Tuesday, 25 July 2017

मैं अंत अंत तक स्वयं को अंतिम मानने को तैयार नहीं।  मेरे दिल-दिमाग के एक कोने की खिड़की फ्रेश हवा-प्रकाश -विचार के आवागमन के लिए सदैव खुली रहती है।  यह खुली रखना मेरी मजबूरी भी है क्योकि  इसे केवल घृणा के दरवाजे -कुण्डी -ताले  से बन्द  किया जा सकता है जिसके लिए  मैं तैयार नहीं। 

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