच पर पढ़ोगे जो कविता मेरे हिसाब की, तो सनद औ इनाम,
लिखोगे, गाओगे, छापोगे मेरे हिसाब की, तो पद औ ओहदा !
मै हूँ पैसा औ राजा ।
किसी एक को तो पूछे जाने लायक तो बनाओ ।
तुम तो पूछो आज उसको, जिसे कोई नहीं पूछा ।
Do not erase your own identity and history.
Preserve and serve it.
Never serve if you eye a proportionate return.
Social Service is not an investment, nor profession. Let it be your Joy alone.
जीवन इच्छा, उत्साह और उन्माद का नाम है।
यह स्वयं आधारित स्वयंभू है,
अपना लक्ष्य भी स्वयं ही है ।
अपनों को अपमानित कर अपनों को खो दोगे।
अपनों को प्रेम, प्यार सानिध्य, स्विकृति से ही साथ रख सकोगे, डरा कर या हड़का कर नहीं।
हम अपराधी-प्रिय- अपराधी-अधिकार-सक्रीय पर,
पीड़ित के प्रति निरपेक्ष उदासीन न्यायाधीशीय न्यायप्रणाली के पोषक और पक्षधर हैं !
हम न्यायप्रणाली की आड़ में अपराधी को संरक्षण तथा प्रोत्साहन देतें हैं !
अंग्रेजों ने ताकतवर अपराधियों को ब्रीटीश क्राउन के प्रति वफादार बनाये रखने के लिये वर्तमान ढाँचे वाली न्यायब्यवस्था विकसित की थी।पिड़ित की उपेक्षा और अपराधी पर राज्य का प्रभाव, प्रभुत्व। अपरिधी का भविष्य अब हरदम के लिये क्राउन के हाथ । विक्टिम को नेपथ्य में रख अपराधी को डरा उपनिवेशवादी ब्यवस्था के लिये उपयोग। यह ब्यवस्था पिड़ित को न्याय देने के लिये नहीं , अपराधी को राज्य की कठपुतली बना कर रखने के लिये है। अपरिधी को राज्य के संरक्षण में निर्भय बनाने के लिये है । जिसे चाहो बचाओ, जिसे चाहो लटकाओ। जिसे चाहो अन्दर कर दो , जिसे चाहो बाहर कर दो ।
न्याय से कानून या इस ब्यवस्था को कोई लेना देना नहीं।
तुम्हारी अपनी मेहनत और साफ ज्ञात हक का सादर खिलाओगे तभी खाऊँगा। मुझे ये मत कहना, आम खाओ, कहाँ से,
किसका है- मत पूछो ।
तुमको माल-मत्ता पिलाने-खिलाने न तो मैं लूटूँगा ,न माँगूगा, न माँ -बच्चों को भूखे रखूँगा, न अपना पेट काटूँगा न पढ़ाई-लिखाई, में कमी

Monday, 11 September 2017

और कितने दरोगा , सिपाही अभियुक्त को पकड़ने , पीछा करने , अनुसंधान में मर खप जाते है, मार दिये जाते है उन्हें हमने आपने क्या उनके परिवार का पुत्र-पति लौटा दिया ?
बनवाया भी किसी ने की नहीं।  बनवाने की सलाह भी दी की नहीं।  नहीं बनता है तो हम बनवा देंगे कौन कहता है हम तो खरीदेंगे ही - हमारा भ्रष्टाचार ब्रश्ताचार नहीं।  हम तो करेंगे ही नहीं बिकोगे  तो जान मर गेंगे , बच्चों को उठा लेंगे - तुम भ्रष्टाचार करो।बचाव पक्ष के वकील क्या क्या हथकंडे अपनाते है , आप से अधिक कौन जनता है।  तबल पर बैठ क्र क्या होता है आप से बेहतर कौन जानता है कानून से पहले समाज बदलो 
केवल अधिकारी वाला पक्ष ही ? बिना अधिकारी के संज्ञान के जो बोली लग जाती है ? वह ?
ठीकेदार नहीं करता , राशन दुकानदार नहीं करता , ब्यापारी नहीं करता , स्टाम्प वेंडर नहीं करता, मुखिया नहीं करता , नेता नहीं करता ,वार्ड कमिश्नर नहीं करता  , ताईद नहीं करता , मैं नहीं करता , मेरा भाई नहीं करता , मेरा रिश्तेदार नहीं करता - और यदि करता है  तो "जन" नहीं है ! यही न !!
या भ्र्ष्टाचारी दूसरे उपग्रह से आते हैं और भ्र्ष्टाचार क्र वापस दूसरे ग्रह में चले जाते है। 
मैं , मेरा , मेरे - हम सब दूध के नहाये ?
बस मुझे आज की , अभी की , अपनी ही बात से मतलब है , जो जितना , जैसा मुझे दिखा , मैंने भोगा - पुरे से या तुम्हारे से मुझे क्या मतलब ?
वैश्यालय क्या अकेले वैश्या चलाती है।  एक बालिका वैश्या कब , क्यों बनती है , किसके द्वारा बनाई जाती है -उसका यह जीवन अकेले चलता है क्या ?
भ्रष्टाचार क्या अकेले एक पक्ष कर सकते हैं। क्या भ्र्ष्टाचार में जन भागीदारी नहीं है 
सभी के जागरूक होने से पोलियो भागता है, खुले में शौच से मुक्ति मिलती है तो उसी तरह सभी के सहयोग से  अपराध, भ्र्ष्टाचार भी भाग सकता है !
चिकने घड़े कब कम रहे है। प्रयत्न गीत लिखने से थोड़े देश स्वतंत्र हुआ।  
खामोश , पूरा समाज , हम आप सभी चुप , मुँह-आँख बन्द सो रहे हैं।  घर की नई बहू चौकीदार के साथ रा त भर जग कर  पहरा देने का दायित्व निभा रही है। 
इन्होने पुरुष -महिला में बाँट इलाज करने की राजनिती की।  उन्होंने इनकी रीढ़ बाबाओं को ही बाँट दिया। आगे देखो होता है क्या ?
दो चार साल देश में सरकार चलाना है। देश को ५वीं सदी में ले चलना है। इतिहास हजार साल पुराना ही प्रिय और गंतब्य है।  क्या यही लक्ष्य है। 
https://indiankanoon.org/doc/1926500/ संचयिता इन्वेस्टमेंट Sanchita Investment

सरकार है हाथी , महावत सुप्रीम कोर्ट लिये कानून और संविधान का अंकुश है सुरक्षा का सम्पूर्ण आश्वासन 
जब धनी आदमी को बुद्धि-अक्ल-समझ की जरूरत होती है तो उसे बुद्धिजीवी को ऊँचे आसन पर बैठा माला पहना ,प्रणाम कर चरण स्पर्श करना होता है। 
जिस समाज में बहुतायत से बुद्धिजीवी है वे धनी ब्यक्ति को तभी याद करते हैं जब उन्हें पैसे की जरूरत हो और धन को समर्पित करवा चरणों में रखवाते हैं. 

Sunday, 10 September 2017

इतिहास की विकृति को जान कर भी नई पीढ़ी को उसी ओर धकेलने के प्रयास का परिणाम है जे एन यू  की हार। भविष्य को इतिहास से मत ढकिये।  खुद को सुधारें ,भविष्य की ओर चले। 
इसी सोशल मिडिया से शिखर पर पहुँचे थे ! जिन्होंने पहुँचाया था वे ही अब इसी सोशल मिडिया से बुखार उतारते जमीन पर उतारेंगे। 

Saturday, 9 September 2017

चोर , डकैत, भ्र्ष्टाचारी , मक्कार  भी अपने आश्रितों के प्रिय हैं क्यों कि वे उनका पेट पालते है। जो पेट न पाले सो निकम्मा 
पिछली सत्तर पीढ़ियों के गुणगान , उनकी दासता ; से श्रेष्ठ है भावी सात  पीढ़ियों को गढ़ने , श्रेष्ठ बनाने, मनाने , सजाने  का सामूहिक प्रयास 
इतिहास के नशे, उसकी गुलामी से अच्छा है  -  भविष्य के प्रति उत्साह और उत्तेजना , नये वितान की  खोज !!
पद -प्रभाव का लोभ छोड़, जो काज करे, सो स्वयंसेवक कहलाय।
बाकी सब ,जब तक खाये, किये, लिये  ,बस गंग लाभ को जाय। 
जो आपके आश्रित नहीं वे आपके चरित्र - गुणों के ग्राहक -  जो आपके आश्रित वे देह-पसीने-खून-सम्पत्ति के ग्राहक 
आपके परिवार के लिये आपका गुणी होना नहीं, उपयोगी महत्व रखता है। यदि आपकी विद्वता , सदाचार ,चरित्र आपके आश्रितों का पेट नहीं पालता , तो सब ब्यर्थ।  
वह  कैसे मरी नहीं जानता , पर जैसे वह लिखती थी वह सामाजिक या पारिवारिक तो नहीं ही थी।  मैं अपने जवान होते बच्चो को उसके बारे में नहीं बता सकता। 
जयललिता , रामरहीम की ड्रेस जूते की गिनती हो गई।  लगे हाथों इनकी डिजायनर ड्रेस जूतों की भी गिनती हो जाये तो टन्टा मिट ही जाये !
चलो अच्छा हुआ , रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज ऑफिस से कचरा साफ। जो कम्पनियाँ रजिस्ट्रेशन के बाद से लगभग कभी काम नहीं ही की थी , वे भी फ्री। 

