Friday, 14 July 2017

मेरा स्वाद सदा से कसैला , कभी कभी कडुआ  रहा है।  करनी सादी -सीधी -सही  ही रही। टेढ़ा बांका न समझ में आया , न किया , न कभी कर  पाया , न कभी चासनी मढ़ने -डुबाने चढ़ाने की कोशिश की - खरा खरा , कभी कभी खारा खारा भी। 

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