लिखते हो भाई , पर इत्ता खस्ता कच्चा माल दिल-दिमाग की किस बगिया में कब कैसे ऊगा -बढ़ा -फूला -फला लेते हो - और कैसे इतना टटका टटका परोसते हो - कभी कभी झाल , कभी टेस्टी पंचमेला स्वाद , कभी चूँटी काटते से , कभी तलवार भांजते से , कभी जमाने से लड़ते से - कभी इत्मीनान नहीं रहती कलम आपके हाथों , रात-रात जगाते से.... कैसे रच डालते हो यह अद्भुत संसार आप- वीरू भाई
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