Friday, 8 September 2017

किसी लेखक , संवाददाता , रिपोर्टर , मिडिया हॉउस की प्रस्तुति आपको अच्छी नहीं लगी , मनोनुकूल नहीं है - उसे मत पढ़िये।  उसकी उपेक्षा कीजिये। जबरदस्ती तो आपको पढ़ने कहा नहीं जा रहा।
मैं हूँ या आप , किसी को लाठी ले सड़क पर अशान्ति फ़ैलाने का अधिकार नहीं। 
हाँ , यदि आप अपने अभिब्यक्ति के अधिकार की रक्षा चाहते है तो उनके भी अभिब्यक्ति के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए।
घृणा फैलाईयेगा तो घृणा ही मिलेगी। 
पत्रकारिता शब्द-भाव-प्रवाह -प्रभाव समानुपाति सामाजिक सेवा -प्रशिक्षण- परामर्श रही है , एक साथ सारे समाज तक ब्यापक पहुंच के कारण इसमें अतिरिक्त सावधानी और समझदार संयम की आवश्यकता महसूस की गई।  पत्रकारिता आज बाजार वाद से -ब्यक्तिवाद से प्रभावित हो दायित्वहीन  वाचाल लेखन हो  चली है।  सुधि पत्रकार इस और सचेत भी है।  नये पत्रकारों को पत्रकारिता के ब्यापक प्रभाव और उसके कारण उतपन्न दायित्व से  करवाया जा रहा है।  नई उम्र के पत्रकारों में विचार-दायित्व गाम्भीर्य आने में समय लगता है। 
आप बिना फीस के वकील क्यों बन रहे हैं जी ?  उनके वकील बहाल हुए है ?  वकालत स्वीकृत सामाजिक , विधिक व्यवहार है।  वकील से निष्पक्षता नहीं अपने वादार्थी के प्रति पूर्ण निष्ठा की अपेक्षा होती है।
मिडिया में पेड़ मिडिया गाली है।  पक्षपाती मिडिया निन्दा का पात्र है। मिडिया को कुछ जोड़ने  घटाने से बचना चाहिये।  मैं मिडिया - मेरा जो मन जैसे मन , जब मन , जब तक मन दिखाऊँ  दिखाऊँ -  इस मानसिकता से  बचना चाहिये 
मैं अपना ब्यक्तित्व दान करदेनाचाहता हूँ - ये बच्चे किसी तरह महानता का रास्ता भर पकड़ ले  
कोई तो इनमें से मेरे से भी श्रेष्ठ भी हो ही सकता है - भविष्य को कौन जानता है 
जब एक अनजान किशोर कहीं भीड़ में बाँह पकड़ लगभग जबरदस्ती सी करते कहता है कि मुझे तो आप जैसा ही बनना है - बना दीजिये न ; तब कुछ समझ में नहीं आता !
पहलवान बनने के लिए पहलवान की संगति जरूरी है। पहलवानी सिखने की इच्छा होनी चाहिए , सीखाने वाला खोजना होगा , फिर उसे सीखाने के किये तैयार करना होगा , फिर सीखना होगा।
खोजो , मनाओ , राजी करो , दाँत पर दाँत चढ़ाओ , जी कड़ा करो , सीखो , जब तक सीख न जाओ तब तक बर्दास्त करो सब कुछ !!
दिग्गी ने कौन सा ग्रेट पोस्ट शेयर कर डाला की उनके लोग छाती चौड़ी कर सर गर्व से ऊपर कर कहते फिर रहे है - गर्व से कहो , हम भी दिग्गी जैसे हैं. 
जब सरकार , अधिकारी, पुलिस  या जज अभियुक्त की ओर से दलील देने लगे , तब पीड़ित या जनसाधारण दिल पर क्या बीतती है ?

Thursday, 7 September 2017

पिंगल तुम नहीं पढ़ोगे  तो क्या मैं पढ़ूँगा 
सत्तर बीघा- नींव, बारह बीघा - बैठका, तीन बीघा- खाँड़ी , सत्रह नाद , छब्बीस खूंटा ,तीन आंगन
सीजनल फूल , नाच ,गाना , पेंटिंग तुम नहीं तो क्या मैं करूँगा।
पिंगल तुम नहीं पढ़ोगे  तो क्या मैं पढ़ूँगा ...
राजदण्डधारी जिसने जस की तस रख दीन्हि चदरिया - उन सब को मेरा प्रणाम। जिन जिन की चादर बेदाग रही - उन सबको प्रणाम। पर अपने आप से पूछ तो लीजिये ?
वे अरबी या फ़ारसी से उद्धृत करते है , ये संस्कृत से।  दोनों हजार पंद्रह सौ साल  पुरानी स्थापना।  मानो हजार पन्द्रह सौ सालों से सब कुछ आगे बढ़ा ही नहीं। धन्यवाद यथास्थितिवादियों। 
शहीद होने वाले कम ही मिलेंगे।  कितने यार , प्यारे , राजामेरे ,साला बन कर राज भोग गये। 
कुछ चले गए , कुछ जा रहे , बाकी कुछ भी चले ही जायेंगें।
उनको सिखाया पढ़ाया गया अलग से , वे कभी नहीं जायेंगें। 
फुस्स बम , बुझे दिये  और मिसफायर कार्टिज की भी जय बोलने वाले अभी भी हैं। बिना बाती की मोमबत्ती भी बिकती है भाई। 
बिना रीढ़ वाले यहाँ वहाँ , जहाँ तहाँ जमीन पर हर किसी के सामने हर तरह से उलटते पलटते लेटते झुकते मिलेंगे , आश्चर्य नहीं करें। 
हमारे हीरो, आदर्श  - हत्यारे ,चोर , डकैत , घोटालेबाज ,बलात्कारी , नशेड़ी , सजायाफ्ता , भगोड़े , फ्राड , धोकेबाज़ - सुबह अपराधी शाम आदर्श ! वाह !!
भाई , आजकल ये गंजी वाली प्रोफ़ाइल फोटो या कवर फोटो FB पर - कोई फंडा या मैसेज है क्या ? गांगुली टाईप  !
आजकल Ultra ( अतिवादी ) होने की फैशन है - चट एक्शन , पट रिएक्शन ,झट सलेक्शन , फटाफट कलेक्शन !! केजरी कन्हैया या बाबा भैया , सब की पार नैया  
मेरे  जिगर के टुकड़ों , चोरी से सरकार बनी है चोरी से हम पास करेंगे , कर्पूरी डिवीजन , मिश्रा-डिग्री ,  खुल्लम खुल्ला लालू राज , राजपूत विश्वविद्यालय , ब्राह्मण विश्विद्यालय , ..... , थिन पेपर गुरूजी , कोर्स- कम्प्लीट क्लासेस , समझने-समझाने में टाइम वेस्ट नहीं टीचिंग - ये सब  ( केवल केदार पांडेय को छोड़ सब  ) 
1967-70 के बाद भारतीय अर्थ ब्यवस्था  का सबसे बड़ा ऑपरेशन - २ लाख नकली टाइप कम्पनी  बंदी और छँटुआ डायरेक्टर छंटनी । सारा मिडिया चुप।  लंकेश बाँचने में मस्त। 
जिसके कंधे रिस्क वो मालिक , जिसने रिस्क को दूसरे पर  छोड़ा सो नौकर। असफलता की हानि जिसके जिम्मे वो मालिक। 
कुछ निराशावादी , संकुचित ,आत्ममुग्ध , पूर्वनिर्दिष्ट लाल हरे रंग के बुड्ढे खूसट बुद्धिजीवियों  को छोड़ दें तो हालिया वर्षों में भारतीय युवा चिंतन बहुत बदला है। 
क्या असहमति का अधिकार केवल उनका अकेले का ही है ?

Wednesday, 6 September 2017

मेरा एक परम् मित्र मेरे पोस्ट को समझ तो गया , असहमत हो नहीं सका , सहमत होना चाहता नहीं था ,इंटरनल कम्पल्सन , मेरे साथ खेलता रहा।  अच्छा लगा। 
बिना भूख खाने के लिये क्या क्या जतन करने पड़ते है - ऐम्बियंस, कटलरी, ग्रेनाइट, गर्म ,सजावट, हंसमुख , एटिकेट, मैनर्स, लैंग्वेज, लुक, अपील, टेस्ट, न्यूट्रिशन 
चार शाम भूखे रहने के हौसले के साथ काम करो और औरों को खिलाओ। मालिक बन जाओगे। पसीना सूखने के पहले खाना खोजोगे - मजदूर रहोगे। 
मोदी के पास संघ - नाड़ी - तंत्र से प्राप्त प्राणवायु है - ऊर्जा जड़ों द्वारा मिटटी से शिखर तक लगातार पहुंचती है।  औरों के पास केवल शिखर ही है 
नौकर बनने लायक बनना है या नौकर रखने लायक ?
'Whether to be an employee or an employer' - Choice is yours.


कानून नहीं कानून का पूर्ण बिना भेदभाव के प्रवर्तन सुनिश्चित हो।  कार्यपालिका १००% कम्प्लायंस करे और इसके लिये स्ट्रिक्ट लायब्लिटी सिविल पेनाल्टी हो।  उल्लंघन तो भुगतो। 
कड़कड़ा कर जब लगी हो भूख, तब स्वाद, रंग क्या करे ,क्या याद रहे 
जब भूख बिना खाना पड़े , तब स्वाद-शान-शो-शौकत ही काम करे। 
उन्हें हर मर्ज की दवा हथियार और मार काट ही क्यों लगती है। दुनिया के हर कोने से उनका यही पैगाम - न रहेंगें , न रहने देंगे। 
चार धार तलवार है ,विष बुझी है नोक।
लपके झपके जात है , नहीं कोई रोक।  
आवाज जो भी, जहां भी, उठे , मेरे लिए उठे !
जो मेरे लिये नहीं, सो सब कुफ्र !यह करार हो ?
वक्त , उफान और सैलाब ने सब कुछ तो मिटा ही दिया। 
वरना हिसाबकिताब - खाताबही , था तो सब गड़बड़ ही। 
बड़ी हिम्मत लगती है भाई अन्याय के खिलाफ खुलमखुल्ला , देह , चेहरा ,कलम,आवाज , शस्त्र या शास्त्र खोलने उठाने या दिखाने में। 

Tuesday, 5 September 2017

पी आई ऐल प्रसिद्धि की रॉकेट है जो जज को टॉप पर और वकील को पेशे में फिक्स करने इंस्टेंटली कारगर ,फायदेमंद है। PM , CM , DM सब डरते है। जज का काम करते हैं। 
हर एक  मौत राजनीतिबाजों के खेलने के लिये एक फुटबाल भर है। सामूहिक मौत हो तो राजनीतिबाजों का ओलम्पिक सेलिब्रेशन !!
संविधान तो हमारी दासी है।  नहीं है परसन में इनक्लूडेड तो कर  न देंगे। मरेगा ये तो हमारे ही हाथों क्यों कि यह हमारी एक्सक्लूसिव मिल्कियत जो है 
जो जितना बड़ा कलम घिस्सू वो कागज पर उतना बड़ा क्रन्तिकारी ,
फरेबी बकवादी बनता बड़का वाला तकरीर-कर्ता , प्रवचन कर्ता भाषणबाज 


वकील की फीस वह नहीं होती जिस पर वह काम करता है।  उसकी फ़ीस वह होती है जिस पर उसने काम करने से मना कर  दिया है 
कभी दुआ माँगता , कभी दवा माँगता ,
बीमार क्यूँ , ये हाल क्यूँ , नहीं जानता
कभी साँस मांगता कभी आश माँगता
मौत : जिंदगी ,क्या माँगू ,नहीं जानता। 
वे हाथ चलाते , कुछ करते कराते चलते रहे थे , मैं बस देखता रहा , आज वे एक दौर ,हकीकत के तूफान जैसे , आखिर मैं भी उनके पीछे लग लिया।
काश ! पहले होश आया होता

Monday, 4 September 2017

राजनीतिज्ञ एक ही विषय -विचार को भिन्न भिन्न रंग-पैकिंग में विभिन्न देश - समूह - क्षेत्र में सफलता पूर्वक मार्केटिंग के विशेषज्ञ होते है। 
पीड़ित को मुकदमे की उम्र और बढ़ती जा रही संख्या से सुलह के लिये बाध्य करने की रणनीति भी बढ़ती मुकदमेबाजी का कारण है। 
नरसिंहराव काल की टुटे मनोबल वाली कांग्रेस और डरी हुई संसद ने कॉलेजियम निर्णय का मार्ग प्रशस्त किया !!
उनका जितना प्रचार उनके विरोधियों ने किया उतना तो वे नौ जन्म में नहीं कर  पाते।  विरोधियों की गालियाँ उनको नायक बना ले गई। 

Sunday, 3 September 2017

तुम्हारी बददुआ  बहुत थी , उसका एक झीना सा आँचल काफी था।
ओट उसके आँचल की , तुम्हारी बद्दुआओं का खोट धरा रह गया  !!
मकान तो केवल वे ही बना सकते हैं जिन्हे इसकी ट्रेनिंग या तजुर्बा है। लोकप्रिय नेता के कारण चुनाव जीत जाने से कोई दक्ष प्रशासक भी हो जाये , जरूरी तो नहीं। 
वकील कोर्ट के लिये और कोर्ट वकील के लिये।  जनता , संविधान , जनमत , न्याय कहाँ जायेगा ?

