राजनैतिक चिन्तन स्वाग्रही होता है।
आवश्यक नहीं की वह सामाजिक चिन्तन की तरह आनुपातिक अथवा विवेक-चिन्तन की तरह नैयायिक भी हो।
राजनैतिक चिन्तन हठ पूर्वक स्वनिर्धारित लक्ष्य की संघर्ष यात्रा करते जीतता या हारता रहता है और यही राजनैतिक चिन्तन का मूल है।
आवश्यक नहीं की वह सामाजिक चिन्तन की तरह आनुपातिक अथवा विवेक-चिन्तन की तरह नैयायिक भी हो।
राजनैतिक चिन्तन हठ पूर्वक स्वनिर्धारित लक्ष्य की संघर्ष यात्रा करते जीतता या हारता रहता है और यही राजनैतिक चिन्तन का मूल है।
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