मैं अंत अंत तक स्वयं को अंतिम मानने को तैयार नहीं। मेरे दिल-दिमाग के एक कोने की खिड़की फ्रेश हवा-प्रकाश -विचार के आवागमन के लिए सदैव खुली रहती है। यह खुली रखना मेरी मजबूरी भी है क्योकि इसे केवल घृणा के दरवाजे -कुण्डी -ताले से बन्द किया जा सकता है जिसके लिए मैं तैयार नहीं।
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