Saturday, 2 September 2017

वक्त कभी इतना भी बुरा नहीं हुआ की एक और कोशिश न की जा सके। वक्त ने दरवाजे कभी बंद नहीं किये !

Friday, 1 September 2017

आपका धन आपका तो मेरा यश  ?
यदि आपके धन की छाया भी मेरी नहीं तो मेरे यश की शीतलता ?
काश ! मैं लोमड़ी , गीदड़ , भेड़िया , सियार , लकड़बग्घा होता !! कोई मेरी बली या क़ुरबानी तो नहीं देता , न पालतू बनाता !!!
अंग्रेजों के समय दो ही श्रेणी थी - लॉ ब्रोकर एवं ला ब्रेकर ! पहले वाले पीपी, जीपी ,जज बने: दूसरे वाले सारे बोले हम थे स्वतंत्रता सेनानी।  १९४७ के बाद दोनों मिल गये। 
अंग्रेजों के काल  से ही उस समय के सरकारी वकील सरकारी अधिकारीयों के निर्देश पर तथ्य तोड़ते -छिपाते थे , उपाधि पाते थे। आज भी वह हू बहू चल रहा है। 
बड़े सलेक्टिव अजब गजब लाइक और शेयर कर कम से कम मुझे तो एक संदेश दे जाते हो - पलकों  के नीचे कुछ भींग सा जाता है। 
पुरे समाज को बाध्य नहीं किया जा सकता , प्रेरित या आंदोलित किया या करवाया जा सकता है।  बाध्य नहीं प्रेरित करो - सफलता मिलेगी। 
किसी भी ब्यवस्था ,संस्था ,समाज की असली ताकत इतिहास में हो चुकी गलतियों को स्वीकार करने में है - पुनरावृत्ति -प्रतिशोध के आग्रह में नहीं। 
बहुमत भी संविधान के मूल स्वरूप और उल्लेखित मौलिक अधिकारों को आच्छादित करने का आधार नहीं हो सकता। 
केवल ब्यक्तिगत सदाशयता या निश्चय से ही नहीं होगा , सर्वजन की स्वेच्छया भागीदारी, प्रयास के लिये प्रशिक्षण और प्रतिबद्धता भी जरूरी है। 

Wednesday, 30 August 2017


रमेश कुमार रतेरिया 
मारवाड़ी सम्मेलन से मेरा जुड़ाव क्रमिक हुआ। (  १९७५  ) पूज्य हरिराम जी गुटगुटिया , खेमचंद्र जी  चौधरी के पास में बाल  सुलभ उत्सुकता में समाज और सम्मेलन के बारे में जानने को अकारण चला जाता था।  याद पड़ता है एक रक्षपाल शास्त्री जी थे।  एक मातादीन जी गोयल थे। इमरजेंसी का समय था, या ठीक उसके बाद का समय था।   आज के झारखंड के चाकुलिया में नमक के कारण समाज के भाईयों पर केश मुकदमे क्र दिए गए थे।  उसमे बाद में भारूका जी जो बाब में माननीय उच्चन्यायालय के न्यायाधीश भी बने , ने अपनी विद्व्ता से वः केश जीता।  पर मेरा मन इस घटना पर बड़ा खट्टा हुआ।  मुझे सम्मेलन की पत्रिका का पटना का पता मिला , मैंने एक पत्र लिखा।  पत्रिका में वह  छपा।  प्रोफेसर विश्वनाथ जी ने उसे सराहा और उस पर  सम्पादकीय लिखा। देहरी ों सोन के मरोडिया जी थे - विनोद मरोडिया।  आश्चर्यजनक सामाजिक उत्साह और संगठन करता।       किसी क्रम में भागपुर निवासी शंकरलाल जी बाजोरिया से अपने प्रारम्भिक वाम-विचाराग्रह के लिये डांट भी १९७७ -१९७८  के आस पास पड़ी थी।

फलाने को उसके अधिकारीयों ने , सी बी आई - पुलिस  - कस्टम वालोँ ने रंगे हाथो पकड़ा।  फलाँ जेल में।  फलाँ निलम्बित। खेल क्या है।  बस हो गया 

Tuesday, 29 August 2017

राजनीति असम्भव विरोधी तत्वों के समन्वय की साधना है। राजनीतिज्ञ  दूरदर्शी हो तो हजारों साल , लोभी -कामी संकुचित दृष्टि हो तो बंटाधार। 
बाबा आशा-राम  कहाँ नहीं है।  साहित्य , प्रकाशन , सिनेमा ,थिएटर , क्रिकेट , वकालत , पी एच डी , डाक्टरी , फैशन  , प्राइवेट सेक्टर ....... कहाँ नहीं
सुदूरस्थ लक्ष्य बदले नहीं जाते - बस पीढ़ी दर पीढ़ी लक्ष्य की और रिले यात्रा में आगे बढ़ना ही जीवन है। 
बताशे के लिए न शहर न घर जलाइये , कृपा के लिये न पीर-पंडे की देहरी लाँघ अन्दर जाईये। 

बताशे के लिये यूँ शहर मत जला दे
यहाँ तेरे भी जाये सोने आते रहते हैं।
नींद इन्हे यहीं इसी जमीन पे आती है
सकून से सोने स्वर्ग-जन्नत नहीं जाते।
इसी मट्टी पे खेल इनकी हंसी जवाँ हुई
हंसने के लिए ये पीर पंडे तक नहीं जाते। 
https://www.bhaskar.com/news/BIH-PAT-HMU-MAT-latest-patna-news-020502-1865785-NOR.html
एक परिवार ही है परिवार बनाम समाज - राष्ट्र है  एक परिवार 
मोदी! न आदि हैं , न अन्त , न मध्य , न  केंद्र।  वे एक काल खण्ड के केवल वर्तमान है जिनका मूल्यांकन भविष्य करेगा - न की मेरी निंदा - वंदना !

Monday, 28 August 2017

बहुतों के पाप सामने आये तो सही पर बिना जांच के ही वे भगवान बने बने ही स्वर्ग चले गये ,सीधे पट्ट पूर्ति से !
सच है - सच , परस्पर सद्भाव , परस्पर अहिंसा , परस्पर क्षमा , पारस्परिक सहयोग  बहुतों के पल्ले ही नहीं पड़ता। 
अभी भी राजनीतिज्ञ फैसले पर औपचारिक किस्म की प्रतिक्रिया  ही दे रहे हैं। 
Corruption-convict was leading president of India election campaign . Now Rape convict will lead  (      ) ?
मेरी १६ वर्षों तक शिक्षा जैन विद्यालय , कलकत्ता में ही हुई है। 
जैन धर्मावलम्बियों का अभी क्षमावणी पर्व चल रहा है , इस अवसर पर जैन धर्मावलम्बी परस्पर क्षमा मांगते हैं।  इसे अन्यथा न लें।  मुझपर भरोसा तो रख ही सकती थी। 
सम्पूर्ण भारत के लिये एक साथ कम से कम सौ साल का संवैधनिक और विधिक सपने वाला दिमाग - दिल -शरीर -हाथ - हौसला दिखे तो बताना जी !
खुद को हाई प्रोफ़ाइल अतिसाधनसम्पन्न  मुद्दालेह बना , दिखा प्रकारांतर से कोर्ट को प्रभावित करने की कुचेष्टा थी यह। 
धार्मिक किताबों की सारी आलोचना बिलकुल ब्यर्थ है ?  मेरी किताब की हो या आपकी - एक बार आपस में  मिल बैठ जांचिये तो सही। 
हाई प्रोफ़ाइल लोगों के साथ की अपनी फोटो को ऑफिस , ड्राईंग रूम , अपने कार्य स्थल पर लगाने का उद्देश्य ही है भोले लोगों को मुर्ख बनाना। 
 हम और आप पापियों के साथ किसी न किसी बहाने खड़े हो ही जाते है - बस यहीं पापी का मनोबल बढ़ जाता है। 
अब तो पता चल चुका होगा की बड़बोला हो कर नहीं चुप रह कर ही इज्जत मिलती है। 
जिसने जमीन खरीदी -जमींदार , कोमोडिटी वाला ब्यापारी , इंसान बिना भावना जाना -डाक्टर , सबकुछ बिना इंसान जाना इंजीनियर - साइंटिस्ट - जिसने पूरा इंसान-समाज जाना वह वकील-जज। 

Sunday, 27 August 2017

मित्रता और मर्यादा में खट्टी मीठी खटपट चलती रहती है जो मित्रता को प्राण देते रहती है। 
२००८ में एक एकेडेमी में एक रामरहीम थे कतिपय मित्रों के साथ। कोई एक अड़ गया। उसको उखाड़ दिया गया। 
राजा का हो या धर्म का या निति का - कानून जब मानव का सब कुछ परिभाषित व्  नियंत्रित करने का प्रयास करे तो सावधान हो जाये. 
एक कर्नल ही तो पहला या आखिरी नहीं है , इन राजनीतिबाजों को जब जहाँ मौका मिला यही तो किया है। कोर्ट ने आज तक ताकत भर किया है।  सत्य लेकर साफ हाथ से हाजिर तो होइए। 
बस सारी  जेड  सिक्योरिटी का कंसेप्ट ही खत्म करडालो।  परसनल सिक्योरिटी खत्म कर दो। फलाफल सामने  आएंगे। 
विश्व में क्रांति संविधान - ब्यवस्था उखाड़ कर आकस्मिक बदलाव का नाम है।  भारत में यह संवैधानिक ब्यवस्था लगातार लागू करने का नाम है। 

Saturday, 26 August 2017

हम किस समाज में हैं।  पीड़ित के लिये हमारे पास कुछ भी नहीं !
लोकतंत्र न कुलीनतंत्र , न भीड़तंत्र , न भाव - भावनातंत्र।  यह है विधिकतंत्र , न्याय-तंत्र ,यथार्थ तंत्र , समरुप -तंत्र !
इतने हाई प्रोफ़ाइल अपराधी के विरुद्ध मुँह खोलना , सुचिका  या पीड़िता बन आगे आना , साक्ष्य संकलन , अनुसंधान , विचारण निर्णय  कितना तकलीफदेह होता होगा ?

Friday, 25 August 2017

न्यायालय पर प्रश्न उ?ठाने के पहले अपने आप से पूछे - आपने न्याय के लिया क्या किया / न्याय माँगा सो सही - न्याय किया की नहीं।  
तुम्हारे वाले को तो पकडूँगा , मेरे वाले को बचाऊँगा - यह तो नहीं चलेगा !
सभी के अपराध के लिए समान रूप से मुंह खोलिये , अपने वाले के लिए मुंह बन्द - यह कैसे चलेगा , अपने वाले को मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारा में मत छुपाओ। 
मेरा न्याय , मेरे वाला अपराधी , तुम्हारा पाप , तुम्हारा पुण्य - यह खेल मत खेलो 
बाबा  को आज वह जज याद आ रहा होगा जो खुले आम बोलता था मेरे फैसले तो बाबा की प्रेरणा  से लिखे जाते  थे। मैं तो उन्हीं का बनाया हूँ। 
लालू , शहाबुद्दीन , मधुकोड़ा , जयललिता , शशिकला , टू जी , कोयला , कसाब , मेमन ,इन्दिरा , सहारा , शाहबानों , शायराबानों  - सब को देखा जजों ने।  
पहले भी हुआ है - आनंदमूर्ति , आनंद मार्ग याद है न।
जेल का फाटक टूटेगा - बाबा मेरा छूटेगा। 
तन-मन-धन सर्व समर्पण करवाने वाला प्रवचन-विश्वास कहाँ ले जायेगा ?
तन-मन-धन सब का समर्पण मांगते हो , देते हो , करते हो , करवाते हो , तब नहीं सोचा ?
कानून को छिद्र युक्त बनाना राजनीति , उसमें छिद्र खोजना वकालत और छिद्रों को भरना न्यायाधीशगिरी। 
निर्णय की संभावना , लाखों लोग , फैसला आया , हिंसा हुई , लोग भागें , पर किसी के पास निर्णय के अभिनंदन की संभावना का कोई प्रमाण नहीं। पहले से लोग को पता था , तैयार थे। 
 होता है , होता है - हिम्मत से जज के पास सच सच बयान दे के तो देखो !
न्यायालय इतने दबाव में भी कार्यशील ! गर्व है हमारे जजों पर ?
जनसेवा, रॉबिनहुडिज्म बनाम माफियागिरी बनाम बाबागिरी बनाम सत्ता बनाम पैसा !
रही सही कसर पूरी। उनका निर्णय भी आ गया।  जो हो रहा, जो आगे और होगा - जिम्मेदार कोर्ट है।   
एक समय एक बाबा को सर्वोच्च स्तर पर बचा  लिया गया था , इससे भी घृणित आरोपों की जाँच ही सीधे बंद करवा दी गयी थी। हवा तक नहीं लगी किसी को। 
टुकड़े वाले तो एक कैम्पस में ही थे, बीएस बोल भर रहे थे !
इन लोगों ने तो महिला ,सड़क , शहर , सेना , पुलिस , न्यायालय किसी का लिहाज तक नहीं किया।

Thursday, 24 August 2017

श्री मान , कितनों ने जन्म ,  विवाह ,मृत्यु से ही रोजगार निकाल ही न। 
अपराधी और काले की सुरक्षा अब सातवें ताले के बाद आत्यंतिक रूप से परम सुरक्षित एवं फूल प्रूफ । 
काले  का अधिकार , हमारी निजता का अधिकार - जुग जु ग जिओ आप माननीय।
आपने हमारा काला समझा ,उसे बचाया !!
हुर्रे ! काला बच गया !!

Wednesday, 23 August 2017

धन , दृष्टि , ऊर्जा , निश्चय ,धैर्य, हिम्मत - बस आज तक यह समाज इसी पर चलता, अकड़ता , लड़ता  रहा है। 

अंग्रेजों के द्वारा खड़ा किया गया कचहरी का ढाँचा नेटिव लोगों के दमन की संस्था थी और इससे जुड़े लोग अंग्रेजों की ब्यवस्था के दलाल ?
अंग्रेजों और कांग्रेस ने उन अपराधियों , दलालों को खुली छूट दी जो उनके साथ मिल कर चलते थे - विरोध नहीं करते थे !
क्या अंग्रेज झूठे ( सेलेक्टिव ) मुकदमे लादते थें ?
स्वतंत्रता के समय के भुक्त भोगी और वकील सब कांग्रेसी थे ,उन्होंने इसे सत्तर साल  सुरक्षित चलाया  ?
हलाला है - मतलब रोजगार और रोजगारी !
जन्म , विवाह या मृत्यु - हमारे यहाँ  भी तो हलाल करने वाले हैं ही , उनका गोड़ पूजे बिना मुक्ति नहीं !

Tuesday, 22 August 2017

दीन , दीनियाद , धर्म , धार्मिक कर्मकाण्ड  को ब्यापार - पेशा , दुकान , कारोबार धन्धा न बनायें। 

Monday, 21 August 2017

गबन , गोदान , कामायनी कम बिकेगी।  आमला की चटनी भी कम लोकप्रिय।
तो क्या मैं भी चाट ,पकौड़ा का खोमचा लगाऊँ। रंगीन रातें  लिखूँ। 
अपराधियों को सरकारी संरक्षण के लिये सिद्धांत - बहुत गहरी तार्किक  जाँच नहीं, बस लगाये गये आरोपों तक सिमित ।  सच्चाई तक कभी  नहीं। 
बहुत गर्मी लग रही है - यह गर्मागरमों की बस्ती है भाई।  मैं हुआ किनारे !
रौरव नर्क के डर से बचाओ। नर्क के श्राप के डर  से बचाओ। नर्क भेजने और उससे बचाने के ठीकेदारों  से बचाओ। 
कानून और कानूनी संस्थाएँ  राजनीति  के हथियार भर हैं , न्याय के साधन या साध्य नहीं है।जन कल्याण  इसका विषय है ही नहीं 
क्या पूरी काली दाल कभी नहीं दिखेगी या हिम्मत नहीं है काली दाल को देख क्र भी काली कहने की !
अपने पड़ोस में ही रातों रात फॉर्चूनर आने पर और साल भर में ही ग्रेनाइट -संगमरमर पत्थर की ट्रक और दो साल में बन गए चार मंजिले  मकान का रहस्य क्या आप नहीं जानते ?

Sunday, 20 August 2017

कोई भी संस्थापक या प्रवर्त्तक  किसी कम्पनी , ट्रस्ट ,संस्था या पार्टी का मालिक नहीं हो सकता। माता-पिता संतान के स्वामी नहीं हैं। 

Saturday, 19 August 2017

विधि की अनजाने में भी हुई अवहेलना के लिये शर्मिंदा होने वाला , खुद को दंडित करने वाला समाज ही वैश्विक यश पाता  है। 
कानून की पढ़ाई का संबंध केवल कचहरी से ही नहीं है।  इसका उद्देश्य कानून की साक्षरता , जागरूकता , अनुपालन वृद्धि भी है। दैत्याकार कम्पनी अर्थब्यवस्था में विधि का कठोरतम अनुपालन ही एक रास्ता है। 
ईमान खरीदोगे ही नहीं तो वे बेचेंगे किसको ? मर जाने दोउन बेईमानों को उनको भूखे ! पर तुम्हें अपना अपना ही दीखता है !

  • हमें शराब, जर्दा , नशा ,अश्लीलता , वैश्या और भ्र्ष्टाचार , ब्यभिचार , हिंसा के खरीद्दार या दलाल होने में शर्म क्यों नहीं आती ?
मगह मे शस्त्र , मिथिला में शास्त्र 
भला हूँ , बुरा हूँ , मैं फूल तुम्हारी बगिया का। रंग भरे है तुमने , पढ़ाया , लिखाया ,सिखाया , खिलाया पिलाया तुम्हारा ही हूँ। 
धर्म के नाम पर तवा गर्म करने से फुरसत मिले तो कर्म पर भी ध्यान देना।  घृणा ही सब कुछ नहीं है।  उसका त्याग ही भला !

Friday, 18 August 2017

वाम गतः , कांग गच्छति -  काज रसातलाय  गतः 
समाज उत्तेजनाओं और विवशताओं के समन्वय ,सामंजस्य एवं आनुपातिक संरक्षण के लिए गठित संस्था का नाम है। 
आज कानून की पढ़ाई और आज के वकील का स्तर पहले से सौ गुना बेहतर भी हुआ है - भले ही कहीं  कही  ही। 
वकालत के पेशे की सरकार से पृथकता , स्ववित्तपोषित होना ही इसकी स्वतंत्रता और शक्ति की गारण्टी है। 
आपकी कलम भी नाचती घोरती , गुस्साती , झकझोरती , उछल कूद मचाती बड़े मजे से दिन दिन भर बतियाती है - आई ; उठ कर  चली गई : उसके बाद भी अड़ी  रहती है।  जाने के बाद और अधिक जबान लड़ाती है।  आपकी कलम में कित्ती गरम गाढ़ी फ्लोरोसेंट स्याही है , रात  में भी चमकार मारती है। 
हाँ , ये तस्वीर बात करती है !
निन्यानबे प्रतिशत को पता ही नहीं की काला , गन्दा  , भ्र्ष्टाचार  , अनुचित होता क्या है , पैदा कब और कहाँ  किसके द्वारा क्यों किया जाता है। उसने शायद नाम भर ही सुना है।  वह अनुचित-अनैतिक आचरण को जन्म से ही ब्यवहार में अपने से बड़ों के माध्यम से देखते आया है और इसे ही सामान्य प्राकृतिक सामाजिक ब्यवहार मंटा आ रहा है।
 काला , गन्दा  , भ्र्ष्टाचार  , अनुचित संगो पांग समझाया दिखाया बतलाया ही नहीं गया  ! समझ में आवे तो कैसे।  इसका स्वरूप छिपाया जाता है।  इसे सदाचार के रूप में ही सिखाया बताया जाता है। 
कभी किसी कायर को अपनी कमान या लगाम मत दीजिये - कब बीच में छोड़ या तो भाग जायेगा या बैठ जायेगा। 
एक रूपये के कच्चे माल को खाता बही में सौ रूपये का बताने का रास्ता है - उस पर दलाली की कॉस्टिंग मढ़ दो - और कानून वालों ने ही ईजाद किया था यह। 
एक सौ सालों से दलाली करने वाले , खाने वाले , देने वाले ,लेने वाले - इन्हें कानूनी स्वीकृति देने वाले अधिकारी , कानून और कोर्ट को क्या सजा दें। 

Thursday, 17 August 2017

भूखे अथवा असफल आदमी का संयम एक मजबूरी भरा ढोंग भर है।
सफल या पराक्रमी ब्यक्ति की विनम्रता एक रणनीतिक दिखावा। 
कुछ जो आये तो बन के चल दिए
कुछ जो आये तो नीभ के चल दिए
कुछ जो आये तो निभा के चल दिए
कुछ जो आये तो बनाये और चल दिए
बहुत कम ऐसे आये जो जोड़े ,बनाये
चले तो गये पर कभी भी नहीं  गये।   

Wednesday, 16 August 2017

लिखते हो भाई , पर इत्ता खस्ता कच्चा माल दिल-दिमाग की किस बगिया में कब कैसे ऊगा -बढ़ा -फूला -फला  लेते हो - और कैसे इतना टटका टटका परोसते हो - कभी कभी झाल , कभी टेस्टी पंचमेला स्वाद , कभी चूँटी काटते से , कभी तलवार भांजते से , कभी जमाने से लड़ते से - कभी इत्मीनान नहीं रहती कलम आपके हाथों , रात-रात जगाते से.... कैसे रच डालते हो यह अद्भुत संसार आप- वीरू भाई 

Tuesday, 15 August 2017

उम्मीदों ने जब से किनारा किया , दर्द का सैलाब उतरता चला गया !
जब सुनने ही वाला कोई नहीं हो , अब तो रो कर  भी क्या होगा यारों !!
तीन साल पहले तक हमारी चिन्ता थी - हे भगवान अब और बिगड़े नहीं।
अब सोचते है - सुधार  बहुत धीरे है , ऐसे कब कब तक चलेगा। जादू की तरह सब कुछ क्यों नहीं  ?
लाल किला स्वतंत्रता या का प्रतिनिधि प्रतीक क्यों और कैसे ?
और महाराजमहल सा आज का राष्ट्रपति भवन या राजपथ  गणतंत्र का प्रतीक या प्रतिनिधि कैसे ?
सत्तर साल हो गये , अभी भी देशभक्ति घण्टे -दो-चार के लिये साल में दो चार दिन , वो भी गाना गाने-बजाने के बाद कभी-किसी किसी तक आती है  !शेष दिन कहाँ रहती देशभक्ति ?
आपके प्रमोशन , ऑफिस , टारगेट , कोर्ट , क्लाईंट ,केश , करियर , पार्टी , धर्म से भी जरूरी है - हमारा पूरा समाज और भाई-बहनों - बच्चों का समूह और उनका सुरक्षित उन्नत भविष्य। 

Monday, 14 August 2017

आप को समाज जाने ,पहचाने , समझे , इससे जरूरी  है आप सम्पूर्ण समाज को जानने ,समझने पहचानने की प्रभावी कोशिश तो करें। 
आपका काम , उठना , बैठना , लिखना -पढ़ना समाज के अनछुए हिस्से से संवाद करें , तभी उसकी उपयोगिता। 

Sunday, 13 August 2017

क्या सियासतन या शरारतन या दुश्मनी में भी ऐसा कोई कैसे कर  सकता है। और ऐसी घनघोर लापरवाहियाँ हुई तो घोर अपराध , और करी या करवाई गयी तो सजा कानून के साथ समाज भी दे।  
भाई ! लड़े तो वे भी और वीभत्स रूप से अधर्म युद्ध लड़े।  म्लेच्छ -असुर आदि सभी एक ही विश्वास धारा  के थे।  शैव - वैष्णव  भी एक ही धारा  के थे।  बज्रयान -हीन यान , के बीच का संघर्ष। कितने खूनी युद्ध हुए। कलिंग का युद्ध  ? धर्म के नाम पर हमारे यहाँ शास्त्र बताते है - वीभत्स युद्ध हुए , नर ( राक्षस ) सँहार हुए।  लोगों ने कैसी कैसी शपथ ली धर्म के नाम पर 
समझ में नहीं आता , लाखों रूपये नाच-बाजा-गाना-चढ़ावा -मन्दिर -मज़ार -होटल -टीप -बख्शीश पे खर्च करने वाले ए सी होटल के भोजन के GST रेट पर इत्ता मगज मारी  मानो घर गिरवी रखना पड़ेगा  
भारत एकांगी या एकरंगा नहीं है।  हजारों साल की फलती फूलती संस्कार-रिवाज  की संस्कृति है जिसमे परस्पर विरोधी मत समन्वय स्थापित कर उगते -बढ़ते-मिलते-जुलते रहे हैं। 

Thursday, 10 August 2017

चांदनी के साथ गुजारी रात
तारों की जो आई थी बारात
बीएस यद् आ गये वे हालात
शर्म से चाँद भोरे नहीं आया 
सचमुच मैं मुर्ख था जो विरोध और युद्ध में अपने विरोधी से ही न्याय अथवा धर्म की उम्मीद लगाए बैठे था कि विरोध में भी अनुचित अनैतिक अन्याय  नहीं करेंगें। 
यदि आपका विश्वास या उसका वाहक या वाहन कमजोर है तो अपने विरोधी से उम्मीद न करें कि वह  उसकी रक्षा करेगा ! और करेगा भी क्यों ? 
गिरने को जी चाहता है , देखूँ तो सही कौन उठाता है।
हिल गया ,फिसल गया ,देखो मैं तुमसे यूँ मिल गया।

नफ़रत के पल भर के मंजर का जिक्र करने के पहले मोहब्बत की सदियों की फ़िक्र करना।
एक घाव , नया या पुराना का ईलाज दूसरा घाव नहीं हो सकता। 
रंग बिरंगे छींट बूटे  के कपड़े , बहुरंगे फूलों का गुलदस्ता और विचार -आचार -उपचार भिन्नता से सजा सुरक्षित  समाज ही सोहता है 

Wednesday, 9 August 2017

एक न्यायालय में मुकदमे के निस्तार हो जाने से केवल उस मुकदमे का प्रमोशन भर होता है।  मुकदमा रूपी वायरस और फलदायी वृक्ष ज्यों का त्यों। 

Sunday, 6 August 2017

निन्यानबे प्रतिशत विज्ञापन भवनाओं से या मानवीय प्राकृतिक उद्दीपन से वहशी की तरह खेलते है। 
नशा तो नशा है ,हर नशा नशा ही है। नशा वैरायटी एक, मना और वो चालू। यह नहीं होना चाहिये। यह बेईमानी है !अन्याय है!  दोहन है!  ध्यान देना चाहिये यदि ऐसा है तो। 
नये के आने के उत्साह को महसुस तो कीजिये !
आओ ,आज उन तक चल कर वहाँ तक चले !
जिन तलक चल कर उनके अपने भी न चले !!
अपने से छोटी बड़ी , आगे पीछे की पीढ़ियों का प्यार , दोस्ती , मित्रता ही सम्मान है। 

Saturday, 5 August 2017

अहंकार दूसरों को छुद्र दिखाने की सतत प्रतियोगिता है। 
क्या अहमद नाम के गुजराती तोते में कोई इटालियन जान बसती  है क्या ?
अहमद की जान इत्ती किमती !
लोगों ने मार्क्स , लेनिन , ट्राटस्की , स्टालिन एक झटके में उखाड़  फेंके , सद्दाम फेंक दिया ,
आप क्यों परिवर्तन से इतने आतंकित है , और आतंकित हो आप परिवर्तन रोक लेंगे क्या ?

Friday, 4 August 2017

न भूत से डरा ,न आज सेन भूत से डरा ,न आज से मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ में हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान ! मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ में हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान !
न भूत से डरा ,न आज से मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ मेंन भूत से डरा ,न आज से मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ में हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान ! हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान !न भूत से डरा ,न आज से मन भरा ,न की सिहरन, न कोइ महान ! हाथ में हथौड़ा , छैनी , दाँत पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान !
न भूत से डरा , न आज से मन भरा , न अगले वक्त की सिहरन, न कोइ महान  !
हाथ में हथौड़ा , दूसरे में छैनी , दाँत  पे दाँत चढ़े ,वक्त की छाती पर एक निशान !
तलाश जारी है , आप सा ही और एक मिल जाये तो जोड़ा लग जाये 
मुझसे बेहतर हजारों आये , आये , गाये , गा कर चले गये।
मैं भी सुनता ,कहता , बह कर गाता ,झूमता चला जाऊँगा !! 
शुक्र है , कोई तो पढ़ता भी है ! पर क्यों ?
नीलामी लगा कर वैश्या  को जन्म देते हैं। भ्र्ष्टाचार भी अहंकारी खरीद्दार बोली लगा कर  पैदा करते हैं । 
जिस दिन विवेक , विद्वता, अधिकार और न्याय को खरीदने का दुस्साहसिक प्रयास खत्म हो जायेगा , उसी दिन भ्रष्टाचार समाप्त !
सेना पर भी पत्थर और इन पर भी !!
ये तो बहुत नाइंसाफ़ी है !
पत्थरों के स्टेंडर्ड का तो ख्याल रखो !!!
किस्से तोता-मैना मुझे नहीं सुहाता.
राजा की विरुदावली लिखूंगा ,गाऊंगा नहीं।
शमा-परवाना -हुस्न-हसीन श्रृंगार रस ! बस भी करो।
मुझे भगवान के नाम पर काहिल -जाहिल मत बनाओ।
जाना तो है ही , चला भी जाऊँगा  ही ,
कुछ कह-कर -सीख -सिखा -देख -दिखा , कह -सुन जाने भर दम दो।
सब कुछ यहीं का मेरा तुम्हारा ही होगा , किसी जन्नत या दोजख का जिक्र तक नहीं..
तुम्हारा और मेरा भोगा  केवल सच सच , और कुछ भी नहीं। 
मोहब्बत से जंग नहीं होती , पर मोहब्बत में जंग जरूरी है।
 जरूरी जंग फर्ज है।
 गुनाह बर्दास्त करना अव्वल गुनाह है।
रही बात जंग के बाद की तो इज्ज़त वो ज़िल्लत तो उसी की रजा भर है।
 पहली च्वायस माफ़ कर  दो यदि नाइंसाफी आप के साथ हो ,और आप को माफ़ करने का हक हो।
 यदि नाइंसाफ़ी गैरों के साथ है तो इंसाफ के लिए सब कुछ लुटा डालो।
और दिनी रास्ते पर अपने ईमान पर भरोसा करो। 
मैं अब भी नित्य सामाजिक प्रशिक्षण विद्यालय और सामाजिक रूप -साधन वृद्धि के लिए  आता -जाता रहता हूँ। 
बड़े लोग - मेनका , मधुलिमये , नंदिनी सतपथी , जिंदल , टाटा , थरूर , जयललिता , आदि के लिए होनरेबल ह्रदय अधिक धडकता है। या फिर सुब्रत , पप्पू ,कर्णन पर गुसियाता है। 
सर झुकने के पहले उठो और चल दो। 
कलम तू न बने क्षत्रिय , न करे, न फैलाये हिंसा !
कलम तू बन चौकीदार , कर तम, हिंसा से रक्षा !! 

Thursday, 3 August 2017

७० या ८० साल से बह रही भ्र्ष्टाचार -धारा और आवभगत करवा रहे ब्यभिचार स्वामी की तीन वर्षों में यह दुर्गति किसने सोची थी ?
भानुमति का कुनबा , फूटा ,टूटा , छूटा , लूटा।
खूब डुबाया , खुद तो डूबा ,सब को भी ले डूबा। 
अक्सर ज्ञात प्रकट सार्वजनिक जीवन वास्तविक पर अप्रकट और अधिकांश के लिए अज्ञात ब्यक्तिगत जीवन के विपरीत होता या पाया जाता है। 
मारवाड़ी समाज में लोहिया ही विचार बीज पुरुष हुए। 
माँ , तू जिस मिट्टी  में नहीं खेलने देती थी कि गंदा हो जायेगा
जिंदगी किताबों की सीख में उससे अधिक गंदी हो गयी !
विपक्षी एकता किचड़ाय  गताः 

Wednesday, 2 August 2017

अहमद पटेल तेरा शुक्रिया
तूने मोदी का नाम सुझाया
पंद्रह साल  की सोनिया तपस्या
उस ईर्ष्या आग में मोदी तपाया 
Save our
Justice Delivery System
playing
VIP Serving Syndrome Tunes. 
न्यायिक ब्यवस्था को
 प्रचार की भूख , 
सेलिब्रेटी बनने की 
लालसा से बचना चाहिए। 

Tuesday, 1 August 2017

खाली कर के मत जाना 
निश्चिन्त है भुवन में ,
जो है योगी और जो है मूर्ख !
वे ही हैं अभागे ,
जो न योगी , न मूर्ख !!
खाली जाना ! 
खाली छोड़ कर मत जाना !!
खाली नहीं छोड़ना !
बोझा भी नहीं छोड़ना ! 

Monday, 31 July 2017

संघ एक सामान्य शब्द के रूप में भी स्वीकारें। भारत में एक आप ही का संघ नहीं है।  ये तो कांग्रेसी मानसिकता थी की संघ शब्द को रूढ़ि अर्थ दे डाला और आप जैसे लोग उसी में बह गए।  अनेक राष्ट्रद्रोहियों के अपने अपने अलग संघ है इसी देश में। 
कुछ लोग बस चाहते हैं कि आप उनके नाम यश प्रभाव में रहें , उसी से जाने पहचाने जायें ।
आपकी अपनी पहचान उन्हें अखरती है। 
राजनीति यदि लोभियों ब्यभिचारियों  का कवच बना दी जाये और राजनीतिज्ञ आम जन को बेईमान होने के लिए षड्यंत्र कर उकसायें तो जनता का धर्म है उनके जाल में न फंसे। 
औरंगाबाद में सामंतशाही आज भी विकृत रूप में है।  मैंने झेला है।  शायद आपके अंदर के विद्रोही स्वरूप ओरंगाबाद जैसी सामाजिक संरचना वाली पृष्ठभूमि में अधिक सटीक , सार्थक , ब्यवहारिक , उपादेय , उपयुक्त है। 
यदि आप घृणा से बचना चाहते है
तो आपको भी घृणा का अधिकार नहीं। 
जो हमें कानून के बारे में सचेत करे
उससे हम सबइतना चिढ़ते क्यों है 
हमारे खून में है कानून तोड़ने के जीन 
और राज्य के प्रति अवज्ञा का भाव 
हमें कानून तोड़ने में इत्ता मजा क्यूँ आता है ?
बस इसी में अपना दिमाग लगाते  है ,क्यों ?
अक्कड़वादी , फक्क्ड़वादी ,टक्करवादी , कटटरवादी - कोई भी , कहीं  भी हो ; मेरा या आपका , ईमानदारी से विरोध होना ही चाहिये।
घृणा से सचमुच घृणा होनी चाहिये। 

Sunday, 30 July 2017

उनकी एक ही उम्मीद
साथ रहो  बिना न नुकुर के
जो कहा जाय , करो -
बिना न नुकुर के 
सरे आम मँच पर कहना
पर कान  में कहना , सुनना
यही तो है राजनीति 

Wednesday, 26 July 2017

अनुभव से मात्रा बोध और अनुपात - विश्लेषण की क्षमता में परिपक्वता आती है। पढ़ने से अधिक करने से अनुभव आता है। 
अपने न्यायालय से भिन्न विषयों पर ,अथवा सामान्य विधिक दर्शन पर लिखने के लिए बहुत कुछ है।
आपकी शहीद के प्रति भावना और संस्मरण देख कर अच्छा लगा।  आप सशक्त लेखनी के धनी है।
साहित्यिक अथवा न्यायशास्त्रीय विषयों पर लिखें।  अपने उच्च न्यायालय के अथवा उच्चतम न्यायालय के न्यायनिर्णयन पर टिका टिप्पणी से बचे. अपने न्यायालय की किसी घटना , मुकदमे , परिस्थिति पर चर्चा को आमंत्रित  न करें।
आपका किखा संस्मरण पसंद आया।  न्यायालय का आपका काम अच्छा माना जाता है। 
इशू साम्प्रदायिकता , वोट १५  %
इशू भ्र्ष्टाचार से लड़ाई ; वोट कितना ?
चतुराई से जोड़ घटाव चल रहा है  ?
क्या इस देश में भ्रष्टाचार से दुखी होकर कोइ भी वोट पड़ता है , पड़ेगा ?
एक तुम्हारा देखा , सुना , कहा  ही नहीं ; और भी बहुत से आयाम है.
 - हो सकता है उनमें से कोई तुम्हारे  वाले से भिन्न हो !
तुम्हीं फूल एन्ड फाइनल सही ही हो ?
और दूसरे जो भिन्न मत रखते-कहते -समझते -देखते हैं ; वे सब गलत ही है ?
यह मैं अभी से कैसे मान  लूँ !

Tuesday, 25 July 2017

मुझे मेरा धर्म ,पन्थ पर ही आश्रित मेरे अस्तित्व से प्रेम करने की बाध्यता से मुक्त करो।
अपने घृणा के बीज अपने पास रखो।
मुझे तुमसे घृणा करने के लिए आदिष्ट होने से चिढ़  है।   
हर समय, हर विन्दु पर असहमति आवश्यक तो नहीं। सहमत होने की आदत डालो , साहस पैदा  करो। 
मैं अंत अंत तक स्वयं को अंतिम मानने को तैयार नहीं।  मेरे दिल-दिमाग के एक कोने की खिड़की फ्रेश हवा-प्रकाश -विचार के आवागमन के लिए सदैव खुली रहती है।  यह खुली रखना मेरी मजबूरी भी है क्योकि  इसे केवल घृणा के दरवाजे -कुण्डी -ताले  से बन्द  किया जा सकता है जिसके लिए  मैं तैयार नहीं। 
शायद कांग्रेस कल्चर का विदाई समारोह कल आयोजित हुआ। 
जज को ब्यक्ति-समाज-ब्यवस्था , भूत-वर्तमान -भविष्य  के बीच संतुलन का दायित्व है।
स्वयं एक ब्यक्ति हर स्थिति में नीतियों का इतना दबाव सहन नहीं कर  पाता अतएव अपने अधिकार की अंतिम सीमा तक सुरक्षा नहीं कर पाता।
अधिवक्ता को समाज से केवल ब्यक्ति के पक्ष में अंत तक खड़े रहने का अधिकार और प्रशिक्षण प्राप्त है।
और अधिवक्ता सामाजिक - नैतिक - कालिक दबाव में भी ब्यक्ति के अधिकारों की रक्षा ब्यवसायिक चातुर्य से करते है , अपनी ब्यक्तिगत सामाजिक निष्ठा और मूल्यों को हानि पहुंचाए बिना। 
अजीब अतुल्य अहँकार तो अब भी है , दूसरे को हेय देखने की प्रवृत्ति आज भी है , ये आज भी सम्मान को अपने घर की दाई मानते हैं और सम्म्मान के लिए संघर्षरत दूसरों को अपमानित करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार। 
मानवीय क्रियाओं में प्रकृतिजनित असफलताओं के वहन के लिए कम्युनिज्म में क्या ब्यवस्था है। सरप्लस कहीं  भी कम्युनिज्म को स्वीकार नहीं। तो सहज स्वाभाविक असफलता कौन वहन करेगा। 
न मैं हारूँगा , न ही हारने  दूंगा।
झुका हुआ शीश , चाहे मेरा या तुम्हारा - मुझे अच्छा नहीं लगता।
मैं बस इतना चाहता हूँ - मैं लड़ता रहूँ .......  . और लड़ता ही रहूँ  .......  .  

Wednesday, 19 July 2017

कारागृह -यह शब्द कौन सा सन्देश दे जाता है

Tuesday, 18 July 2017

खोज रहा हूँ ,  कोई कारण नहीं की मिलेगा ही नहीं ; अभी निराश   नहीं 

Monday, 17 July 2017

कोई ईमान का ब्यापारी बना बैठा , कोई चोर बचपन का
बड़ा ललकारे , कोइ आप सबको , शोर मचाये छप्पन का 
राजनैतिक चिन्तन स्वाग्रही  होता है।
आवश्यक नहीं की वह सामाजिक चिन्तन की तरह आनुपातिक अथवा विवेक-चिन्तन की तरह नैयायिक भी हो।
 राजनैतिक चिन्तन हठ पूर्वक स्वनिर्धारित लक्ष्य की संघर्ष यात्रा करते जीतता या हारता रहता है और यही राजनैतिक चिन्तन का मूल है। 
न कोई ब्यक्ति , न ही विचार , न कोई क्रिया , न ही कोई काल , न ही कोई मत - कोई  भी पूर्ण नहीं , सभी अपने फ्रेम में  संगत , आउट ऑफ़ फ्रेम - इरिलिवेन्ट।
फिर पसंद भी अपनी अपनी।
हर ब्यक्ति को अपना अतिरेक शायद पसन्द आते रहता है।  यही स्वभाव है।  यही स्वाभाविक है।  और इन्हीं दो विकल्पों का संघर्ष ही जीवन है। 
सादर असहमत होना अप्रतिम गुण है।  परमात्मा यह गुण न्यूनाधिक मात्रा में मुझे भी देना। 
संघर्षजीवी राष्ट्रप्रेमी !
 घृणा और घृणा फ़ैलाने वालों के खिलाफ  आज भी जंग जारी है , रहेगी।
 जीतने  या हारने के लिए नहीं - अनुचित-अन्याय , अतिरेक , अतिरंजना , उन्माद के खिलाफ। 
यह जानते हुए भी की उकसाने वाले बाज  नहीं आवेंगे। 
तब भी यह बताते हुए की विरोध करने वाले और विरोध में लड़ने वाले भी कब बाज आवेंगे। 

Friday, 14 July 2017

अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता हर बार केवल एक पक्ष को ही क्यों चाहिये - गालियाँ देने के लिए , टुकड़े कर देने - करवा देने के लिए , बर्बादी तक के लिए , वंदे  मातरम के विरोध के लिए , ... ट्टो के लिए प्रार्थना करने के लिए , .... द्दा...... ,ला...न की प्रसंसा गीत गाने के लिए , कस्साब की फाँसी का विरोध  करने के लिए , सेना को बददुआ देने  के लिए , देवी देवताओं की मनचाही विकृत पेंटिंग के लिए 
मेरा स्वाद सदा से कसैला , कभी कभी कडुआ  रहा है।  करनी सादी -सीधी -सही  ही रही। टेढ़ा बांका न समझ में आया , न किया , न कभी कर  पाया , न कभी चासनी मढ़ने -डुबाने चढ़ाने की कोशिश की - खरा खरा , कभी कभी खारा खारा भी। 
2018 में क्या , और क्या क्या , कब कब होना निर्धारित है ?  
कैलैंडर तो बन गया है , लगता है , प्रकाशित नहीं हुआ।  
मुझे तो कत्तई सुगबुगाहट भी नहीं। 
बस अंदाजीफिकेशन पर कयास। 
ए वाइल्ड गेस  या कहिये कोरी गप्प  !
उम्मीद की जानी चाहिये की मैं गलत साबित होऊं। 

Thursday, 13 July 2017

कोई एक झुकेगा , कोई एक टूटेगा , आज का गणित या आगे की योजना , या दोनों डूबेगा , या तीसरा लूटेगा तो यह तीसरा कौन होगा - कौन किसको जीम जायेगा।
या यह सब ड्रामा है , यूँ ही चलता रहेगा ?
जेडीयू विधायक दल में टूट का खतरा 
आप दीखते तो इत्ते बड़े हो ,
पर औरों के पैरों पर खड़े हो।
न जाने कहाँ कितना पढ़े हो
कब से यूँ हीं सिर पर चढ़े हो।
अपनी ही बात पर क्यूँ अड़े हो
यूँ  मुँह फुलाये कब से खड़े हो। 

Wednesday, 12 July 2017

लोकतंत्र भीड़ के अनुरूप या भीड़ का सम्मान करने की ब्यवस्था का नहीं वरन कानून और न्यायालय का सम्मान करने वाली व्यवस्था का नाम है।
लोकतंत्र की पूर्णता सम्पूर्ण बहुमत सम्पन्न प्रधानमन्त्री द्वारा न्यायालय का सम्मान करते समय ही दीखता है।
न्यायालय बहुमत से नहीं न्यायमत से भी सोचता है , इसी न्यायमत के प्रति श्रद्धा ही लोकतन्त्र  है। 
लो , अब कर  लो बात !
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट  @ बिहार प्रकरण।
माइनर @ कॉन्ट्रेक्ट एक्ट @ बिहार प्रकरण।
यह बच्चा शब्द यूँ ही नहीं है ,प्रभावी बचाव का दाव है।
या वेद्ब्यास ने कृष्ण को पद-पथ-यश -मर्यादा च्युत ( स्खलित ) दिखाया जानबूझ कर। 
कलम जीवी वेद्ब्यास ने केवल कृष्ण की ही रचना की , बाकि का तो यश-स्खलन ही करवाया  गया 
क्या पाप का घड़ा जब तक लबालब न भरे तब तक फोड़ना वर्जित है ?
क्या सौ पापों के बाद ही सजा - निन्यानवें पाप तक के पीड़ित क्या करें ?

Tuesday, 11 July 2017

यही श्रेष्ठता का दावा तो आप हजारों सालों  से करते आये हो और मुझे पापी , अधम , नीच बताते आये हो। अब मैं जान गया हूँ की मैं  पापी नहीं था ,अधम नहीं था , आपने मेरा बौद्धिक , शारीरिक ,आत्मिक वंशानुगत शोषण किया , मुझे बरगलाया , मेरी सदाशयता का  निर्मम अनुचित लाभ उठाया। आपने बलशाली धनशाली और कुटिल बुद्धिशाली ५-७ लोगों का जघन्य जोट्टा  बनाया और मेरी , मेरे परिवार की , मेरे बाल बच्चों की , मेरी महिला सदस्यों की गरिमा से खेलते रहे।
अब यह रुकेगा ही। 
अधिसंख्य ग्लानि -अपमान -अत्याचार मेरा भोगा हुआ सत्य है , गॉवों के बालकों , वृद्ध , महिलाओं के माध्यम से देखा समझा हुआ है , कर्तब्य निर्वहन में भी साक्षात् सूजी हुई आँखों से चिल्लाती जुबान को शरीर थरथराते देखा है , थोड़ा सा सहारा मिलते ही निर्बल लाचार कैसे ुधिया जाता है - मेरे दग्ध हृदय - दिल -दिमाग -लेखनी से पूछिए। 

Monday, 10 July 2017

संविधान में सभी के बराबरी से हैं परेशान।
 सबको मिला समान अधिकार और वोट - उससे भी परेशान।
 पहले हजारों साल के अन्याय का निवारण - अस्पृश्यता  के उन्मूलन से परेशान।
 और पूर्व में अवसर वंचित वर्ग के प्रति किये गए न्याय के प्रयास से परेशान  !
अब क्या कभी चरणामृत नहीं पीला पाएँगे।
 चरण प्रच्छालन करवावल जाओ यजमान - अब क्या कभी नहीं ?
हाय , अब हमारी चरण रज का क्या होगा ?
ग्लैमर और सेल्युलाइड की दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता - गद्दाफी की कैटरीना हो , सलेम की मोनिका बेदी , ममता कुलकर्णी , मुंबई बम धमाका- संजय दत्त हो ,  सन्नी लिओनी हो , ड्रग महाजन या फरदीन हो , पैसा दुबई  का हो या किसी और का 
बस हमारा चोरी कर  लिया स्वाभिमान  लौटा दो !
चरणरज सर पर लगाना जो सिखाया वह भुला दो।
चरणामृत पीना घुट्टी में पिलाया उसे हटा दो।
हमारे शारीरिक श्रम के मूल्य को न्यूनतम रखने और बेगारी के षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दो।
हमे छू कर , हमारे साथ सो कर हम पर एहसान करने की परम्परा कैसे डाली बता तो दो।
ये स्वर्णजड़ित मुकुट - सिंहासन तुमने किस पुरुषार्थ से अरजे बता तो दो।
मुझे पूर्वजन्म और बाप-दादों के पाप से डराना कब तक बंद कर दोगे , बता दो।
मैं तुम्हारे घर की झूठन खा किस दिन पाप मुक्त होऊंगा बताते जाओ।
मुझे कब तक फेंक कर चवन्नी और दो बासी  रोटी मिलेगी।
मेरा पानी का बरतन कब तक वहाँ कोने में अलग थलग पड़ा रहेगा।
मुझे मेरी संतान का नाम कब तक सोमारू , मंगरा , बुधना , बिफना , सुकरा , शनिचरा , ऐतवारु  यही सब रखना ही होगा।
मुझे घोड़े पर चढ़ने कब मिलेगा।
मैं अपनी बेटी के ब्याह में कब बाजा बजा पाउँगा।
मैं कब आपको मालिक बोलना बंद कर  सकूंगा। 


आखिर चीन दूत से मुलाकात छिपाई ही क्यों थी , और फिर उसे झूठ क्यों बताया , फिर उसे सत्ता पक्ष द्वारा प्लांटेड न्यूज क्यों बताया - और अंत में उसे स्वीकारना क्यों पड़ा ?
जहाँ जाते हो पहले से मिडिया , यहाँ मिडिया को यह हिदायत की न्यूज मत बनाओ 
अज्ञेय , देखो !
देख सकते हो तो देखो
जिन्दगी ,उम्मीद , फुनगी
आज भी जिन्दा है
और रहेगी 
ठीक ही कहा , हाथ को कहूँ ,या हसुआ को या हथौड़ा को
घाव फैला शरीर में ,क्या कहूँ दाद दिनाय फुंसी फोड़ा को !!
हाँ कहूँ तो है नहीं , ना भी खा न जाय
हाँ ना के बीच में , साँई मेरा समाय 
मुझे गुलाम बना ले जो ,वह मेरा मौला , गुरु , खुदा ,भगवान , नहीं हो सकता।
मेरी साँसों औ लवों पे बैठा दिया पहरा जिसने ,वह मेरा ईमान नहीं हो सकता। 
अब सीख पाया हूँ गुर अपना होने का
अपनों के गुनाह का गवाह नहीं होना।
गर गुनाहों की तपिश बर्दाश्त  नहीं हो
अपना किसी को कभी बनाना ही नहीं। 
विश्व में शन्ति और मानवाधिकारों के अग्रदूत  - पाकिस्तान @ पूर्वी पाकिस्तान + लादेन , और चीन @ शयनमेंचौक  + भारतीय  कांग्रेस @ १९७० बंगाल , १९८४   दिल्ली , १९८९  भागलपुर 
नमक स्व -स्वादानुसार ही ग्राह्य 

Sunday, 9 July 2017

राजनीति का इतिहास इससे भी बड़ी बेवकूफियों की फेहरिस्त ही तो है। बुद्धिमत्ता और पवित्रता से यदि राजनीति  ही होती तो प्रजा भी न करती।  राजनीति अर्थात राजा की नीति अर्थात जो प्रजा की नीति न  हो।  राजनीति  जिसके पीछे राज हो अर्थात जो प्रत्यक्ष न हो। 
स्वतंत्रता के बाद के बिहार के सबसे दृढ़प्रतिज्ञ देदीप्यमान नो-नॉनसेन्स सर्व स्वीकार्य बेदाग नेता नितीश जी को कांग्रेस केंद्रीय रोल नहीं देने जा रही है , लगभग सिन्दिया ने स्पष्ट किया !
क्या कांग्रेस , पाक और चीन तीनो मिल कर  मोदी को हरायेंगे ?


राहुल चीन से और उनके करिंदे पाक के सम्पर्क में - खबर क्या सही है

सिंदिया ने तो बता दिया - अन्य किसी  के लिये कांग्रेस सीट खाली  नहीं करने जा रही - राहुल ही रहेंगे !
पर यह बात कहने के लिये सिन्दिया ही क्यों , हुए कहते हुए इत्ते तनाव में क्यों
LIG , MIG , HIG , केवल अर्थशास्त्रीय, सांख्यीय शब्द भर नहीं है - यह एक सामाजिक विश्लेषण  , समाज स्तरीय मनोवैज्ञानिक अध्ययन , शारीरिक -मानसिक -तार्किक - भावनात्मक  वर्गभेदमूलक शब्द है , क्लास भी डिफाइन करते है , परस्पर एक असंवाद -दुराव-अलगाव -खाई  को चिन्हित करते है।
इनमे से प्रत्येक एक दूसरे के प्रति अविश्वास - विस्मय  और अवसर की सी स्थिति रखता है।
एक को LIG  से निकल कर MIG तक जाना ही स्वप्न और असम्भव सा प्रतीत होता है और वह किसी असम्भव यात्रा के लिए तैयारी ही करता रह जाता है - रास्तों को ही खोजता -पहचानता रह जाता है , पर उसकी समझ उसका साथ नहीउं दे पाती।
HIG  तो अपने आपको श्रेष्ठ जान -मान  LIG या MIG  का तिरस्कार करना अपना अधिकार मान बैठा है।
MIG डरा रहता है कहीं नीचे नहीं खिसक जाये - ऊपर और आगे के लिये उसकी स्थिति LIG  वाले से भिन्न नहीं है।
HIG वाला भी मन ही मन यह तो जानता है की उसके ठाठ LIG को LIG  बनाये रखने से ही बने रह सकते हैं। 
खूब चमकाओ लैन्गों  सोला कलिया रो
खूब सजाओ बोरलो लख लख हीरा रों
गीत तो गावेला सगळा मिल उछाव स्यूँ
बाई बाँकी जिन सजायो जोहर चिता री 
मीरा बण्या तो झैर पीणो पड़सी
तेग बण्या बे शीश लेसी काट
गोबिंद बणस्यां चिणावै भीत माँ
गाँधी बण्या बे देसी गोली मार। 
कोई कुश्ती देखने भीड़ में खड़ा हो जाता है , कोई खेलने कुश्तीबाजों के बीच  ,
कोई कोई पहलवान बनने उस्ताद के सामने सर झुकाए अखाड़े में जा डटते है। 
जी हाँ , सब के बस की बात नहीं , दिया बन जल जाना अँधेरे से लड़ जाने के लिये।
हर सख्श जो दीप बन जला ,जानता है, सुबह होते ही वह बुझा दिया जायेगा। 

Saturday, 8 July 2017

जी यह सही है, कि साफ सीधे आदमी को गेम खतम होने के बाद गेम के अन्दर चलते गेम की चाल ,चरित्र और उनकी चाल दिखती ही  है या समझ में आती  ही है। 
गेम जो दीखता है , वह  होता नहीं। 
उसके नियम तो होते हैं पर उसके पीछे नीयत बदलते लोग गेम खेलते रहते हैं। 
अब सारे ब्यापारी संगठन , चार्टर्ड एकाउंटेंट , वकील इसी आधार पर कोर्ट में जायेंगे - हमारे यहाँ नेट नहीं , बिजली नहीं , जी एस टी लागू हो ही नहीं सकता , रोक दो।
कल तक घर घर का बच्चा स्मार्ट फोन पर चेटिंग करता घूमता था।  
अब नेट नहीं है।  
अकेले वकील समुदाय को समाज और संविधान में ब्यक्तिगत स्वतंत्रता और ब्यक्ति की मानवीय गरिमा को उसकी निजता और गोपनीयता के साथ और उसके प्रति पूर्ण निष्ठां और अधिकार के साथ राज्य और राष्ट्र , न्यायाधीश , और सभी दमन करि शक्तियों के सामने भी उन सब  के विरुद्ध भी खड़े होने का सर्वोच्च अधिकार प्राप्त है और शायद अधिवक्ता की संस्था का यही प्राण तत्व है। 
हाँ , सड़क ,ट्रेन , प्लेन आदि में हादसे होते रहते हैं।  यह जीवन चक्र के हिस्से है।
पर इनके बावजूद जीवन चक्र चलता रहता है निर्बाध , थोड़ा और सावधान - पर रुकता कोइ नहीं , रोकता कोइ नहीं।
बस इसी तरह फेसबुक , वाट्सएप या अन्य श्रोतों पर  पढ़े लिखे बच्चों , बृद्ध माता पिता , रिटायर्ड बुजुर्ग , देश  में दूर या विदेश में कार्यरत बेटे-बहू , बेटी -दामाद से संबन्धित किस्से कहानियों या हादसों के विवरण  से अपने चैन को डिस्टर्ब न करें।  ये हादसे हैं।  कहीं - कहीं , कभी - कभार हो ही जाते है , पर होते है हादसे।  सामान्यतः सब कुछ सुखद ही होता है। विश्वास करें - सब कुछ सामान्य सुखद ही होता आ रहा है। 
न गांघी , न नेहरू , न लाल बहादुर ,न राममनोहर , न इन्दिरा, न जयप्रकाश ,न नरसिम्हा , न बाजपेयी , न मनमोहन - मोदी भी अनन्त तक तो नहीं ही जायेंगे !
बस ५०  नेता , ५० अभिनेता , ५० कोट , ५० वर्दी , ५० पगड़ी , ५० थैली वाले , ५० कलम वाले , ५० रिंच-प्लास -औजार वाले, ५० दिमाग वाले , ५० टाई , ५० पीर औलिया महंथ , ५० काला गाउन , ५० उजला गाउन , ५० जेल के अन्दर वाले , पचास बम-गोली छुरे वाले  ५० जेल के बाहर वाले , ५० कोठे वाले , ५० कोठे वाली। बाकि के तो सरे मजदूर।  सर झुकाए पीछे पीछे पीछे चलने वाले। 
नोटबन्दी के समय से श्री मुख से निकला - बेनामी पर कार्रवाई  करो।  काला नगद नहीं सम्पत्ति में हैं। 

Friday, 7 July 2017

Only I am responsible for
What
Why
When
How
Where
Whose
-------I endure ( मै क्या बरदास्त करता हूँ,क्यों, कब, कैसे, कहाँ , कितना , किसका )
JB talk thi jindgi, BAHAR aur husn, hamari yad n aayee,
Hm rahe gairon me sumaar , hamari jeekr, fikr nahi aayee
Aaj JB maut saamne hai to ham apne hi to hai , yaad aaya
Aaj lahu maangte ho , us waqt to tune dar se pyasa lautaya

जब तलक थी जिंदगी में बहार , औ हुस्न , हमारी याद न आई
हम रहे गैरों में सुमार, हमारी जिक्र औ फ़िक्र तक न कभी आई।
आज जब मौत सामने है तो अपने ही है ,यह बात क्यूँ याद आई
आज लहू मांगते हो ,उस वक्त तो तूने दर से था प्यासा लौटाया।

Thursday, 6 July 2017

मैंने अपने एक प्रबुद्ध मित्र से पूछा - यह चीन का नया बखेड़ा क्या है।
उसने मुझे समझाया की पड़ोसी दुश्मन के यहाँ बारात आयी हो , अगुआ आया हो , छठी -कारज -परोजन हो तो दुश्मन पड़ोसी खिसिया कर उसी दिन समय अपनी नाली -टंकी साफ करवाता है कि कम से कम असुविधा तो पैदा होगी ही। जैसे ही समय बिता फिर यथावत दुश्मन।
अमेरिका-इजराइल यात्रा का इतना तो रियेक्सन होना ही था।  यदि यह नहीं होता या ऐसा कुछ नहीं होता तो मानो आपकी यात्राओं को किसी ने नोट ही नहीं किया।
आखिर चीन अपने मित्र पाकिस्तान को कुछ तो आश्वस्ति - दिलाशा  देगा न !

Wednesday, 5 July 2017

मैं तो फूट गया था ,
बूँद बूँद बह चला था ,
ऊपर से जो कुछ आता था
उसे सहेजता रहता था
पर था तो फूटा घड़ा
कब मैं तो भरता ही।
पर पता ही न चला
कब इन हरी  नर्म  घास की चादरों  ने
मेरे चारों ओर  अपना आसियाना बना लिया। 
पत्थर हो चली है हवा,

आग में भुन चुका है समंदर।

पत्थर हो गई इस हवा का

मैं क्या करूँगा, !

मेरे बच्चे, ये पेड़, ये पौधे,

मूक-वधिर से ये मृगछौने

अब उनकी साँस की आस भी नहीं
यह पत्थर हो चली हवा !

तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,

तुम्हारे काम आयेगी !!

जब मुर्दों के बाजार में

दुकान तुम लगाओगे !!!

जला ही डाला इस सारे समंदर को।

भुन चके इस सम़ंदर का, मैं क्या करूँगा ?

सहन कैसे करूँ मेरी प्यास को,

क्या जबाब दूँगा मीन की आश को !!

कैसे देखूँगा घोंघे निराश को ?

कागज की ये नाव कब से खड़ी है,

पानी की बाट जोहती अड़ी है !!

भुन चुके ,जल चुके इस समंदर को

तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,

तुम्हारे काम आयेगा

जब मुर्दों के बाजार में

दुकान तुम लगाओगे।।।


चुल्लु भर पानी भी नहीं

डूब कर मरुँ भी तो कहाँ।

मेरी बेबसी

तुम्हारी खुदगर्जी

मेरी फाँकाकशी

तुम्हारी ऐयाशी

फोटो बना लो, गीत भी अच्छे बनेंगें

तिजोरियों में बंद कर रखो इसे,

तुम्हारे काम आयेगी,

जब मुर्दों के बाजार में

दुकान तुम लगाओगे।।।